चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुफ्त उपहार का वादा ' गंभीर मुद्दा' : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और ईसीआई को नोटिस जारी किया

Update: 2022-01-25 08:18 GMT

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस याचिका पर भारत संघ और भारतीय चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया, जिसमें चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई थी कि राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन फ्रीबी( मुफ्त उपहार ) का वादा करने या वितरित करने की अनुमति न दें और जो राजनीतिक पार्टियां ऐसा करती हैं तो उनके पंजीकरण रद्द करें या पार्टियों के चुनाव चिन्ह जब्त करें।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि यह निस्संदेह एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन आश्चर्य है कि अदालत समस्या को हल करने के लिए क्या कर सकती है।

सीजेआई रमना ने कहा,

"हम जानना चाहते हैं कि इसे कैसे नियंत्रित किया जाए। यह एक गंभीर मुद्दा है। इसमें कोई संदेह नहीं है। फ्रीबी बजट नियमित बजट से आगे जा रहा है, और कभी-कभी जैसा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा देखा गया है, यह कुछ पार्टियों आदि के लिए एक समान खेल मैदान नहीं है। सीमित दायरे में, क्या हम कर सकते हैं, हमने ईसीआई को दिशानिर्देश बनाने का निर्देश दिया था।"

बेंच ने सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले का भी उल्लेख किया, जहां कोर्ट ने ये कहते हुए कि चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादों को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 के तहत 'भ्रष्ट अभ्यास' के रूप में नहीं माना जा सकता है, चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के परामर्श से चुनाव घोषणापत्र की सामग्री पर दिशानिर्देश तैयार करने और इसे राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के मार्गदर्शन के लिए आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) में शामिल करने का निर्देश दिया था।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले में एक हलफनामा दाखिल करना चाहिए और दिशा-निर्देशों के साथ साथ कुछ मंज़ूरी भी जारी करने की जरूरत है।

सिंह ने कहा,

"कृपया देखें कि आखिरकार किसका पैसा देने का वादा किया गया है? यह लोगों का पैसा है। कुछ राज्यों पर प्रति व्यक्ति 3 लाख से अधिक का बोझ है, और अभी भी मुफ्त उपहार की पेशकश की जा रही है। अदालत ने उन्हें दिशानिर्देश तैयार करने के लिए कहा था, उन्होंने दंतहीन दिशानिर्देश तैयार किए थे। हर पार्टी एक ही काम कर रही है।"

सीजेआई ने पूछा,

"अगर हर पार्टी एक ही काम कर रही है, तो आपने अपने हलफनामे में केवल दो का ही उल्लेख क्यों किया है?"

श्री सिंह ने कहा,

"मैं किसी पार्टी का नाम नहीं लेना चाहता"

न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने कहा,

"आप इसका नाम नहीं ले रहे हैं, लेकिन आप अपने बयानों में बहुत स्पष्ट हैं।"

बेंच ने आगे कहा,

"हमें यह भी पता होना चाहिए कि हम कैसे नियंत्रित करने जा रहे हैं?"

सिंह ने सुझाव दिया,

"चिन्ह आदेश में ही कुछ हो सकता है और इस तरह की गतिविधि में शामिल किसी पार्टी को मान्यता नहीं देनी चाहिए।"

पीठ ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि आदेश से प्रभावित होने वाले राजनीतिक दलों को मामले में पक्षकार नहीं बनाया गया है। हालांकि कोर्ट ने इस स्तर पर केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर उनका जवाब लेने का फैसला किया

अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर वर्तमान रिट याचिका में वैकल्पिक राहत के रूप में, केंद्र को राजनीतिक दलों को विनियमित करने के लिए एक कानून बनाने के निर्देश देने की मांग की गई है।

याचिका में अदालत से यह घोषित करने का आग्रह किया गया है कि:

• चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन मुफ्त उपहार का वादा मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करता है, खेल के मैदान से छेड़छाड़ करता है, निष्पक्ष चुनाव की जड़ें हिलाता है और चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता को खराब करता है।

• चुनाव से पहले सार्वजनिक धन से निजी वस्तुओं/सेवाओं का वादा/वितरण, जो सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए नहीं हैं, संविधान के अनुच्छेद 14, 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन करते हैं।

• मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन मुफ्त उपहारों का वादा/वितरण आईपीसी की धारा 171बी और 171सी के तहत रिश्वत और अनुचित प्रभाव के समान है।

याचिकाकर्ता द्वारा बताए गए कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं जो उनके अनुसार उनकी याचिका पर कार्रवाई का कारण बनते हैं:

• आम आदमी पार्टी ने 18 वर्ष और उससे अधिक आयु की प्रत्येक महिला को 1000 प्रति माह और शिरोमणि अकाली दल ( एसएडी) ने प्रत्येक महिला को उन्हें लुभाने के लिए 2000 रुपये देने का वादा किया।

• कांग्रेस ने न केवल 2000 प्रति माह रुपये देने का वादा किया था और हर घर में 8 गैस सिलेंडर प्रति वर्ष और कॉलेज जाने वाली प्रत्येक लड़की को एक स्कूटी देने के अलावा 12वीं पास करने के बाद 20,000 रुपये, 10वीं पास करने के बाद 15,000 रुपये, 8 वीं कक्षा पास करने के बाद 10,000 रुपये और 5वीं पास करने के बाद 5000 रुपये देने का वादा किया।

• उत्तर प्रदेश में, कांग्रेस ने 12 वीं कक्षा में पढ़ने वाली प्रत्येक लड़की को एक स्मार्टफोन, स्नातक की पढ़ाई करने वाली प्रत्येक लड़की को एक स्कूटी, महिलाओं के लिए मुफ्त सार्वजनिक परिवहन, प्रत्येक गृहिणी को प्रति वर्ष आठ मुफ्त गैस सिलेंडर, प्रति परिवार 10 लाख रुपये तक मुफ्त चिकित्सा का वादा किया।

• समाजवादी पार्टी ने हर परिवार को 300 यूनिट मुफ्त बिजली और प्रत्येक महिला को 1500 रुपये पेंशन प्रतिमाह साथ ही साइकिल चलाते समय दुर्घटना में जान गंवाने वाले लोगों को 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता का वादा किया।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि तर्कहीन मुफ्त उपहार के मनमाने वादे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव आयोग के जनादेश का उल्लंघन करते हैं और सार्वजनिक धन से, निजी वस्तुओं-सेवाओं को वितरित करना, जो सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए नहीं हैं, स्पष्ट रूप से संविधान के अनुच्छेद 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन करते हैं।

याचिकाकर्ता ने यह भी प्रस्तुत किया है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को भंग करने के अलावा, मनमाना और तर्कहीन मुफ्त उपहार वितरण संविधान के अनुच्छेद 14 का खुले तौर पर उल्लंघन करता है क्योंकि यहां लोगों का कोई उचित वर्गीकरण नहीं है।

याचिकाकर्ता के अनुसार, समानता के अधिकार के लिए आवश्यक है कि राज्य को एक उचित वर्गीकरण करना चाहिए और उद्देश्य के साथ उसका संबंध होना चाहिए, लेकिन राजनीतिक दल संविधान के इस मूल तत्व का पालन नहीं कर रहे हैं।

याचिका में कहा गया है,

"नागरिकों की चोट बहुत बड़ी है क्योंकि अगर आप सत्ता में आती है तो पंजाब को राजनीतिक वादों को पूरा करने के लिए प्रति माह 12,000 करोड़ रुपये, एसएडी के सत्ता में आने पर 25,000 करोड़ रुपये प्रति माह और कांग्रेस के सत्ता में आने पर 30,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी हालांकि जीएसटी संग्रह केवल 1400 करोड़ है। वास्तव में, कर्ज चुकाने के बाद, पंजाब सरकार वेतन-पेंशन भी नहीं दे पा रही है, तो वह मुफ्त उपहार कैसे प्रदान करेगी? "

केस : अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ और अन्य

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