यदि किसी "आवश्यक पक्ष" की पैरवी नहीं की गई तो मुकदमा खारिज किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी "आवश्यक पक्ष" को मामले में पक्ष नहीं बनाया गया है तो मुकदमा खारिज किया जा सकता है।
कोर्ट के अनुसार, एक आवश्यक पक्ष होने के लिए दोहरे परीक्षण को संतुष्ट करना होगा (1) कार्यवाही में शामिल विवादों के संबंध में ऐसे पक्ष के खिलाफ कुछ राहत का अधिकार होना चाहिए (2) कि ऐसी पार्टी की अनुपस्थिति में कोई प्रभावी डिक्री पारित नहीं हो सकती है।
आदेश I नियम 9 में प्रावधान है कि किसी भी मुकदमे को पार्टियों के कुसंयोजन (misjoinder) या असंयोजन (nonjoinder) होने के कारण विफल नहीं किया जाएगा, और न्यायालय प्रत्येक मुकदमे में विवादित मामले का निस्तारण कर सकता है, जहां तक कि वास्तव में इसके समक्ष मौजूद पक्षकारों के अधिकारों और हितों के संबंध में है।
हालांकि, इस नियम का प्रावधान स्पष्ट करता है कि इस नियम की कोई भी बात किसी आवश्यक पार्टी के असंयोजन पर लागू नहीं होगी।
इस मामले में, ट्रायल कोर्ट ने विशिष्ट अदायगी (Special Performance) के लिए एक मुकदमे का फैसला किया और इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि प्रतिवादी के बेटे और पत्नी इस मुकदमे के आवश्यक पक्ष हैं। प्रथम अपीलीय अदालत ने डिक्री को बरकरार रखा। द्वितीय अपील में हाईकोर्ट ने डिक्री को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में अपीलकर्ता की ओर से पेश हुए एडवोकेट राहुल चिटनिस ने तर्क दिया कि चूंकि अनुबंध वादी और प्रतिवादी के बीच था, इसलिए प्रतिवादी की पत्नी या बेटों को पक्ष प्रतिवादी के रूप में पेश करना बिल्कुल भी आवश्यक नहीं था।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों की ओर से सीनियर एडवोकेट हरिन पी रावल ने तर्क दिया कि वादी ने स्वयं स्वीकार किया है कि वाद की संपत्ति प्रतिवादी, उसकी पत्नी और तीन बेटों के स्वामित्व में थी और इस प्रकार इस स्वीकारोक्ति को देखते हुए वादी द्वारा दायर किया गया वाद स्वयं ही विचारणीय नहीं था।
अदालत ने पाया कि चूंकि मुकदमे की संपत्ति प्रतिवादी के पास उसकी पत्नी और तीन बेटों के साथ संयुक्त रूप से थी, इसलिए प्रतिवादी की पत्नी और तीन बेटों के अधिकारों को प्रभावित किए बिना एक प्रभावी डिक्री पारित नहीं की जा सकती थी। अदालत ने कहा कि प्रतिवादी द्वारा उस संबंध में आपत्ति लेने के बावजूद, वादी ने प्रतिवादी की पत्नी और तीन बेटों को पक्ष प्रतिवादी के रूप में नहीं चुना है।
अपील को खारिज करते हुए पीठ ने कहा,
"इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि इस न्यायालय ने जो कहा है वह यह है कि एक आवश्यक पक्ष होने के लिए, दोहरे परीक्षण को संतुष्ट करना होगा। पहला यह है कि इस तरह के पक्ष के लिए कार्यवाही में शामिल विवाद के संबंध में कुछ राहत का अधिकार होना चाहिए। दूसरा यह है कि ऐसी पार्टी की अनुपस्थिति में कोई प्रभावी डिक्री पारित नहीं की जा सकती है। वादी के स्वयं के स्वीकारोक्ति को देखते हुए कि वाद की संपत्ति प्रतिवादी, उसकी पत्नी और तीन बेटों के संयुक्त स्वामित्व में थी, उनकी अनुपस्थिति में कोई प्रभावी आदेश पारित नहीं किया जा सकता था।"
केस डिटेलः मोरेशर यादराव महाजन बनाम व्यंकटेश सीताराम भेदी (D) | 2022 लाइव लॉ (SC) 802 | CA 5755-5756 Of 2011| 27 सितंबर 2022 | जस्टिस बीआर गवई और सीटी रविकुमार