इन-हाउस जांच पूरी होने के बाद जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग

Update: 2025-05-14 04:57 GMT

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) द्वारा जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ इन-हाउस जांच रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजे जाने के बाद उनके कार्यालय परिसर में अवैध नकदी मुद्राओं की भरमार पाए जाने के आरोपों के बाद इस मामले में FIR दर्ज करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई।

यह याचिका एडवोकेट मैथ्यूज नेदुम्परा और तीन अन्य लोगों द्वारा दायर की गई। मार्च में नेदुम्परा ने तीन जजों के एक पैनल द्वारा की जा रही इन-हाउस जांच को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की थी और नियमित आपराधिक जांच शुरू करने की मांग की थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए उस रिट याचिका पर विचार करने से इनकार किया कि याचिका समय से पहले की है। इन-हाउस जांच के परिणाम का इंतजार करना होगा। पीठ ने रिट याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि "इस स्तर पर इस रिट याचिका पर विचार करना उचित नहीं होगा।"

अब याचिकाकर्ताओं ने फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें उन्होंने बताया कि आंतरिक जांच पूरी हो चुकी है। सीजेआई को रिपोर्ट सौंपी गई, जिसमें आरोपों को प्रथम दृष्टया सही पाया गया। सीजेआई ने रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया,

इन परिस्थितियों में मामले की आपराधिक जांच जरूरी है।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि के. वीरस्वामी फैसले में दिए गए निर्देश कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) की पूर्व अनुमति के बिना किसी जज के खिलाफ कोई FIR दर्ज नहीं की जाएगी, देश के कानून के विपरीत है। इस पर फिर से विचार करने की जरूरत है।

याचिका में कहा गया,

"यह मामला पूरी तरह से खुला हुआ। यह न्याय को बेचकर जमा किए गए काले धन का मामला है। जस्टिस वर्मा के अपने बयान पर विश्वास करने का प्रयास करने पर भी यह सवाल बना हुआ कि उन्होंने FIR क्यों नहीं दर्ज की। पुलिस को साजिश के पहलू की जांच करने में सक्षम बनाने के लिए देर से भी FIR दर्ज करना नितांत जरूरी है।"

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि जज पर महाभियोग लगाना पर्याप्त उपाय नहीं है। कानून के अनुसार दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए। पद से हटाना केवल एक नागरिक परिणाम है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा,

"जब कोई जज, न्याय का रक्षक स्वयं अभियुक्त या अपराधी हो तो यह कोई साधारण अपराध नहीं है, इसकी गंभीरता कहीं अधिक है। इसलिए सजा भी उतनी ही होनी चाहिए। सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी, जिसे बनाए रखना जज का कर्तव्य है, उससे समझौता नहीं किया जा सकता। यह जरूरी है कि आपराधिक कानून को लागू किया जाए, मामले की गहन जांच की जाए और सबसे महत्वपूर्ण बात यह पता लगाया जाए कि रिश्वत देने वाला/लाभार्थी कौन था और वह कारण/निर्णय क्या था, जिसके तहत न्याय खरीदा गया।"

जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास के बाहरी हिस्से में आग बुझाने के अभियान के दौरान स्टोर-रूम से अचानक नकदी का एक बड़ा भंडार मिलने की रिपोर्ट सामने आने के बाद 22 मार्च को सीजेआई संजीव खन्ना ने समिति का गठन किया था। उस समय जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट के जज थे। विवाद के बाद जस्टिस वर्मा को उनके पैतृक हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया। सीजेआई के निर्देश के अनुसार जस्टिस वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया।

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