अपनी नवजात बच्ची की हत्या करने की आरोपी मां को सुप्रीम कोर्ट ने बरी किया, पढ़ें फैसला

Update: 2019-12-18 01:57 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी नवजात बच्ची की गला दबाकर हत्या करने के आरोपी एक महिला को बरी कर दिया है।

ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन के मामले को बरकरार रखा था कि मंजू ने अपने नवजात जन्मे बच्चे की हत्या इसलिए कर दी, क्योंकि वह एक लड़की थी। उच्च न्यायालय ने धारा 302 आईपीसी और सजा के तहत सजा की पुष्टि की थी।

मंजू ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनगौदर और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि आरोपी ने नवजात बच्ची का गला इसलिए घोंट दिया क्योंकि वह लड़की है। अभियोजन पक्ष का गवाह, महिला का पति, जो बाद में अपने बयान से पलट गया जिसमें उसने कहा था कि उनके पास पहले से ही एक बच्चा (लड़का) है, वे परिवार को पूरा करने के लिए एक लड़की चाहते थे।

बेंच ने कहा,

" यह सच है कि पोस्टमार्टम में डॉक्टर ने कहा है कि मृत्यु श्वासनली के कारण हुई और गला घोंटने के निशान थे, लेकिन साथ ही अगर रिकॉर्ड पर साक्ष्य की समग्रता पर विचार किया जाए तो हत्या का मकसद स्थापित नहीं होता है और किसी मां के लिए यह पूरी तरह से अप्राकृतिक है कि वह गला दबाकर अपने ही बच्चे को मार दे।"  संदेह का लाभ देते हुए पीठ ने आरोपी को बरी कर दिया।

अदालत ने कहा,

" ट्रायल कोर्ट के साथ-साथ हाईकोर्ट ने बिना किसी आधार के अनुमानों पर दोष सिद्ध किया है। यह पूरी तरह से तय है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर पूरी तरह से विश्वास को आधार बनाया गया। जब तक कि परिस्थितियों की एक पूरी श्रृंखला स्थापित न हो जाए, किसी धारणा को दर्ज नहीं किया जा सकता।

रिकॉर्ड पर सबूतों की समग्रता से यह स्पष्ट है कि बच्ची को ऑक्सीजन मास्क के साथ इनक्यूबेटर में रखा गया था और उसने अपनी आंखें भी नहीं खोली थीं और वह जन्म के बाद रोई नहीं थी। ऐसे में स्वाभाविक मृत्यु की संभावना थी। हालांकि डॉक्टर ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इसकी पुष्टि की है, लेकिन मौत का कारण असिफ़िया है लेकिन रिकॉर्ड पर कोई स्पष्ट सबूत नहीं होने के कारण धारा 302 आईपीसी के तहत अपराध के लिए अपीलकर्ता को दोषी ठहराना सही नहीं है।

चूंकि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत उचित संदेह से परे, आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, इसलिए हमारे विचार में यह माना जाता है कि अपीलार्थी खुद पर लगे आरोपों से बरी होने के लिए संदेह के लाभ की हकदार है।

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