'स्कूल गेट के सामने सत्याग्रह!' : सुप्रीम कोर्ट ने संस्था का हिस्सा रहते हुए स्कूल स्टाफ के विरोध की आलोचना की

Update: 2024-11-29 04:41 GMT

स्कूल में कथित भ्रष्टाचार का विरोध करने पर बर्खास्तगी के खिलाफ पूर्व स्कूल कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि कर्मचारी संस्था का हिस्सा रहते हुए अपने नियोक्ता के खिलाफ विरोध नहीं कर सकते।

जस्टिस अभय ओक ने कहा,

"कदाचार देखिए। आप अपने नियोक्ता के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। देखिए, अगर आप भ्रष्टाचार आदि के खिलाफ विरोध करना चाहते हैं तो आपको संस्था से बाहर निकलना होगा। फिर विरोध करना होगा। आप कर्मचारी हैं। आप स्कूल गेट के सामने सत्याग्रह पर बैठे हैं। स्टूडेंट को अनुशासन का पालन करना होगा, शिक्षकों को भी अनुशासन का पालन करना होगा।"

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कर्मचारी से एक वचन मांगा कि वह भविष्य में ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं होगा।

न्यायालय ने कहा,

"हमें लगता है कि अधिकतम इस बात पर विचार किया जा सकता है कि लगाया गया जुर्माना अनुपातहीन है या नहीं। याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता यह वचन देने को तैयार है कि वह भविष्य में आपत्तिजनक गतिविधियों में शामिल नहीं होगा।”

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता शिक्षक नहीं है।

हालांकि, जस्टिस ओक ने दोहराया,

“आप एक कर्मचारी हैं, आपको अनुशासन का पालन करना चाहिए।”

वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता स्कूल प्रबंधन के भीतर भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध कर रहा था, क्योंकि केरल में सरकारी वित्त पोषित संस्थान, एडमिशन देने के लिए पैसे ले रहा था, जिसका उसने पर्दाफाश किया। वकील ने कहा कि अन्य कर्मचारी भी विरोध कर रहे थे, लेकिन केवल याचिकाकर्ता को उसके और स्कूल प्रबंधक के बीच व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण बर्खास्तगी का सामना करना पड़ा।

जस्टिस ओक ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ता भविष्य में ऐसी गतिविधियों से दूर रहेगा। वकील ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि याचिकाकर्ता लगाई गई किसी भी शर्त का पालन करेगा।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा,

“मैं 15 साल से सेवा में हूं। कोई लाभ नहीं। कृपया मुझे सेवा में बहाल करें।”

जस्टिस ओक ने कहा कि न्यायालय को प्रतिवादियों को सुनना है और संबंधित नियमों की जांच करनी है।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि दंड में संशोधन किया भी जाता है, तो बकाया वेतन का मुद्दा नहीं उठेगा। चूंकि राज्य की ओर से कोई प्रतिनिधि उपस्थित नहीं हुआ। इसलिए न्यायालय ने याचिकाकर्ता को राज्य के सरकारी वकील को नोटिस देने का निर्देश दिया और मामले को 17 दिसंबर, 2024 के लिए स्थगित कर दिया।

केस टाइटल- के. शाहुल हमीद बनाम केरल राज्य

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