विदेशी अवार्ड को मान्यता देने और लागू करने के हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका बहुत ही बारीक आधार पर टिकेगी : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-10-16 05:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विदेशी अवार्ड (आदेश) को मान्यता देने और उसे लागू करने से संबंधित हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) एक अत्यंत संकीर्ण आधार पर टिकी होगी।

कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ रिस्पॉन्सिव इंडस्ट्रीज लिमिटेड द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज करते हुए कहा कि अपवाद के मामलों में मध्यस्थता कानून की धारा 48 की खुल्लमखुला अवहेलना अंधाधुंध इस्तेमाल किया जाने वाला मंत्र नहीं है।

बेंच ने दलीलों पर विचार करते हुए 'विजय कारिया और अन्य बनाम प्राइसमियन केवी ई सिस्टेमी एसआरएल' में की गयी उन टिप्पणियों पर भी ध्यान दिया, जिसमें कहा गया था कि विदेशी अवार्ड को मान्यता देने और लागू करने से इनकार करने के फैसले के खिलाफ अपील की व्यवस्था तो है, लेकिन दूसरे तरीके से नहीं (अर्थात् अवार्ड को मान्यता देने और लागू करने के खिलाफ नहीं)। न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की खंडपीठ ने संबंधित फैसले के पैरा 24 का हवाला देते हुए कहा :

यह पैराग्राफ किसी भी संदेह से परे स्पष्ट करता है कि अनुच्छेद 136 का इस्तेमाल मध्यस्थता कानून 1996 की धारा 50 में निहित वैधानिक योजना को नाकाम करने के लिए नहीं किया जा सकता। यदि हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश द्वारा मध्यस्थता कानून की धारा 48 के तहत कोई अवार्ड लागू किया जाता है तो ऐसे निर्णय के खिलाफ कोई अपील नहीं टिकेगी। जाहिर है, वैधानिक योजना इंगित करती है कि यदि एकल न्यायाधीश का फैसला गलत भी होता है तो भी इसके खिलाफ अपील नहीं किया जा सकेगा।

इस प्रकार, हमने पैराग्राफ 24 में निर्धारित किया है कि अनुच्छेद 136 के तहत अपील अत्यंत बारीक आधार पर टिकी होगी। यदि मध्यस्थता कानून की व्याख्या के तहत कुछ नया अथवा अनोखा बिंदु उठाया गया है, जिसका उत्तर सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दिया है, तभी अपील पर विचार किया जायेगा, अन्यथा नहीं। संबंधित फैसले की इस टिप्पणी के बारे में कि, इस तरह की अपील केवल मध्यस्थता कानून की धारा 48 के खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन का अपवाद होगी, बेंच ने आगे कहा :

"सभी अपवाद मामलों में मध्यस्थता कानून की धारा 48 का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किसी मंत्र की तरह नहीं है, जिसका अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा सकता है। दुर्भाग्यवश, हम पाते हैं कि हमारे समक्ष एक केस के बाद जो दूसरे केस आते रहते हैं वे असामान्य होते हैँ। मौजूदा मामले में ऐसा कोई महत्वपूर्ण कारण नहीं है जिससे अनुच्छेद 136 के तहत हमारे अधिकार क्षेत्र का प्रवेश द्वार खोलेगा, जैसा संबंधित पैराग्राफ 24 में बताया गया है।"

कोर्ट ने इस प्रकार याचिकाकर्ताओं पर 10-10 लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए एसएलपी खारिज कर दी।

केस का नाम : रिस्पॉन्सिव इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम बनयान ट्री ग्रोथ कैपिटल एल. एल. सी (स्पेशल लीव टू अपील (सिविल) नं. 11404- 11405 / 2020

कोरम : न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ

वकील: सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी एवं सीनियर एडवोकेट के. वी. विश्वनाथन

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