"निजी सिविल विवाद को फौजदारी मुकदमे में बदला गया": सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध की शिकायत खारिज की

Update: 2023-01-07 05:37 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (पांच जनवरी) को एक फैसले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध के आरोप वाली शिकायत यह कहते हुए खारिज कर दी कि यह कानून और कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि पार्टियों के बीच निजी दीवानी विवाद को फौजदारी मुकदमे में बदल दिया गया है।

इस मामले में शिकायतकर्ता का आरोप है कि आरोपी ने उसके घर के बगल वाले रास्ते पर कब्जा कर मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया। यह भी आरोप लगाया गया था कि शिकायतकर्ता को उसके भवन पर आगे निर्माण करने से रोका गया और आपराधिक रूप से धमकाया भी गया। स्पेशल कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(v) और (va) के तहत अपराधों का संज्ञान लिया और आरोपियों को समन जारी किया। मद्रास हाईकोर्ट ने आरोपी द्वारा समन आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।

अपील में, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि (1) अवैध निर्माण को लेकर दोनों पक्षों के बीच एक निजी विवाद चल रहा था (2) ऐसा कोई आरोप नहीं है कि शिकायतकर्ता को निर्माण से रोका गया है और / या उसके अधिकार में हस्तक्षेप किया गया है, और वह भी यह यह जानते हुए कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबंधित है (3) शिकायत दर्ज करने से पहले, ऐसा प्रतीत होता है कि मंदिर पहले से ही कई वर्षों से अस्तित्व में था।

बेंच ने अपील की अनुमति देते हुए कहा,

"ऐसा लगता है कि पार्टियों के बीच निजी दीवानी विवाद को फौजदारी मुकदमे में बदल दिया गया है। इसलिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(v) और (va) के तहत अपराधों के लिए फौजदारी कार्यवाही की शुरुआत कानून और न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा कुछ और नहीं है। रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों से, हम संतुष्ट हैं कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(v) और (va) के तहत अपराधों के लिए प्रथम दृष्टया भी मामला नहीं बनाया गया है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(v) और (va) का कोई भी अवयव संतुष्ट नहीं किया गया है। इसलिए, हमारी दृढ़ राय और विचार है कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, हाईकोर्ट को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करके आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर देना चाहिए था।"

केस टाइटल :- बी वेंकटेश्वरन बनाम पी. भक्तवतचलम | 2023 लाइवलॉ (एससी) 14 | सीआरए 1555/2022 | 05 जनवरी 2023 | जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी

अपीलकर्ता(ओं) की ओर से अधिवक्ता डी. दुर्गा देवी, अधिवक्ता शरथ चंद्रन, एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड प्रणब प्रकाश

प्रतिवादी (ओं) की ओर से- प्रतिवादी व्यक्तिगत रूप से

केस का ब्योरा- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989; धारा 3(1)(v) और (va) - दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 482 - पार्टियों के बीच निजी दीवानी विवाद को फौजदारी मुकदमे में परिवर्तित किया गया है – इसलिए फौजदारी मुकदमे की शुरुआत कानून और कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग के अलावा कुछ नहीं है - शिकायत और समन आदेश रद्द किया जाता है।

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