दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे का डीएनए मिलान न होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दी 84 वर्षीय आरोपी को ज़मानत

Update: 2020-08-25 07:17 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म के 84 वर्षीय आरोपी को उस वक्त जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया जब डीएनए रिपोर्ट से यह पता चला कि वह दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे का पिता नहीं है।

नाबालिग से बलात्कार के आरोप में एक व्यक्ति के खिलाफ बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था। नाबालिग लड़की ने गत पांच जुलाई को एक बच्चे को जन्म दिया था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया था और इस कारण आरोपी को सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करनी पड़ी थी।

अपनी विशेष अनुमति याचिका में आरोपी ने निवेदन किया था कि वह यह सत्यापित करने के लिए डीएनए टेस्ट कराने को तैयार है कि कथित दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे के लिए वह कतई जिम्मेदार नहीं है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि डीएनए जांच कराने की मांग वाली उनकी अर्जी कलकत्ता हाईकोर्ट में अब भी लंबित है। याचिकाकर्ता के अनुसार, शिकायतकर्ता उसका किरायेदार है और किराये का भुगतान न करने के कारण उनके बीच विवाद हुआ था, जिसके बाद उसके खिलाफ दुष्कर्म का झूठा मुकदमा दर्ज किया गया था।

गत महीने जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया तो आरोपी की ओर से पेश हो रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि आरोपी की उम्र 84 साल है और वह यौन क्रिया के लायक नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि आरोपी डीएनए टेस्ट कराने को भी तैयार हैं।

इन दलीलों के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अपने मुवक्किल को जेल से रिहा करने का न्यायालय से अनुरोध किया था। बेंच ने उसके बाद आरोपी की डीएनए जांच कराने का निर्देश दिया था।

जब यह मामला एक बार फिर 24 अगस्त को न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए आया तो उसने डीएनए जांच रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए कहा :

अपीलकर्ता के वकील के हाथ में भी डीएनए रिपोर्ट मौजूद है और दोनों पक्ष के वकील इस बिंदु पर एक मत हैं कि डीएनए रिपेार्ट से यह प्रदर्शित नहीं होता कि अपीलकर्ता नवजात बच्चे के पिता हैं। इस आधार पर हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि अपीलकर्ता को ट्रायल कोर्ट को संतुष्ट करने वाली शर्तों के अनुरूप जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने कहा कि जहां तक अपीलकर्ता की उस दलील का संबंध है कि यह मकान मालिक और किरायेदार के बीच का विवाद है और उसके खिलाफ झूठा मामला दर्ज किया गया है और इसके लिए आरोपी को उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए, तो यह अब आरोपी पर निर्भर करता है कि वह मुआवजे के दावे के लिए कानून के दायरे में आवश्यक कदम उठाये।

केस का ब्योरा

केस का नाम : जयंत चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल सरकार

केस नं. : क्रिमिनल अपील नंबर 537/2020

कोरम : न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी

वकील : सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड लिज़ मैथ्यू

आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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