एमटीपी एक्ट के उद्देश्य से बलात्कार के दायरे में वैवाहिक बलात्कार भी शामिल, पति ने जबरन यौन संबंध बनाया तो पत्नी गर्भपात की मांग कर सकती है: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट और रुल्स के तहत बलात्कार से आशयों में "वैवाहिक बलात्कार" को भी शामिल करना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि जिन पत्नियों ने पतियों द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने के बाद गर्भधारण किया है, वे भी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स के रूल 3बी (ए) में वर्णित "यौन उत्पीड़न या बलात्कार या अनाचार पीड़िता" के दायरे में आएंगी।
उल्लेखनीय है कि नियम 3बी(ए) में उन महिलाओं की श्रेणियों का उल्लेख है, जो 20-24 सप्ताह की अवधि में गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग कर सकती हैं।
अदालत ने कहा कि अविवाहित महिलाएं भी सहमति से बने संबंध में उत्पन्न 20-24 सप्ताह तक की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग करने की हकदार हैं। (X बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, दिल्ली NCT सरकार, CA 5802/2022)।
गर्भावस्था समाप्त करने के लिए विवाहित महिलाओं के अधिकारों को विस्तार से बताते हुए जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने निर्णय के एक हिस्से को पढ़ा, "विवाहित महिलाएं भी यौन उत्पीड़न या रेप सर्वाइवर कैटेगरी का हिस्सा बन सकती हैं। बलात्कार शब्द का सामान्य अर्थ सहमति के बिना या इच्छा के खिलाफ किसी व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाना है। भले ही इस प्रकार बना जबरन संबंध विवाह के संदर्भ में हो या न हो, एक महिला पति द्वारा किए गए बिना सहमति किए गए संभोग के परिणामस्वरूप गर्भवती हो सकती है।"
अदालत ने वैवाहिक वातावरण में हिंसा को कठोर वास्तविकता बताया और कहा-
"हम चूक जाएंगे अगर यह स्वीकार नहीं करेंगे कि अंतरंग साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा वास्तविकता है और बलात्कार का रूप ले सकती है। यह गलत धारणा है कि अजनबी..यौन और लिंग आधारित हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं, यह समझ खेदजनक है। यौन और लिंग आधारित हिंसा परिवार के संदर्भ में अपने सभी रूपों में लंबे समय से महिलाओं के जीवित अनुभवों का एक हिस्सा रही है।"
पीठ ने इस बात पर भी रौशनी डाली कि मौजूदा भारतीय कानूनों में पारिवारिक हिंसा के विभिन्न रूपों को पहले से ही मान्यता दी गई है। आईपीसी में वैवाहिक बलात्कार के अपवाद और एमटीपी एक्ट पर इसके प्रभाव के बारे में विस्तार से बताते हुए, पीठ ने कहा- "हमने आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को भी संक्षेप में छुआ है। आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 के बावजूद, नियम 3 बी (ए) में "यौन हमला" या "बलात्कार" शब्द के अर्थ में पति का पत्नी पर किया गया यौन हमला या बलात्कार शामिल है।"
पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि केवल एमटीपी अधिनियम के उद्देश्य के लिए बलात्कार के आशय में वैवाहिक बलात्कार को शामिल किया जा रहा है। अदालत ने यह भी कहा कि एमटीपी अधिनियम के तहत गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए एक महिला को बलात्कार या यौन हमला होने को साबित करने की आवश्यकता नहीं है।
बेंच ने कहा-
"नियम 3 (बी) (ए) का लाभ उठाने के लिए जरूरी नहीं कि महिलाएं यौन उत्पीड़न या बलात्कार के तथ्य को साबित करने के लिए औपचारिक कानूनी कार्यवाही का सहारा लें। न तो धारा 3 (2) के स्पष्टीकरण 2, न ही नियम 3 (बी) (ए) के तहत गर्भवती महिलाओं के गर्भपात का उपयोग करने से पहले अपराधी को आईपीसी या किसी अन्य आपराधिक कानून के तहत दोषी ठहराए जाने की आवश्यकता है।"
यह ध्यान दिया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट वर्तमान में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रहा है, जो वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार के अपराध से छूट देता है।
फैसले पर विस्तृत रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है।
(एक्स बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, दिल्ली NCT सरकार, CA 5802/2022)।