राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन नियम बनाकर काले धन पर रोक लगाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब

Update: 2025-09-12 10:54 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने आज एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के पंजीकरण और विनियमन (Registration & Regulation) के लिए नियम बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है, ताकि राजनीति में भ्रष्टाचार और काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगाई जा सके।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता- एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय को सुनने के बाद आदेश दिया और कहा कि चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त सभी राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को भी पक्षकार बनाया जाए।

संक्षेप में, इस जनहित याचिका में न केवल चुनाव आयोग को दिशा-निर्देश देने की मांग की गई है बल्कि केंद्र सरकार से यह भी आग्रह किया गया है कि वह न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया समिति द्वारा तैयार किए गए बिल की समीक्षा करे और राजनीति में "भ्रष्टाचार, जातिवाद, साम्प्रदायिकता, अपराधीकरण, भाषावाद और क्षेत्रवाद" को कम करने के लिए प्रभावी कदम उठाए।

वैकल्पिक रूप से, याचिका में मांग की गई है कि विधि आयोग (Law Commission) विकसित देशों की सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन कर "राजनीतिक दलों के पंजीकरण और विनियमन" पर एक रिपोर्ट तैयार करे।

याचिका मुख्य रूप से दो मुद्दों पर जोर देती है— (i) आंतरिक लोकतंत्र (पार्टी के पदाधिकारियों/उम्मीदवारों का चुनाव/चयन) और (ii) राजनीतिक दलों और चुनावों में फंडिंग की पारदर्शिता व जवाबदेही।

याचिका में कहा गया है कि आयकर विभाग द्वारा कुछ राजनीतिक दलों— इंडियन सोशल पार्टी, युवा भारत आत्मनिर्भर दल और नेशनल सर्व समाज पार्टी—के कार्यालयों पर छापे के बाद यह मामला उठा, जहां हवाला लेन-देन के जरिए काले धन को कमीशन लेकर सफेद धन में बदलने का खुलासा हुआ।

याचिकाकर्ता का दावा है कि 90% राजनीतिक दल इसी उद्देश्य से बनाए जाते हैं और वे नकद चंदा लेते हैं, जिसे कमीशन काटकर सफेद धन के रूप में वापस कर देते हैं। इससे जनता को भारी नुकसान होता है। ऐसे दल कभी चुनाव नहीं लड़ते, बल्कि अपराधियों को पदाधिकारी बना देते हैं और कुछ को पुलिस सुरक्षा भी मिल जाती है।

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि लगभग हर संगठन या गतिविधि किसी न किसी कानून से नियंत्रित है, लेकिन राजनीतिक दलों पर कोई नियंत्रण नहीं है। जबकि दलों के पास संवैधानिक और वैधानिक दर्जा है, वे उम्मीदवारों को टिकट देते हैं और जनता उनके चुनाव चिह्न पर वोट करती है। इस तरह राजनीतिक दल लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के महत्वपूर्ण साधन हैं।

याचिकाकर्ता ने यह भी रेखांकित किया कि राजनीतिक दलों को परोक्ष रूप से केंद्र और राज्य सरकारों से सहायता मिलती है— जैसे आकाशवाणी पर मुफ्त समय, मकान/आवास का आवंटन, कर में छूट आदि। इसके बावजूद उनकी कार्यप्रणाली पर कोई कानून लागू नहीं है।

अंत में, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि राजनीतिक दल "लोक प्राधिकरण" (Public Authority) की श्रेणी में आते हैं और इसलिए चुनाव आयोग को उनके विनियमन का अधिकार है।

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