"पता करें कि क्या जस्टिस रामासुब्रमण्यम अतीत में मदनी के लिए पेश हुए हैं" : सुप्रीम कोर्ट ने जमानत शर्तों में छूट की अब्दुल नज़ीर मदनी की याचिका पर सुनवाई टाली

Update: 2021-04-05 10:55 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 2008 के सीरियल बम ब्लास्ट मामले के मुख्य आरोपी अब्दुल नज़ीर मदनी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई को अगले सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया है,जिसमें शीर्ष अदालत द्वारा 11 जुलाई 2014 को जमानत देते हुए शीर्ष अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों में छूट देने की मांग की गई है।

न्यायालय ने याचिकाकर्ता के वकील से पता करने को कहा है कि क्या न्यायमूर्ति रामासुब्रमण्यम जो वर्तमान पीठ का हिस्सा हैं, अतीत में मदनी के लिए पेश हुए हैं।

सीजेआई बोबडे, न्यायमूर्ति बोपन्ना और न्यायमूर्ति रामासुब्रमण्यम की तीन-न्यायाधीश पीठ, केरल की पीडीपी अध्यक्ष, मदनी द्वारा दायर एक अर्जी पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें जमानत की शर्त कि वो बेंगलुरू शहर छोड़कर ना जाएं,में इस हद तक ढिलाई बरतने की मांग की गई है कि ट्रायल के लंबित रहने तक केरल के अपने गृहनगर की यात्रा करने की अनुमति दी जाए।

सुनवाई के दौरान, मदनी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील जयंत भूषण ने कहा कि वे जमानत की शर्तों में संशोधन की मांग कर रहे हैं। शर्त यह थी कि उन्हें बैंगलोर में ही रहना है।

सीजेआई ने टिप्पणी की,

"आप एक खतरनाक आदमी हैं।"

वरिष्ठ वकील भूषण ने कहा कि उन्होंने अपनी जमानत शर्तों का दुरुपयोग नहीं किया है।

सीजेआई ने पूछा,

"जिस बेंच ने जमानत दी थी, मैं भी उसका हिस्सा था, सही है?" 

भूषण ने अदालत को सूचित किया कि यह न्यायमूर्ति चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति सीकरी की पीठ थी और सीजेआई बोबड़े बाद मेंपीठ का हिस्सा थे जब उन्हें अपने बेटे की शादी होने पर केरल जाने की अनुमति दी गई थी।

न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम ने कहा कि वह उनके लिए अतीत में पेश हुए हो सकते हैं।

पीठ ने वरिष्ठ वकील भूषण से पूछा कि क्या यह संभव है कि न्यायमूर्ति रामासुब्रमण्यम ने अतीत में मदनी का प्रतिनिधित्व किया हो।

वर्तमान आवेदन में, मदनी ने अपनी जमानत की शर्त पर इस आधार पर राहत मांगी है कि जमानत की शर्त खत्म हो चुकी है और 6 साल बाद भी मुकदमे का निष्कर्ष नहीं निकला है।

आवेदक ने तर्क दिया है कि वह कई बीमारियों से पीड़ित है और उसकी स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ रही है। जब से उसे हिरासत में भेजा गया है, उचित और समय पर उपचार से वंचित कर दिया गया, जिसके कारण उसकी दाहिनी आंख की रोशनी भी चली गई है।

आवेदक ने तर्क दिया है कि ट्रायल कोर्ट के सामने मामले की प्रगति घोंघे की गति से रेंग रही है और कई अवसरों पर बाधित हुई है। अभियोजन पक्ष समय-समय पर गवाहों को लाने में असमर्थता के कारण ट्रायल की अनुसूची का पालन करने में बुरी तरह से विफल रहा है।

मदनी ने तर्क दिया कि वर्तमान में ट्रायल में कोई पीठासीन अधिकारी नहीं हैं, क्योंकि अधिकारी के हाल ही में स्थानांतरण के बाद किसी अन्य अधिकारी को नियुक्त नहीं किया गया है। इससे पता चलता है कि ट्रायल जल्द पूरा नहीं होगा।

आवेदक ने आगे इस आधार पर छूट मांगी कि उसके पिता को दौरा पड़ा है और वह आंशिक रूप से लकवाग्रस्त हालत में हैं। इसके अलावा उनकी उपस्थिति ट्रायल के इस स्तर पर आवश्यक नहीं है।

शीर्ष अदालत ने 2014 में मदनी को अतिरिक्त सिटी सिविल जज के सामने मुकदमे की सुनवाई से पहले जमानत दे दी थी कि वह एक विचाराधीन कैदी हैं और 4 साल से न्यायिक हिरासत में थे और मधुमेह, हृदय रोग, आदि जैसी बीमारियों से पीड़ित है। कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ मदनी द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका में जमानत दी गई थी।

लश्कर-ए-तैयबा के ऑपरेटिव संदिग्ध टी नज़ीर द्वारा मदनी को बैंगलोर धमाकों से जोड़ने की स्वीकारोक्ति के बाद पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र में अब्दुल मदनी को 31 वें अभियुक्त के रूप में नामजद किया गया था। धमाकों में एक व्यक्ति की मौत हो गई और 20 अन्य घायल हो गए थे।

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