सीआरपीसी की धारा 313 कोरी औपचारिकता नहीं, आरोपी को परिस्थितियों के बारे में बताना होगा: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-12-15 11:01 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 313 सीआरपीसी के तहत एक आरोपी से पूछताछ करते समय, उसे उसके खिलाफ सबूतों में दिखाई देने वाली परिस्थितियों को स्पष्ट किया जाना चाहिए।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने कहा,

"यदि अभियुक्त को उन साक्ष्यों में उसके खिलाफ दिखाई देने वाली महत्वपूर्ण परिस्थितियों के बारे में नहीं बताया गया है, जिस पर उसकी दोषसिद्धि आधारित होने की मांग की गई है, तो अभियुक्त अपने खिलाफ रिकॉर्ड में लाई गई उक्त परिस्थितियों को स्पष्ट करने की स्थिति में नहीं होगा। वह उचित तरीके से अपना बचाव करने में सक्षम नहीं होगा।"

अदालत ने हत्या के आरोपी की ओर से दायर एक अपील की अनुमति देते हुए उक्त टिप्‍पणी की। अपील में उसने तर्क दिया था कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 213 के अनुसार एक उचित आरोप तय करने में चूक हुई थी...।

पीठ ने कहा कि इस मामले में साक्ष्य यह है कि अभियुक्तों ने धारदार हथियारों का इस्तेमाल करके मृतक की हत्या की, लेकिन उनके खिलाफ यह आरोप नहीं लगाया गया कि उन्होंने उसकी हत्या की। अदालत ने कहा कि आरोपी द्वारा हत्या के अपराध को अंजाम देने के तरीके को बताते हुए धारा 213 के तहत आरोप तय करना जरूरी था।

खंडपीठ ने कहा,

"जब अपील की अदालत को यह तय करने के लिए कहा जाता है कि क्या आरोप तय करने में चूक या आरोप में त्रुटि के कारण न्याय की कोई विफलता हुई है, तो न्यायालय सभी प्रदर्शित दस्तावेजों, बयान और धारा 313 के तहत दर्ज अभियुक्तों के बयान सहित परीक्षण के पूरे रिकॉर्ड की जांच करने के लिए बाध्य है।"

इसके अलावा, अदालत ने कहा कि इस मामले में अभियुक्तों के खिलाफ साक्ष्य में दर्ज की गई भौतिक परिस्थितियां कि मृतक की मृत्यु उनके द्वारा किए गए हमले के कारण लगी चोटों के कारण हुई थी, कभी भी अभियुक्तों के सामने नहीं रखी गई थी।

खंडपीठ ने कहा,

"धारा 313 सीआरपीसी के तहत एक आरोपी से पूछताछ करना खाली औपचारिकता नहीं है। धारा 313 सीआरपीसी की आवश्यकता यह है कि आरोपी को उसके खिलाफ सबूतों में दिखाई देने वाली परिस्थितियों को स्पष्ट किया जाना चाहिए ताकि आरोपी स्पष्टीकरण दे सके। धारा 313 सीआरपीसी के तहत आरोपी से पूछताछ के बाद, वह बचाव पक्ष के गवाहों की जांच करने और अन्य सबूतों को पेश करने के सवाल पर निणर्य लेने का हकदार है।

यदि अभियुक्त को उसके खिलाफ दिखाई देने वाली महत्वपूर्ण परिस्थितियों को उन साक्ष्यों में स्पष्ट नहीं किया जाता है, जिन पर उसकी सजा पर आधारित होने की मांग की जाती है, तो अभियुक्त उसके खिलाफ रिकॉर्ड में लाई गई उक्त परिस्थितियों को स्पष्ट करने की स्थिति में नहीं है।"

अदालत ने इस प्रकार पाया कि सीआरपीसी की धारा 213 के संदर्भ में एक उचित आरोप तय करने में चूक के कारण, और धारा 313 के तहत बयान में साक्ष्य में आने वाली महत्वपूर्ण परिस्थितियों को न रखने के कारण आरोपी को गंभीर पूर्वाग्रह हुआ। अदालत ने तब अपील की अनुमति दी और अभियुक्तों को बरी कर दिया।

केस डिटेलः कालीचरण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | 2022 लाइवलॉ (SC) 1027 | CRA 122 OF 2021 | 14 दिसंबर 2022 | जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका

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