'राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य देख-रेख वृत्ति आयोग अधिनियम, 2021' के प्रावधानों को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें आधुनिक चिकित्सा के डॉक्टरों (भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम के तहत पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिसनर्स) और ग्रामीण/मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के बीच अंतर करने के लिए आम लोगों, विशेष रूप से ग्रामीणों को सक्षम करने के लिए राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य देख-रेख वृत्ति आयोग अधिनियम, 2021 (अधिनियम, 2021) के तत्काल कार्यान्वयन की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है, "एक बार अधिनियम लागू होने के बाद आरएमपी/ पीएमपी/आईआरएचपी या अयोग्य मेडिकल प्रैक्टिशनर्स का कोई नामकरण नहीं होगा क्योंकि इन श्रेणियों के व्यक्तियों, जो अधिनियम की धारा 38 के तहत खुद को पंजीकृत करते हैं, उन्हें विशिष्ट नौकरी विवरण के साथ सामुदायिक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता कहा जाता है।"
सिटिजन फोर्स फाउंडेशन फॉर सिटिजन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि अधिनियम का लक्ष्य नीमहकीमी को खत्म करना, साथ ही स्वास्थ्य संस्थानों और पेशेवरों के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित करना है।
याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम की धारा 20 सहपठित धारा 38, जो अंतरिम आयोग के गठन से संबंधित है और अधिनियम के लागू होने से पहले संबद्ध स्वास्थ्य पेशेवरों के रूप में कार्यरत व्यक्तियों के पंजीकरण से संबंधित है, के प्रावधानों के कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए प्रार्थना की है।
तर्क को और पुष्ट करने के लिए याचिका में यह कहा गया है कि अधिनियम की धारा 38 संबद्ध स्वास्थ्य पेशेवरों के रूप में अभ्यासरत व्यक्तियों को संबद्ध स्वास्थ्य सेवा पेशे की प्रासंगिक मान्यता प्राप्त श्रेणी में अनंतिम पंजीकरण प्राप्त करने में सक्षम बनाएगी ताकि ये आरएमपी/आईआरएचपी उनकी अनुमेय सीमा के भीतर होंगे..जैसा कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल आदि जैसे कुछ राज्यों द्वारा निर्धारित किया गया है।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में अयोग्य संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की संख्या में कोई और प्रगति न हो, फाउंडेशन ने केंद्र को एक मैकेनिज्म की व्यवस्था करने के लिए निर्देश जारी करने की भी मांग की है जब तक कि अधिनियम की धारा 66 के तहत अधिनियम की अनुसूची में निर्दिष्ट सेवाओं की पेशकश करने वाले व्यक्तियों के अनंतिम पंजीकरण के संबंध में नियम तैयार नहीं हो जाते।
फाउंडेशन ने अधिनियम के प्रावधानों के संचालन की प्रगति की निगरानी के लिए निर्देश जारी करने की भी मांग की है। एडवोकेट रमेश अल्लंकी ने एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अरुणा गुप्ता के माध्यम से रिट याचिका दायर की है।
केस शीर्षक : सिटीजन फोर्स फाउंडेशन फॉर सिटिजन्स और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया