दूसरी अपील : हाईकोर्ट द्वारा तब तक निर्णय में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए जब तक कानून का व्यापक प्रश्न न शामिल हो, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया है कि हाईकोर्ट द्वारा नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 100 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए प्रथम अपीलीय अदालत के फैसले में तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कि कानून का व्यापक प्रश्न इसमें शामिल न हो।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की खंडपीठ ने कहा कि प्रथम अपीलीय अदालत तथ्यों के संदर्भ में अंतिम अदालत है।
इस मामले में, ट्रायल कोर्ट ने बंटवारे के मुकदमे में अपना निर्णय सुनाया था। प्रथम अपीलीय अदालत ने एक प्रॉपर्टी को छोड़कर 'फाइनल डिक्री प्रोसिडिंग्स' के तहत जारी निर्णय और डिक्री को बरकरार रखा। हाईकोर्ट ने प्रथम अपीलीय अदालत के फैसले को इस आधार पर खारिज कर दिया कि ब्लॉक नं. 5 की भूमि गैर-कृषि क्षमता वाली है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने ब्लॉक नं. 5 में सभी पक्षों की हिस्सेदारी के आवंटन पर पुनर्विचार के लिए यह मामला ट्रायल कोर्ट स्थानांतरित कर दिया। कोर्ट ने उस दलील पर सहमति जतायी कि वादियों के पक्ष में सम्पूर्ण ब्लॉक नं. 5 का आवंटन बचाव पक्षों के लिए गम्भीर पूर्वाग्रह का कारण बनेगा।
अपील में कोर्ट ने संज्ञान लिया कि प्रथम अपीलीय अदालत ने गैर - कृषि क्षमता के संदर्भ में दलील स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
इसलिए हाईकोर्ट के दृष्टिकोण से असहमति जताते हुए बेंच ने कहा :
"प्रथम अपीलीय अदालत तथ्यों से संबंधित अंतिम अदालत है। इस कोर्ट ने बार - बार यह स्पष्ट किया है कि हाईकोर्ट द्वारा सीपीसी की धारा 100 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए प्रथम अपीलीय अदालत के फैसले में तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कि कानून का व्यापक प्रश्न इसमें शामिल न हो। हाईकोर्ट ने प्रथम अपीलीय अदालत के निर्णय को खारिज करके और प्रथम अपीलीय अदालत द्वारा दर्ज किये गये तथ्यात्मक निष्कर्षों पर अलग मंतव्य जारी करते हुए अंतिम डिक्री में गलती ढूंढकर त्रुटि की है।"
बेंच ने अपील मंजूर करते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी डिक्री को प्रथम अपीलीय अदालत द्वारा मंजूर की गयी सीमा तक बरकरार रखा।
केस : मल्लनागौड़ा बनाम निंगानागौड़ा
कोरम : न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव एवं न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट
साइटेशन : एल एल 2021 एस 188
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