लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा पर महुआ मोइत्रा के पत्र के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया
COVID-19 महामारी के मद्देनजर लगाए गए लॉकडाउन के बीच प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा को उजागर करते हुए संसद सदस्य महुआ मोइत्रा ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मुकदमा दर्ज किया है।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता की खंडपीठ इस मामले पर शुक्रवार को विचार करेगी। मोइत्रा ने कहा है कि वह मामले में व्यक्तिगत रूप से पेश होंगी।
पत्र में कृष्णानगर (पश्चिम बंगाल) से टीएमसी सांसद ने कहा कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से केरल, गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, दिल्ली, गुड़गांव आदि जगहों से अपने क्षेत्र के फंसे हुए प्रवासी कामगारों से मदद के लिए 300 से अधिक अनुरोध प्राप्त हुए हैं। उन्होंने पत्र के साथ मज़दूरों के कुछ संदेश भी संलग्न किए हैं।
उन्होंने पत्र में कहा,
"इन गरीब श्रमिकों में से कुछ ने निर्माण स्थलों पर काम कर रहे थे और कुछ ने कारखानों में काम किया। वे अपने घरों से हजारों किलोमीटर दूर हैं और अत्यधिक पीड़ा में हैं।"
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जजों से कहा,
'' इन गरीब कामगारों के जीवन के नुकसान और इनकी भयानक कठिनाइयों के बीच मैं, यौर लोर्डशिप आपके समक्ष यह मामला उठाते हुए उनकी समस्या दूर करने के लिए तत्काल भारत सरकार और निजी नियोक्ताओं को उचित निर्देश जारी करने का अनुरोध करती हूं। ''
उन्होंने कार्यकारी एजेंसियों और नियोक्ताओं को फंसे श्रमिकों के लिए व्यवस्था करने के लिए निर्देश देने की भी मांग की है, साथ ही इस अवधि के दौरान उन्हें भोजन, राशन और आश्रय देने के साथ इन श्रमिकों को मजदूरी जारी करने के लिए निर्देश की मांग की।
मोइत्रा ने पत्र में कहा,
"माय लॉर्ड, ये मज़दूर गरीबों में सबसे गरीब हैं और वे दैनिक मजदूरी पर निर्वाह करते हैं। जब तक कि कार्यकारी एजेंसियों द्वारा एक गंभीर और तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया जाता है, हजारों भुखमरी से नष्ट हो जाएंगे और लाखों को फैलते हुए COVID 19 वायरस से संक्रमित होने के जोखिम में डाल दिया जाएगा।"
31 मार्च को मुख्य न्यायाधीश बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने प्रवासी श्रमिकों के कल्याण के लिए एक अन्य जनहित याचिका में दिशा-निर्देश जारी किए थे।