जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर प्रशासनिक पक्ष से सरकार के साथ बातचीत जारी: चीफ जस्टिस बीआर गवई

Update: 2025-07-24 06:47 GMT

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपने प्रशासनिक पक्ष से केंद्र सरकार के साथ लंबित न्यायिक नियुक्तियों के मुद्दे पर बातचीत कर रहा है।

चीफ जस्टिस ने यह बयान तब दिया जब सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार और एडवोकेट प्रशांत भूषण की खंडपीठ उन याचिकाओं का उल्लेख किया, जिनमें केंद्र सरकार को कॉलेजियम की सिफारिशों पर समयबद्ध तरीके से कार्रवाई करने के निर्देश देने की मांग की गई थी। दातार ने कहा कि यह मामला आखिरी बार 5 दिसंबर, 2023 को जस्टिस एसके कौल की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन अंतिम समय में इसे उनकी सूची से हटा दिया गया।

दातार ने कहा,

"यह मामला आखिरी बार 5 दिसंबर को जस्टिस कौल के समक्ष आया था। इसे अचानक सूची से हटा दिया गया। 2019 में अनुशंसित कुछ नाम 2021 और 2022 में दोहराए गए, जो अभी भी लंबित हैं।"

दातार ने कहा कि वह लंबित नामों की एक सूची सौंप सकते हैं।

उन्होंने कहा,

"दो नाम वापस ले लिए गए हैं। एक बॉम्बे से और दूसरा दिल्ली से। उन्होंने नाम वापस ले लिए हैं।"

दातार ने वकील राजेश दातार और श्वेताश्री मजूमदार द्वारा क्रमशः बॉम्बे और दिल्ली हाईकोर्ट्स में जज पद के लिए अपनी सहमति वापस लेने का ज़िक्र करते हुए कहा, क्योंकि केंद्र सरकार ने उनकी नियुक्तियों की अधिसूचना में देरी की थी।

मामले को दो हफ़्ते बाद सूचीबद्ध करने पर सहमति जताते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि प्रशासनिक पक्ष में लंबित नियुक्तियों को सुलझाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।

चीफ जस्टिस ने कहा,

"हम प्रशासनिक पक्ष पर भी आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। कई नामों को मंज़ूरी मिल गई है।"

एक अन्य याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा,

"होता यह है कि ये नाम कई सालों से वहां हैं। वे वरिष्ठता खो देंगे।"

दातार ने कहा,

"वे रुचि भी खो देते हैं।"

चीफ जस्टिस गवई ने इस पर कहा,

"दिल्ली की जिस महिला ने नाम वापस लिया, वह असाधारण हैं।"

भूषण ने कहा,

"वह नेशनल लॉ स्कूल की टॉपर थीं।"

दातार ने कहा कि न्यायालय ने न्यायिक नियुक्तियों के विभिन्न चरणों में लगने वाले समय के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए हैं। इसलिए सरकार की ओर से 3-4 साल की देरी स्वीकार्य नहीं है।

उन्होंने कहा,

"माई लॉर्ड्स ने विभिन्न चरणों में 4 सप्ताह आदि के दिशानिर्देश निर्धारित किए हैं। यह 3 वर्ष और 4 वर्ष नहीं हो सकता।"

भूषण ने तब कहा कि न्यायालय को विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राज्यपालों की तरह समय-सीमा तय करनी पड़ सकती है। हालांकि, चीफ जस्टिस ने बीच में ही हस्तक्षेप करते हुए भूषण से कहा कि वे इस मुद्दे पर बात न करें, क्योंकि यह अब एक संविधान पीठ के समक्ष लंबित है।

न्यायालय के समक्ष मामला अधिवक्ता संघ, बेंगलुरु द्वारा केंद्रीय विधि सचिव के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित समय-सीमा के उल्लंघन के लिए दायर अवमानना याचिका का है। दूसरा मामला कॉमन कॉज द्वारा दायर एक जनहित याचिका का है।

Case : Advocates Association Bengaluru v. Barun Mitra & Anr. | Contempt Petition (Civil) No. 867 of 2021 in Transfer Petition (Civil) No. 2419 of 2019

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