दोषी को आपराधिक अपील दायर करने से पहले आत्‍मसमर्पण करने के लिए कहने का सुप्रीम कोर्ट का नियम संवैधानिक नहीं, सुप्रीम कोर्ट में याचिका

Update: 2021-01-22 11:59 GMT

Supreme Court of India

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक रिट याचिका पर विचार किया, जिसने सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के एक नियम को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि एक दोषी को सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक अपील दायर करने के लिए आत्मसमर्पण का प्रमाण प्रस्तुत करना चाहिए।

रिट याचिका ने सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के आदेश XXII के नियम 5 की वैधता को चुनौती दी है, क्योंकि यह उन मामलों में संविधान के अनुच्छेद 14/21 के अधिकारातीत है, जहां दोषियों को हाईकोर्ट द्वारा आत्मसमर्पण करने का समय दिया गया है। (महेंद्र नंदराम परदेशी बनाम महासचिव, सुप्रीम कोर्ट)

उक्त नियम के अनुसार, यदि कारावास की सजा के खिलाफ याचिका दायर की जाती है, तो यह याचिकाकर्ता के आत्मसमर्पण के प्रमाण के साथ या समर्पण से छूट की मांग के आवेदन के साथ होनी चाहिए। यदि याचिकाकर्ता छूट का आवेदन दायर करने का विरोध करता है, तो केवल इस प्रकार के आवेदन को मुख्य याचिका से पहले पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा।

अधिवक्ता अमित पई के माध्यम से दायर रिट याचिका के अनुसार, यह नियम मनमाना और अनुचित है, जब यह किसी व्यक्ति को आत्मसमर्पण करने के लिए समय देने के हाईकोर्ट के आदेशों के साथ असंगत है।

"... माननीय हाईकोर्ट, संवैधानिक न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति के आधार पर याचिकाकर्ता को ‌दिए गए एक लाभ को, संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत मूल याचिका की सुनवाई के लिए एक पूर्व शर्त के रूप में सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के आदेश XXII के नियम 5 के संचालन से उपेक्षित नहीं किया जा सकता है। यह प्रस्तुत किया गया है कि इस प्रकार की उपेक्षा अनुचित और अन्यायपूर्ण होगी....।"

अदालत में जिरह 

रिट याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर बसंत ने, सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यन की पीठ के समक्ष पेश हुए।

बसंत ने कहा कि याचिकाकर्ता को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया था। 23.10.2020 को हाईकोर्ट ने उनकी अपील को खारिज कर दिया, लेकिन उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए फैसला अपलोड किए जाने की तारीख से 12 सप्ताह का समय दिया। 27.10.2020 को फैसला अपलोड किया गया।

इसका मतलब यह है कि उनके पास आत्मसमर्पण के लिए 26.01.2021 तक का समय है। 07.12.2020 को, उन्होंने विशेष अनुमति याचिका दायर की, लेकिन एसएलपी को इसलिए सूचीबद्ध नहीं किया जा रहा है क्योंकि याचिकाकर्ता ने आत्मसमर्पण नहीं किया है।

वरिष्ठ वकील ने कहा कि हाईकोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अपनी निहित शक्तियों का प्रयोग करके आत्मसमर्पण का समय दिया।

सुप्रीम कोर्ट के नियम ऐसी शर्त नहीं रख सकते, जो वैधानिक शक्ति के तहत जारी दिशा-निर्देश के अनुरूप न हो। संविधान का अनुच्छेद 145, जो सुप्रीम कोर्ट नियमों की शक्ति का स्रोत है, का कहना है कि इस तरह के नियम संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के अधीन होने चाहिए।

इसलिए, बसंत ने तर्क दिया, याचिकाकर्ता को आत्मसमर्पण करने के लिए कहना, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए समय दिया है, यह कानून में अरक्षणीय है।

उन्होंने पूछा, "क्या नियम का अर्थ यह लगाया जा सकता है कि मुझे अपनी याचिका पर विचार करने के लिए भी आत्मसमर्पण करना चाहिए, जबकि हाईकोर्ट ने धारा 482 के निर्देश के तहत मुझे आत्मसमर्पण करने का समय दिया है?"

सीजेआई ने कहा कि याचिकाकर्ता को ऐसे मामले में आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन अपील पर विचार समर्पण के बाद ही होगा। उन्होंने कहा, "आपको आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन आप यह नहीं कह सकते कि आप अपने आत्मसमर्पण से पहले अपील पर विचार करने के हकदार हैं।"

बसंत ने उत्तर दिया, "जब मैं आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य नहीं हूं, तो आत्‍मसमर्पण तक अपील के विचार को स्थगित नहीं किया जा सकता। नियम की व्याख्या नागरिक की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए की जानी चाहिए।"

सीजेआई ने जवाब दिया, "आपकी स्वतंत्रता संरक्षित है। हम आपको 12 सप्ताह से पहले आत्मसमर्पण करने के लिए नहीं कह रहे हैं।"

सीजेआई ने कहा कि नियम 5 के तहत आत्मसमर्पण हमेशा आवश्यक नहीं होता है क्योंकि यह छूट आवेदन दाखिल करने का विकल्प देता है। उन्होंने कहा, "नियम 5 आपको समर्पण से छूट का आदेश प्राप्त करने के लिए अपील के विषय पर विचार नहीं करता है। नियम केवल यह कहता है कि अपील को स्वीकार नहीं किया जाएगा, जब तक कि यह एक आवेदन के साथ समर्पण से छूट की मांग नहीं करता। आप छूट आवेदन में यह नहीं कह सकते हैं कि अपने आत्मसमर्पण नहीं किया क्योंकि आपने हाईकोर्ट ने समय दिया है।"

बसंत ने कहा कि 'अत्यधिक सावधानी' बरतते हुए, याचिकाकर्ता ने ऐसे छूट आवेदन दायर किए हैं, जिसमें हाईकोर्ट के छूट के आदेश का उल्लेख किया गया है, और फिर भी अपील पर विचार के लिए सूचीबद्ध नहीं किया जा रहा है।

सीजेआई ने कहा, "अपील को सूचीबद्ध किया जा सकता है। आत्मसमर्पण के आवेदन में केवल यह कहना है कि आपको आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आपके पास हाईकोर्ट का आदेश है।"

बसंत ने उत्तर दिया, "मैं यही चाहता हूं। कृपया मेरी अपील को स्वीकार करने का निर्देश दें।"

सीजेआई ने सहमति व्यक्त की और अगले सप्ताह अपील की सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया 

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