केबीसीः स्टार टीवी और एयरटेल को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया एनसीडीआरसी का फैसला

Update: 2020-01-24 09:30 GMT

स्टार टीवी और भारती एयरटेल को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन (एनसीडीआरसी) के एक आदेश को रद्द कर दिया है।

कमीशन ने अपने आदेश में स्टार टीवी ओर भारती एयरटेल को क्विज़ शो 'कौन बनेगा करोड़पति' (केबीसी) के संबंध में कथित अनुचित कारोबारी तरीकों के लिए एक करोड़ रुपयों के दंडात्मक नुकसान का भुगतान संयुक्त रूप से करने का निर्देश दिया था।

अगस्त 2007 में, सोसाइटी ऑफ कैटालिस्ट्स ने स्टार इंडिया और भारती एयरटेल के खिलाफ नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन के समक्ष एक शिकायत दर्ज की, जिसमें कहा गया था कि 'कौन बनेगा करोड़पति' और एक अन्य प्रतियोगिता हर सीट हॉट सीट में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अनुचित कारोबारी तरीका था।

केबीसी में होम आडियंस के लिए एक सेगमेंट था, 'हर सीट हॉट सीट', जिसमें उनसे शो के बीच में सामान्य ज्ञान के सवाल पूछे जाते थे। होम आड‌ियंस उन सवालों का जवाब लागू टैर‌िफ दरों पर अपने एमटीएनएल/ बीएसएनएल लैंडलाइन से कॉल करके या एयरटेल कनेक्शन के जरिए एसएमएस करके दे सकते थे।

विजेता को सही जवाब देने वाले प्र‌तिभागियों में से कम्यूटर की सहायता से चुना जाता था और उन्हें दो लाख रुपए की पुरस्कार राश‌ि से सम्‍मानित किया जाता था।

एनसीडीआरसी के समक्ष दर्ज श‌िकायत में अन्य विषयों के साथ आरोप लगाया गया था कि 'हर सीट हॉट सीट' के आयोजन में स्टार ऐसा ‌दिखावा करता था कि प्रतियोगिता में भाग लेना मुफ्ता था, मतलब यह कि प्र‌तियोग‌िता की पुरस्‍कार राश‌ि स्टार खुद अदा कर रहा है, जबकि तथ्‍य यह था कि पुरस्‍कार राश‌ि कथ‌ित रूप से प्रतिभागियों द्वारा की गई फोन कॉल्स और एसएमएस के जर‌िए हुई कमाई से दी जाती थी।श‌िकायत में कहा गया था कि ये तरीका उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार एक अनुचित कारोबारी तरीका था।

दूसरी ओर, स्टार ने दलील दी कि सोसायटी द्वारा कोई भी सबूत/दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया और ना ही उनके द्वारा कथित तौर पर किए गए सैंपल सर्वे का कोई फायदा हुआ।

इसके अलावा, कौन बनेगा करोड़पति या हर सीट हॉट सीट का 'प्रायोजन' उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2 (1) (आर) (3) (ए) के मायनों के भीतर अनुचित करोबारी तरीका नहीं था। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम वास्तविक प्रायोजकों को 'अनुचित कारोबारी तरीके' की श्रेणी में नहीं रखता।

यह भी दलील दी गई कि स्टार केबीसी और हर सीट हॉट सीट का आर्गनाइजर था, जिनमें भागीदारी नि: शुल्क थी। स्टार ने केबीसी या हर सीट हॉट सीट के प्रतिभागियों से कोई शुल्क नहीं लिया। केवल इसलिए कि स्टार द्वारा प्रतिभागियों को वितर‌ित किए गए पुरस्कार प्रायोजकों जैसे एयरटेल आदि द्वारा दिए गए पैसों से थे, यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (1) (आर) (3) (ए) या धारा 2 (1) (आर) (3) (बी) के तहत अनुचित कारोबारी तरीकों का कारण नहीं बनते।

2008 में, एनसीडीआरसी ने अपने आदेश में कहा था कि स्टार और एयरटेल ने पुरस्कार राशि के स्रोत का खुलासा नहीं किया है और ऐसी स्‍पष्‍ट धारणा बनाई कि पुरस्कार राशि उन्हीं से निकली है जबकि वास्तव में पुरस्कार राशि स्टार और एयरटेल द्वारा प्रतिभागियों से मिले एसएमएस से प्राप्त संग्रह से चुकाई गई थी।

यह तरीका अनुचित कारोबारी तरीका ‌था। कमीशन ने स्टार और एयरटेल पर एक करोड़ रुपए के दंडात्मक नुकसान के साथ मुकदमे की लागत के 50 हजार रुपए का बोझ डाला।

इसके बाद, स्टार इंडिया और एयरटेल ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलें दायर कीं। सुप्रीम कोर्ट ने 21 नवंबर 2008 को एनसीडीआरसी के आदेश पर रोक लगा दी।

23 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने स्टार इंडिया और भारती एयरटेल द्वारा दायर अपीलों को स्वीकार कर लिया और एनसीडीआरसी के आदेश को रद्द कर ‌‌दिया।

जस्टिस मोहन एम शांतनगौदर और सुभाष रेड्डी की बेंच ने कहा, "1986 के अधिनियम की धारा 2 (1) (आर) (3) (ए) के तहत 'अनुचित कारोबारी तरीके' को साबित करने के लिए कमीशन के पास कोई ऐसी दूसरी सामग्री नहीं है, जिस पर भरोसा किया जा सके।"

निर्णय डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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