शरीयत कानून में मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव, संपत्ति बंटवारे में पुरुषों को अधिक हिस्सा मिलता है: सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2023-03-17 11:41 GMT

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है जिसमें कहा गया है कि शरीयत कानून के अनुसार परिवार की संपत्ति का विभाजन मुस्लिम महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण है क्योंकि यह एक पुरुष की तुलना में एक महिला को समान हिस्सा नहीं देता है।

बुशरा अली की ओर से दायर याचिका में कहा गया है,

"संविधान की गारंटी के बावजूद, मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है।"

वह एक विभाजन सूट में एक डिक्री धारक है जिसके तहत उसे अपने पुरुष समकक्षों के रूप में केवल आधे शेयर आवंटित किए गए थे।

बुशरा को उनकी पैतृक संपत्ति में 7/152 शेयर आवंटित किए गए थे जबकि उनके पुरुष समकक्षों को 14/152 शेयर दिए गए थे।

इस प्रकार उन्होंने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2 को संविधान के अनुच्छेद 15 के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी।

वकील बीजो मैथ्यू जॉय के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि अधिनियम एक पूर्व-संवैधानिक विधायिका है जो सीधे भारत के संविधान के अनुच्छेद 13 (1) के अंतर्गत आती है।

जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने आज इस मामले में नोटिस जारी किया।

याचिका में सवाल उठाया गया है कि क्या मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2, एक पुरुष की तुलना में एक महिला को समान हिस्सा नहीं देने की हद तक संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है और इसलिए संविधान के अनुच्छेद 13 के अनुसार शून्य है?

केस टाइटल: बुशरा अली बनाम इरफ़ान अहमद व अन्य।

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