उत्तर प्रदेश की चित्रकूट जेल में हुई हत्याओं की स्वतंत्र जांच कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका
उत्तर प्रदेश की चित्रकूट जेल में हाल ही में हुई हत्याओं की जांच सीबीआई या एनआईए के सर्वश्रेष्ठ सेवारत अधिकारी से कराने, जिसकी निगरानी सुप्रीम कोर्ट करे, के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है।
याचिका में चित्रकूट जेल में हुई तीन विचाराधीन कैदियों की हत्याओं और उत्तर प्रदेश में हुई सभी गैर-न्यायिक हत्याओं, जो उत्तर प्रदेश में 18 मार्च 2017 के बाद हुई हैं, की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसी या एनआईए जैसी आतंकवाद-रोधी एजेंसी की नियुक्ति की मांग की गई है। याचिका में उन हत्याओं का विशेष संदर्भ दिया गया है, जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सीधे आदेश तहत की गई हैं।
एडवोकेट अनूप प्रकाश अवस्थी की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी ने खुले तौर पर मुठभेड़ों और गैर-न्यायिक हत्याओं की संस्कृति को बढ़ावा दिया है और रिकॉर्ड पर यह कहा है कि "यूपी में पुलिस अब गोली का जवाब गोली से देगी।"
याचिकाकर्ता ने कहा है कि मुख्यमंत्री ने कथित तौर पर उत्तर प्रदेश विधानसभा में "घोषणा की थी कि "अपराधियों को ठोक दिया जाएगा", जो हमारे संविधान की मूल संरचना में निहित शक्ति के पृथक्करण के निहित आदर्शों और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार के अनुरूप नहीं है।
याचिकाकर्ता के अनुसार, हमारी प्रणाली में जीवन को केवल, संविधान में निर्धारित न्यायिक तंत्र के माध्यम से 'कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया' द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है। इसलिए मुख्यमंत्री, जो एक निर्वाचित सरकार के प्रांतीय प्रमुख हैं, ने कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना मुठभेड़ों में जान लेने की मंजूरी देकर दंड के क्षेत्र का अतिक्रमण किया।
"यह कहा नहीं जा रहा है, लेकिन यह हत्याएं इतनी स्पष्ट, प्रेरित, गैर-न्यायिक, और ठंडे तरीके से जाती हैं....और यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ, द्वारा सीधे प्रचारित 'ठोक दो संस्कृति' का हिस्सा है, जो पूरी तरह से कानून के शासन के खिलाफ हैं।"
याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश के बागपत जेल में मारे गए मुन्ना बजरंगी की हत्या और पिछले साल विकास दुबे की मुठभेड़ का हवाला देते हुए कहा है कि जेल में हत्या और मुठभेड़ की वर्तमान घटना कोई छिटपुट घटना नहीं है और 2017 से उत्तर प्रदेश में कई सौ मुठभेड़ हो चुकी हैं, जो न केवल चिंताजनक है बल्कि परेशान करने वाला है।
याचिकाकर्ता के अनुसार, गैर-न्यायिक हत्याओं की सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर अनियंत्रित हो गई तो किसी भी नागरिक की जान राज्य की एजेंसियों द्वारा कभी भी ली जा सकती है।
"किसी भी दुश्मनी या निजी विवाद या निजी खुन्नस में अवांछित व्यक्ति के खिलाफ पुलिस थाने में आपराधिक मामले दर्ज किए जा सकते हैं, और उसे कुछ दिनों के भीतर एक खूंखार अपराधी करार दिया जा सकता है, जिसे विचाराधीन के रूप में हिरासत में लिया जा सकता है, और उसे कहीं ले जाते समय या जेल के अंदर झूठे बहाने जैसे किसी पुलिसकर्मी की राइफल या पिस्तौल छीनने के प्रयास आदि पर पुलिस/कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा कहीं भी कभी भी गोली मारकर समाप्त किया जा सकता है।"
याचिका में कहा गया है कि कैदियों को पिस्टल छीनने या फायरिंग करने जैसे तुच्छ बहाने पर मारा जा रहा है और यूपी में हिंसा की संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है जो संविधान की मूल धारणा के खिलाफ है।