भारत के बाहर किया गया अपराध : सीआरपीसी की धारा 188 के तहत केंद्र सरकार की पूर्व की मंजूरी संज्ञान स्तर पर आवश्यक नहीं, लेकिन इसके बिना ट्रायल शुरू नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-08-05 04:31 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए एक भारतीय नागरिक के खिलाफ आपराधिक मामले की सुनवाई आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 188 के तहत केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना शुरू नहीं हो सकती है।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने कहा,

''लेकिन संज्ञान के स्तर पर ऐसी पिछली मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।''

इस मामले में, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी याचिका में हाईकोर्ट के समक्ष अभियुक्त की दलील थी कि कथित अपराध अमेरिका में किए गए थे और सीआरपीसी की धारा 188 के अनुसार, यहां तक कि अपराध की जांच शुरू करने के लिए भी केंद्र सरकार की मंजूरी जरूरी है। हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए याचिका खारिज कर दी।

अपील में, बेंच ने कहा कि 'थोटा वेंकटेश्वरलु बनाम आंध्र प्रदेश सरकार (प्रधान सचिव के माध्यम) 2011 (9) एससीसी 527' मामले में यह व्यवस्था दी गयी थी कि सीआरपीसी की धारा 188 के तहत देश के बाहर भारत के नागरिक द्वारा किए गए अपराधों के लिए संज्ञान के स्तर पर केंद्र सरकार की पिछली मंजूरी की आवश्यकता नहीं है और इसलिए वह हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने के पक्ष में नहीं है।

कोर्ट ने विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि आरोपी मुकदमा शुरू होने से पहले मंजूरी से संबंधित आधार को उठाने के लिए स्वतंत्र है।

कानून को जानें: सीआरपीसी की धारा 188

सीआरपीसी की धारा 188 भारत के बाहर किए गए अपराध से संबंधित है।

जब भारत के बाहर कोई अपराध किया जाता है- (ए) भारत के नागरिक द्वारा, चाहे वह बीच समुद्र में हो या कहीं और; या (बी) भारत में पंजीकृत किसी भी जहाज या विमान पर किसी व्यक्ति द्वारा, जो ऐसा नागरिक नहीं है। उसके साथ इस तरह के अपराध के संबंध में इस तरह निपटा जा सकता है जैसे कि वह भारत के भीतर किसी भी स्थान पर किया गया हो, जहां वह पाया जा सकता है: बशर्ते इस अध्याय के किसी भी पूर्ववर्ती खंड में किसी भी बात के होते हुए भी, केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना भारत में ऐसे किसी भी अपराध की जांच नहीं की जाएगी, या मुकदमा नहीं चलाया जायेगा।

'अजय अग्रवाल बनाम भारत संघ और अन्य [(1993) 3 एससीसी 609]' मामले में यह माना गया था कि अपराधों का संज्ञान लेने के लिए केंद्र सरकार की पिछली मंजूरी प्राप्त करना एक शर्त नहीं थी, क्योंकि जांच शुरू होने से पहले मंजूरी प्राप्त की जा सकती थी।

कोर्ट ने 'थोटा वेंकटेश्वरुलु (सुप्रा)' मामले में कहा था,

"यद्यपि अजय अग्रवाल के मामले (सुप्रा) में निर्णय अभियुक्त द्वारा कथित रूप से रची गई साजिश की पृष्ठभूमि में दिया गया था, निर्णय का अनुपात सीआरपीसी की धारा 188 की व्याख्या में यहां देखे गए निर्णय तक ही सीमित है। धारा 188 के परंतुक, जो यहां पहले निकाला गया है, केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी को छोड़कर, धारा के पहले भाग में उल्लेखित किसी भी अपराध की जांच या ट्रायल करने की प्राधिकारी की शक्तियों पर एक बंधन है। हालांकि, रोक तभी लगायी जाती है, जब परीक्षण का चरण पहुंच जाता है, जो स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि परीक्षण शुरू होने तक धारा 188 के संदर्भ में किसी भी मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। भारत में अपराधी के खिलाफ मुकदमा चलाने के निर्णय के बाद ही आवश्यक महसूस किया गया था कि परीक्षण शुरू होने से पहले केंद्र सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होगी.... तदनुसार, संज्ञान लेने के चरण तक, केंद्र सरकार से सीआरपीसी की धारा 188 के प्रावधानों के संबंध में किसी भी पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी। हालाँकि, केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना ट्रायल संज्ञान चरण से आगे नहीं बढ़ सकता है। इसलिए, मजिस्ट्रेट अन्य कथित अपराधों से बाधित हुए बिना जिसके लिए मंजूरी की आवश्यकता होगी, भारत में किए गए अपराधों के संबंध में आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करने और मुकदमे को पूरा करने और उसमें निर्णय पारित करने के लिए स्वतंत्र है ।"

केस : नेरेल्ला चिरंजीवी अरुण कुमार बनाम आंध्र प्रदेश सरकार, एसएलपी (क्रिमिनल) 3978/2021

कोरम : न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस

साइटेशन : एलएल 2021 एससी 350

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