नागरिकता संशोधन कानून : सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली दर्जन भर याचिकाएं दाखिल
नागरिकता संशोधन कानून लागू होते ही सुप्रीम कोर्ट में करीब 12 याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। सभी याचिकाओं में इस कानून को असंवैधानिक, मनमाना और भेदभावपूर्ण करार देते हुए रद्द करने का अनुरोध किया गया है।
इस मामले में TMC सासंद महुआ मोइत्रा के अलावा कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने भी याचिका दाखिल की है। जयराम रमेश ने याचिका में कहा है कि ये कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान का उल्लंघन करता है। भेदभाव के रूप में यह मुस्लिम प्रवासियों को बाहर निकालता है और केवल हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, ईसाइयों, पारसियों और जैनियों को नागरिकता देता है।
उन्होंने याचिका मेंं कहा कि कानून संविधान की मूल संरचना और मुसलमानों के खिलाफ स्पष्ट रूप से भेदभाव करने का इरादा है। ये संविधान में निहित समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और धर्म के आधार पर बहिष्कार करके अवैध आप्रवासियों के एक वर्ग को नागरिकता देने का इरादा रखता है।
याचिका में कहा गया कि प्रत्येक नागरिक समानता के संरक्षण का हकदार है। यदि कोई विधेयक किसी विशेष श्रेणी के लोगों को निकालता है तो उसे राज्य द्वारा वाजिब ठहराया जाना चाहिए। नागरिकता केवल धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि जन्म के आधार पर हो सकती है। प्रश्न है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में नागरिकता योग्यता की कसौटी कैसे हो सकती है। ये कानून समानता और जीने के अधिकार का उल्लंघन है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
वहीं एक वकील एहतेशाम हाशमी ने भी याचिका दाखिल की है। इसके अलावा पीस पार्टी, जन अधिकार मंच, रिहाई मंच और सिटीजनस अगेंस्ट हेट NGO ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। पूर्व IAS अधिकारी सोम सुंदर बरुआ, अमिताभ पांडे और IFS देव मुखर्जी बर्मन के साथ- साथ ऑल असम स्टूडेंट यूनियन ने भी संशोधन क़ानून की वैधता को चुनौती दी है। इससे पहले इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुका है।
सूत्रों के मुताबिक इन तीनों ने अपनी याचिका में कहा है कि ये क़ानून धर्म के आधार पर भेदभाव करता है, समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि धर्म के आधार पर वर्गीकरण की संविधान इजाजत नही देता। ये बिल संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। नागरिकता संशोधन कानून को असंवैधानिक बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है है।