लॉकडाउन के दौरान कर्मियों को वेतन का पूर्ण भुगतान करने के गृह मंत्रालय के आदेश के कार्यान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा
कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों को पूर्ण मजदूरी के भुगतान करने के लिए गृह मंत्रालय की अधिसूचना के कार्यान्वयन पर एक्शन प्लान ( कार्रवाई योजना) के बारे में पूछते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को इस संबंध में अपनी "नीति को रिकॉर्ड" पर रखने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति एनवी रमना, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति बीआर गवई की खंडपीठ ने निजी कंपनियों द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई के दौरान केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया। इन याचिकाओं में कर्मचारियों और अपेक्षित कर्मचारियों को पूर्ण मजदूरी के भुगतान को चुनौती दी गई है।
इस विषय में तीन कंपनियों मुंबई स्थित फर्म, नागरीका एक्सपोर्ट्स, कर्नाटक स्थित कंपनी फिकस पैक्स प्राइवेट लिमिटेड, और पंजाब स्थित लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन ने याचिकाएं दायर की हैं।
इस दौरान नागरीका एक्सपोर्ट्स ने अपनी याचिका वापस ले ली, जबकि फिकस पैक्स ने 20 मार्च और 29 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि सचिव (श्रम और रोजगार) द्वारा 20 मार्च को अधिसूचित एडवाइज़री और 29 मार्च को गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचित आदेश का खंड (iii) संविधान के प्रावधानों के विपरीत हैं। याचिकाकर्ता कंपनी, जिसने लॉकडाउन से पहले 176 स्थायी कर्मचारियों और 939 संविदाकर्मियों को काम पर रखा था, उसने न्यायालय को इससे होने वाली कठिनाइयों से अवगत कराया है।
याचिका में बताया गया है कि मासिक व्यापार 5-6% तक कम हो गया है, मार्च महीने के लिए सभी श्रमिकों (अनुबंध श्रमिकों सहित) को मजदूरी का भुगतान किया गया है, और अधिकांश श्रमिक काम के लिए नहीं आते क्योंकि वो मानते हैं कि काम ना भी करेंगे तो वो मज़दूरी प्राप्त करेंगे।
लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन का मानना था कि लॉकडाउन के दौरान कंपनियों को को भी आर्थिक नुकसान हो रहा है, इसलिए उन्हें लॉकडाउन के दौरान अपने काम करने वालों को भुगतान करने से छूट दी जानी चाहिए।
इसके अतिरिक्त, पंजाब स्थित इकाई ने विशेष रूप से आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत जारी गृह मंत्रालय के आदेश को चुनौती दी थी,जिसमें कहा गया था कि अनुच्छेद 14, 19 (1) (जी), 265 और 300 के अनुसार दिए गए बुनियादी संवैधानिक सिद्धांतों और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है।
अधिवक्ता राजीव रॉय, जे कामा और अभय नेगी ने याचिकाकर्ता के लिए तर्क रखे।