साक्ष्य के सख्त नियम विभागीय जांच पर लागू नहीं होते: सुप्रीम कोर्ट ने केस डायरी को रिकॉर्ड में रखने की अनुमति दी
सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने माना है कि सबूत के सख्त नियम विभागीय जांच पर लागू नहीं होते हैं।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई ने उक्त विचार के साथ, उत्तराखंड के एक अतिरिक्त जिला जज को अनुमति दी कि वह केस डायरी का रिकॉर्ड सामने रखे। अतिरिक्त जिला जज एक विभागीय जांच का सामना कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता-एडीजे ने जांच अधिकारी के समक्ष कुछ दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर रखने के लिए 24 नंवबर, 2020 को एक आवेदन दायर किया था, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि प्रेजेंटिंग ऑफिसर ने दस्तावेजों का यह कहते हुए समर्थन किया कि वे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 85ए और 85बी के मद्देनजर स्वीकार योग्य नहीं है।
एक अन्य आवेदन जांच अधिकारी के समक्ष दायर किया गया, जिसमें जांच में पेश किए जाने वाले गवाहों की एक अतिरिक्त सूची दी गई थी। इसे भी 19 जनवरी 2021 को खारिज कर दिया गया था।
इस आवेदन के खारिज होने से व्यथित याचिकाकर्ता ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर कहा कि दस्तावेज प्रासंगिक थे और प्रेजेंटिंग ऑफिसर के साथ-साथ जांच अधिकारी ने उन्हें जांच में प्रदर्शित करने की अनुमति नहीं देने में त्रुटि की थी। .
हाईकोर्ट ने पाया कि जांच अधिकारी द्वारा कोई त्रुटि नहीं की गई थी क्योंकि याचिकाकर्ता को उसकी ओर से सबूत पेश करने की अनुमति दी गई थी। इसने कुछ दस्तावेजों को जांच में प्रदर्शित करने की अनुमति दी थी, हालांकियह सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत याचिकाकर्ता द्वारा प्राप्त केस डायरी की प्रति से संबंधित नहीं थी।
खंडपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता जिस केस डायरी को प्रदर्शित करना चाहता था, उसे जांच अधिकारी द्वारा साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों के तहत आवश्यक दस्तावेज के लिए सबूत की कमी के आधार पर अनुमति नहीं दी गई थी।
इसने टिप्पणी करने के लिए प्रेरित किया कि, "सबूत के सख्त नियम विभागीय जांच पर लागू नहीं होते हैं। यदि केस डायरी को रिकॉर्ड में रखा जाता है तो किसी को कोई पूर्वाग्रह नहीं होता है। याचिकाकर्ता द्वारा आवेदन में प्रदर्शन 44 के रूप में प्रदर्शित केस डायरी को विभागीय जांच में एक दस्तावेज के रूप में प्रदर्शित किया जाएगा। "
पीठ ने इसी के अनुसार विशेष अनुमति याचिका का निस्तारण किया। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि उक्त विभागीय जांच में तेजी लाई जाए और इसे जल्द पूरा किया जाए।
कारण शीर्षक: कंवर अमनिंदर सिंह बनाम माननीय उत्तराखंड हाईकोर्ट, नैनीताल अपने रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से
याचिकाकर्ता के लिए वकील: सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत के साथ एओआर सचिन शर्मा और एडवोकेट अनिल कुमार गुलाटी, सत्यव्रत शर्मा और राहुल गौर।
प्रतिवादी के लिए वकील: एओआर डी. भारती रेड्डी