"यह टिप्पणी चीजों को पितृसत्तात्मक तरीके से देखने का नज़रिया है": जस्टिस दीपक गुप्ता ने सीजेआई के बलात्कार के आरोपी से पीड़िता से शादी करने के बारे में पूछने पर कहा
भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे द्वारा बलात्कार के एक आरोपी से यह पूछने पर कि क्या वह पीड़िता से शादी करेगा, जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा। जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा,
"दुर्भाग्य से जिस तरह से चीजों को देखा गया, उस हिसाब से यह एक बहुत पितृसत्तात्मक तरीके की गई टिप्पणी है। इतना ही नहीं, यह लैंगिग असंवेदनशीलता भी है।"
जस्टिस दीपक गुप्ता ने यह बात सीजेआई एसए बोबडे की उस टिप्पणी के संदर्भ में कही है, जिसमें सीजेआई ने एक मामले की सुनवाई के दौरान एक नाबालिग लड़की के बलात्कार के आरोपी 23 वर्षीय व्यक्ति से पूछा था कि क्या वह उससे शादी करेगा। लड़की की उम्र 16 साल के आस-पास है।
सोमवार को सीजेआई द्वारा इस तरह का सवाल पूछे जाने पर इस प्रकरण के बारे में बहुत चर्चा हुई थी।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ बलात्कार के एक आरोपी द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो महाराष्ट्र में एक सरकारी कर्मचारी है। उसने यह याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर की है, जिसमें हाईकोर्ट ने उसकी अग्रिम जमानत रद्द कर दी थी।
सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश दीपक गुप्त ने सीनियर पत्रकार बरखा दत्त के साथ एक इंटरव्यू के दौरान उक्त मामले में टिप्पणी की।
जस्टिस गुप्ता से इसी इंटरव्यू में सीजेआई की अदालत के एक और उदाहरण के बारे में पूछा गया, जिसमें सीजेआई बोबडे ने शादी का झूठा वादा करके बलात्कार करने का आरोप लगाते हुए एक प्राथमिकी को रद्द करने के संबंध में कहा था,
"जब दो लोग पति-पत्नि के रूप में साथ रह रहे हैं, हालांकि पति क्रूर होता है, क्या उनके बीच बने यौन संबंध को बलात्कार कहा जा सकता है?"
पीठ ने इस मामले में याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी पर 8 सप्ताह के लिए रोक लगा दी थी।
इस पर जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा,
"मैं सिर्फ कल्पना कर रहा हूं। संभवतः यह तर्क दिया गया था कि वे प्रेम में थे और इसलिए उनके बीच यौन संबंध सहमित से बने थे। भले ही हम मान लें कि यदि आप किसी से पूछना चाहते हैं, तो आप महिला से पूछें कि क्या वह उससे शादी करने के लिए तैयार है। आप बलात्कारी से यह न पूछें कि क्या वह पीड़िता से शादी करने के लिए तैयार है। उसे तो बुलाया ही नहीं गया है और यह बहुत ही असंवेदनशील है।"
जस्टिस गुप्ता से यह भी पूछा गया कि इस तरह के मामले में जब सीजेआई खुद इस तरह की टिप्पणी करें, जबकि अदालत को न्याय प्राप्त करने का अंतिम स्थान माना जाता है, तो किसी के पास क्या विकल्प रह जाता है?
इस पर जस्टिस्ट गुप्ता ने कहा कि,
"मैंने जो कुछ भी कहा है, उससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता। हमें बहुत सावधान रहना होगा। अब जब सोशल मीडिया की पहुँच कोर्टरूम तक हो गई है, तो आप जो कुछ भी कहते हैं वही सब कुछ ट्वीट किया जाता है। इसलिए न्यायाधीश, जो वह कहना चाहते हैं उसके बारे में थोड़ा सावधान रहना चाहिए, अब वे जो कहते हैं उसमें सावधान रहना होगा। टिप्पणी शायद इस तरह से नहीं की गई थी जैसा कि कहा गया है। इस पर तत्काल स्पष्टीकरण होना चाहिए था कि हम आपको या किसी और को मजबूर नहीं करना चाहते हैं।"
हालांकि, जस्टिस गुप्ता ने कहा,
"लेकिन तब भी यह नहीं कहा जाना चाहिए था। यह टिप्पणी जिस तरीके से की गई है... अदालतों को लिंग पूर्वाग्रह और पितृसत्ता के उदाहरण स्थापित नहीं करने चाहिए।"