सुप्रीम कोर्ट ने निजी गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में फीस नियंत्रित करने के कलकत्ता HC के आदेश को निलंबित किया, याचिकाकर्ता को आदेश वापस लेने की अर्जी के लिए कहा
सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ निजी गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के एक समूह द्वारा दाखिल एसएलपी का निपटारा कर दिया जिसमें उन्हें छात्रों को ऑनलाइन परीक्षाओं में भाग लेने, फीस का भुगतान न करने के लिए प्रतिबंधित करने से रोक दिया था।
जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की 3-जजों वाली बेंच ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया है कि वे हाईकोर्ट से अपना आदेश वापस लेने के लिए संपर्क करें।
इस बीच,पीठ ने आदेश वापस लेने के आवेदन का फैसला होने तक उस फैसले को निलंबित कर दिया है।
आदेश इस प्रकार है:
"हमारा विचार है कि इन विशेष अनुमति याचिकाओं में इस अदालत द्वारा कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। जहां तक दिनांक 18.08.2020 के आदेश का संबंध है, हम याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय को आदेश वापस लेने / 18.08.2020 के आदेश का संशोधन करने का आवेदन करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं।
जब तक याचिकाकर्ता के ऐसे आवेदन पर आदेश पारित नहीं किए जाते हैं, दिनांक 18.08.2020 के आदेश को प्रभाव नहीं दिया जाएगा, और उस आदेश को निलंबन में रखा जाना चाहिए। हालांकि, हम, उन मुद्दों को देखते हुए, जो रिट याचिका में शामिल हैं,ये कह सकते हैं कि उच्च न्यायालय सभी मुद्दों पर जल्द तारीख तय कर सकता है। "
दरअसल वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान, वकील रोहित अमित स्थालेकर और संकल्प नारायण के माध्यम से याचिकाकर्ता ने
शीर्ष अदालत से गुहार लगाई थी कि ये आदेश संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और प्रशासन करने के अधिकार में दखल देता है और इसलिए इसे रद्द करना चाहिए।
शहर के और आसपास के 110 से अधिक निजी, बिना मान्यता प्राप्त स्कूलों में दाखिला लेने वाले 15,000 से अधिक छात्रों के माता-पिता की ओर से दायर रिट याचिका में यह आदेश पारित किया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया था कि उपर्युक्त रिट याचिका प्रबंधन समिति, ला मार्टिनियर कॉलेज, लखनऊ बनाम वत्सल गुप्ता और अन्य, 2016 SCC ऑनलाइन SC 43, के संदर्भ में सुनवाई योग्य नहीं थी, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना है कि एक निजी गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थान के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
इसके अलावा उन्होंने प्रस्तुत किया कि स्कूलों की आय / व्यय विवरणों के साथ खातों की ऑडिट की गई किताबों को जमा करने के दिशा-निर्देश याचिकाकर्ताओं के अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए "गंभीर कठिनाई और पक्षपात" का कारण बनते हैं, जो निजी तौर पर बिना मान्यता प्राप्त हैं और अल्पसंख्यक स्कूलों का प्रबंधन और नियंत्रण डाइअसस ऑफ कलकत्ता,चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया द्वारा नियंत्रित किया जाता है और सीबीएसई और आईएससी बोर्डों से संबद्ध हैं।
याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए अन्य दलील हैं:
• याचिकाकर्ता गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान है और जहां तक फीस के निर्धारण में विवेकाधिकार के मुद्दे के रूप में संबंधित है, ' राज्य' का हस्तक्षेप केवल कैपिटेशन शुल्क ( टीएमए पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य, (2002) 8 SCC 481) के वसूलने और मुनाफाखोरी रोकने के लिए कम से कम हो सकता है।
• माननीय उच्च न्यायालय के पास गैर सहायता प्राप्त निजी अल्पसंख्यक संस्थान में शुल्क निर्धारण से संबंधित मुद्दे को तूल देने और आदेश पारित करके विधानमंडल के जूते में पैर रखने का कोई अवसर नहीं है।
• उत्तरदाता उस क्षमता को प्रदर्शित करने में विफल रहे हैं, जिसमें याचिकाकर्ता स्कूल, जिन्हें राज्य सरकार से कोई अनुदान प्राप्त नहीं होता है, के खिलाफ किसी अभिभावक द्वारा कोई शिकायत किए बिना और बिना फीस वृद्धि के कोई भी याचिका दायर की जा सकती है जैसा कथित रूप से फीस को लेकर रिट याचिका में दावा किया गया है।
• याचिकाकर्ता महामारी के दौरान
अपने शिक्षण और गैर-शिक्षण से जुड़े सभी कर्मचारियों का वेतन का भुगतान कर रहे हैं और भूमि और भवन जैसे अपनी निश्चित परिसंपत्तियों के रखरखाव में निरंतर और आवर्ती व्यय भी कर रहे हैं और संस्थान को चलाने के लिए लागत भी दे रहे हैं।