याचिका में विशिष्ट चुनौती के बिना वैधानिक प्रावधान को अल्ट्रा वायर्स घोषित नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2023-09-05 10:03 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि किसी कानून के प्रावधानों को रद्द करने या कुछ नियमों को अल्ट्रा वायर्स घोषित करने के लिए एक विशिष्ट दलील और ऐसी राहत के लिए अनुरोध होना चाहिए।

न्यायालय ने कहा,

"कानून के प्रावधानों को खत्म करने या नियमों को अल्ट्रा वायर्स घोषित करने के लिए विशिष्ट दलील दी जानी चाहिए और ऐसी राहत का अनुरोध किया जाना चाहिए, हालांकि वर्तमान मामले में यह स्पष्ट रूप से गायब है।

ऐसी दलील के अभाव में यूनियन ऑफ इंडिया के पास इसका खंडन करने का अवसर नहीं है। दूसरे पक्ष के पास लागू किए गए नियमों के पीछे के मकसद को, यदि कोई हो, को रिकार्ड में लाने का कोई अवसर नहीं था। हमारा यह भी विचार है कि कैट के आदेश के खिलाफ दायर रिट याचिका में हाईकोर्ट को उपरोक्त तथ्य की स्थिति में नियम 4(बी) को अल्ट्रा वायर्स घोषित नहीं करना चाहिए था। इसलिए, हाईकोर्ट ने नियम 4(बी) को अल्ट्रा वायर्स घोषित करना उचित नहीं था।”

मामले में जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ उड़ीसा हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।

हाईकोर्ट ने मिन‌िस्ट्री ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इन-सीटू प्रमोशन अंडर फ्लेक्सिबल कॉम्‍प्‍लिमेंटिंग स्‍कीम ) रूल, 1998 के नियम 4 (बी) को अमान्य घोषित कर दिया था और अपीलकर्ता को प्रतिवादी की पदोन्नति पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया था।

मामला

वर्तमान मामले में प्रतिवादी (मंजुरानी राउत्रे) कटक में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र में प्रिंसिपल सिस्टम एनलिस्ट (साइंटिस्ट डी) के रूप में कार्यरत थीं। उन्होंने एक वैज्ञानिक के रूप में एक ग्रेड से दूसरे ग्रेड में पदोन्नति की मांग की। लचीली पूरक योजना (एफसीएस) के नाम से जानी जाने वाली एक पदोन्नति नीति 1999 में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने शुरू की थी।

1999 और 2000 में साक्षात्कार के लिए बुलाए जाने के बावजूद, उन्हें पदोन्नति के लिए अनुशंसित नहीं किया गया, जबकि उनके जूनियरों को 2001 में पदोन्नत किया गया था। अधिकारियों ने पुनर्विचार के ‌लिए दिए गए उनके रिप्रेजेंटेशन को अस्वीकार कर दिया।

इसलिए, उन्होंने केंद्रीय प्रशासन न्यायाधिकरण (कैट) से संपर्क किया। आवेदन के लंबित रहने के दौरान, मिन‌िस्ट्री ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इन-सीटू प्रमोशन अंडर फ्लेक्सिबल कॉम्‍प्‍लिमेंटिंग स्‍कीम ) रूल, 1998 पारित किया गया। प्रतिवादी चार साल तक 'वैज्ञानिक डी' के रूप में कार्य करने के बाद 'वैज्ञानिक ई' पद पर पदोन्नति के लिए पात्र हो गई।

ट्रिब्यूनल ने अपीलकर्ता को पदोन्नति के लिए वैज्ञानिकों के चयन के लिए दिशानिर्देशों को स्पष्ट करने का निर्देश दिया। इसने उनसे मूल्यांकन बोर्ड से उच्च रेटिंग प्राप्त करने के बावजूद प्रतिवादी को उसकी पदोन्नति न होने के कारणों के बारे में सूचित करने के लिए भी कहा।

ट्रिब्यूनल ने कहा,

“हालांकि हम आवेदक की इस प्रार्थना से प्रभावित नहीं हैं कि प्रतिवादियों को उन्हे उस तारीख से वैज्ञानिक ई (तकनीकी निदेशक का ग्रेड) में पदोन्नति देनी चाहिए, जब उनके जूनियर्स को पदोन्नति नीति के रूप में उन पदों पर पदोन्नत किया गया था। वैज्ञानिक वरिष्ठता के सिद्धांत पर आधारित नहीं है, बल्कि पूरी तरह से योग्यता के आधार पर है जैसा कि उनकी ओर से काउंटर में और साथ ही मौखिक तर्क के दौरान हमारे सामने प्रतिपादित किया गया है।''

इससे परेशान होकर प्रतिवादी ने हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की। हालांकि नियम 4(बी) की वैधता को चुनौती नहीं दी गई, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे "अल्ट्रा वायर्स" घोषित कर दिया। हाईकोर्ट अपीलकर्ता को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप नियम 4 (बी) में संशोधन करने का निर्देश दिया और घोषणा की कि 'लचीली पूरक योजना' के तहत पदोन्नति में वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) और साक्षात्कार स्कोर दोनों पर विचार किया जाना चाहिए।

मामला आखिरकार सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया, जिसने पाया कि प्रतिवादी ने केवल कैट के आदेश को पलटने की मांग की थी और नियम 4(बी) को अमान्य घोषित करने के लिए नहीं कहा था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

“रिट याचिका में की गई प्रार्थना पर विचार करते हुए यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी संख्या एक ने नियमों के नियम 4(बी) को अल्ट्रा वायर्स घोषित करने के लिए कोई आधार निर्धारित नहीं किया। रिट याचिका में ऐसी किसी राहत की प्रार्थना भी नहीं की गई थी। रिट याचिका में प्रतिवादी संख्या एक ने केवल कैट के आदेश को रद्द करने के लिए सर्टिओरी प्रकृति की रिट की मांग की। इसलिए दिए गए तथ्यों में हाईकोर्ट के पास नियम 4(बी) को अल्ट्रा वायर्स घोषित करने का कोई मौका नहीं था।

इसलिए, अदालत ने अपील की अनुमति दी और हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। जिसका नतीजा यह रहा कि प्रतिवादी को पदोन्नति से इनकार करने में अवैधता का सवाल नहीं उठा।

केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मंजूरानी राउत्रे

साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एससी) 745


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