सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल आईबीसी की धारा 14, 17 के तहत वैधानिक हुक्मनामे के अवमूल्यन के लिए नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-04-23 14:20 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिये गये एक फैसले में कहा कि आपराधिक दंड संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल वैधानिक हुक्मनामे के अवमूल्यन को नजरंदाज करने के लिए नहीं किया जा सकता।

इस मामले में हाईकोर्ट ने एक कंपनी की हस्तक्षेप याचिका मंजूर कर ली थी जिसमें उसने खुद को ऑपरेशनल क्रेडिटर होने का दावा करते हुए आईसीआईसीआई बैंक में खोले गये खाते को ऑपरेट करने देने और अपने क्रेडिटरों के फ्रीज बैंक खाते अनफ्रीज करने की अनुमति मांगी थी, जिस पर अंतरिम समाधान विशेषज्ञ (आईपीआर) द्वारा प्राथमिकी दर्ज किये जाने के बाद स्वत्वाधिकार बनाया गया था और खाते फ्रीज कर दिये गये थे।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आईआरपी ने दलील दी थी कि यदि कॉरपोरेट देनदार के पूर्व के प्रबंधन के सदस्यों को कॉरपोरेट देनदार के फंडों को हस्तांतरण के लिए मुक्त छोड़ दिया जाता है तो मोरेटोरियम का उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा।

न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ की खंडपीठ ने कहा,

"इस परिप्रेक्ष्य में हमें इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि हाईकोर्ट इस मामले में अंतरिम आदेश के तौर पर अपना आदेश जारी करते हुए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्रदत्त शक्तियों की हितकर पाबंदियों की अनदेखी करता प्रतीत होता है। कोर्ट के पास सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्रदत्त शक्तियां वैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन के समर्थन के लिए नहीं हैं। धारा 482 के तहत 'न्याय दिलाने के लिए' जैसे शब्दों का अर्थ यह नहीं होता कि ये वैधानिक हुक्मनामे को नजरंदाज करने के लिए हैं, जो इस मामले में इंसोल्वेंसी एंड बैंकरप्शी कोड (आईबीसी) की धारा 14 और 17 के प्रावधान हैं।"

कोर्ट ने कहा कि रेजोल्यूशन प्रोफेशनल्स (समाधान विशेषज्ञ) की नियुक्ति हो जाने के बाद समाधान प्रक्रिया संचालित करने और परिचालन प्रबंधन का जिम्मा उस विशेषज्ञ का होता है, यद्यपि वह कुछ मामलों में क्रेडिटर्स कमेटी की पूर्व मंजूरी हासिल करने के लिए बाध्य है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में मोरेटोरियम की घोषणा कर दी गयी थी तथा कंपनी की परिसम्पत्तियों में बैंक खातों में क्रेडिट होने के लिए रखी गयी राशि भी शामिल होगी।

कोर्ट ने अपील मंजूर करते हुए कहा,

"प्रतिवादी संख्या 1 को अपने खाते को संचालित करने की अनुमति दी जाती है, बशर्ते कॉरपोरेट देनदार के खाते में पहले राशि भेजी जाये। कॉरपोरेट देनदार के प्रबंधन द्वारा प्रतिवादी संख्या एक को 32 लाख 50 हजार रुपये का भुगतान किया गया है। कॉरपोरेट देनदार की परिसम्पत्तियां आईबीसी के प्रावधानों के तहत सख्ती से प्रबंधित की जाएंगी। बतौर आरपी अपीलकर्ता आईबीसी की धारा 14(2)(ए) के प्रावधानों एवं उद्देश्य को ध्यान में रखेगा। हालांकि हम यह स्पष्ट करते हैं कि हमारा आदेश सीआरपीसी की धारा 482 के तहत लंबित याचिका सहित प्राथमिकी से उत्पन्न 28 मुद्दों से संबंधित नहीं समझा जायेगा।"

केस : संदीप खेतान, रेजोल्यूशन प्रोफेशनल फॉर नेशनल प्लाईवुड इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम जेएसवीएम प्लाईवुड इंडस्ट्रीज लिमिटेड [ क्रिमिनल अपील 447 / 2021 ]

कोरम : न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ

साइटेशन : एलएल 2021 एससी 228

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