एड-हॉक जज के तौर पर सेवा की अवधि वरीयता में सम्मिलित नहीं की जायेगी : सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों की पुनरीक्षण याचिकाएं खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दी हैं जिसमें कहा गया था कि तदर्थ जज के तौर पर सेवा की अवधि जिला जल के लिए वरीयता की गणना में शामिल नहीं की जायेगी।
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की खंडपीठ ने कहा,
"कोर्ट ने 29 अप्रैल 2020 को अपना फैसला सुनाते हुए संबंधित रिट याचिका में रखी गयी सभी दलीलों एवं इससे संबंधित मसले पर विस्तार से विचार किया था। हमने पुनर्विचार याचिका पढ़ी है और हमें रिकॉर्ड में कोई भी त्रुटि नजर नहीं आयी है कि पुनर्विचार के अधिकार क्षेत्र के इस्तेमाल को न्यायोचित ठहराया जा सके। इसलिए यह पुनर्विचार याचिका खारिज की जाती है।"
सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष अप्रैल में राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा 15 मार्च, 2019 को तैयार वरीयता सूची को चुनौती देने वाली राजस्थान न्यायिक सेवा अधिकारी संघ सहित विभिन्न याचिकाकर्ताओं की रिट याचिकाओं का निपटारा कर दिया था। याचिकाकर्ताओं ने फास्ट ट्रैक कोर्ट में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीशों के तौर पर दी गयी सेवा को भी जिला जज के तौर पर वरीयता का निर्धारण् करते वक्त गणना करने की मांग की थी।
कोर्ट ने इस बात पर विचार किया कि क्या मूल कैडर में नियुक्त किये गये जिला जज की तुलना में राज्यों में फास्ट ट्रैक कोर्ट में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के तौर पर तदर्थ सेवा देने वाले न्यायिक अधिकारी तदर्थ सेवा की शुरुआत की तारीख से वरीयता हासिल करने के हकदार हैं? इस बारे में विभिन्न पहलुओं का उल्लेख करते हुए बेंच ने कहा कि वरीयता की गणना उस तारीख से होगी जब से उनकी नियुक्ति मूल कैडर में हुई, न कि उस तारीख से जब से उन्हें तदर्थ सेवा में नियुक्ति या पदोन्नति दी गयी थी।
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