अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश के विकास में बाधाएं पैदा की जा रही हैं: पीएम मोदी ने संविधान दिवस के संबोधन में कहा

Update: 2021-11-27 04:46 GMT

सुप्रीम कोर्ट द्वारा विज्ञान भवन में आयोजित संविधान दिवस कार्यक्रम में बोलते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देकर कहा कि सरकार और न्यायपालिका दोनों संविधान के गर्भ से पैदा हुए हैं और इसलिए दोनों जुड़वां हैं।

पीएम मोदी ने कहा,

"ये दोनों संविधान के कारण ही अस्तित्व में आए हैं। इसलिए व्यापक दृष्टिकोण से अलग होने के बावजूद ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।"

इस अवसर पर भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमाना, केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजुजू, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश, भारत के महाधिवक्ता के के वेणुगोपाल और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह उपस्थित थे।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें हजारों वर्षों की भारत की महान परंपरा को संजोते हुए और स्वतंत्रता के लिए जीने और मरने वाले लोगों के सपनों के आलोक में संविधान दिया।

पीएम ने इसे 'दुर्भाग्यपूर्ण' करार दिया कि कभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर तो कभी अन्य माध्यमों से राष्ट्र के विकास में बाधाएं पैदा की जाती हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जो पेरिस समझौते के लक्ष्यों को समय से पहले हासिल करने की प्रक्रिया में है। फिर भी पर्यावरण के नाम पर भारत पर विभिन्न दबाव बनाए जाते हैं।

यह देखते हुए कि यह सब एक औपनिवेशिक मानसिकता का परिणाम है, उन्होंने कहा:

"दुर्भाग्य से ऐसी मानसिकता के कारण हमारे अपने देश के विकास में बाधाएं आती हैं। कभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर तो कभी किसी और चीज की मदद से... यह औपनिवेशिक मानसिकता देश को और मजबूत करने में एक बड़ी बाधा है। हमें इन बाधाओं को हटाना होगा। इसके लिए हमारी सबसे बड़ी ताकत, हमारी सबसे बड़ी प्रेरणा हमारा संविधान है।"

उन्होंने यह भी कहा कि आज कोई भी राष्ट्र सीधे तौर पर किसी अन्य राष्ट्र के उपनिवेश के रूप में मौजूद नहीं है। हालांकि, उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि औपनिवेशिक मानसिकता समाप्त हो गई है।

उन्होंने आगे कहा,

"यह मानसिकता कई विकृतियों को जन्म दे रही है। हम विकासशील देशों की विकास यात्रा में आने वाली बाधाओं में इसका स्पष्ट उदाहरण देख सकते हैं।"

हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि 'औपनिवेशिक मानसिकता' द्वारा बनाई जा रही 'बाधाओं' को दूर करने के लिए संविधान हमारी सबसे बड़ी ताकत है।

उन्होंने सत्ता के पृथक्करण की अवधारणा के महत्व को भी रेखांकित किया और कहा कि अमृत काल में संविधान की भावना के भीतर सामूहिक संकल्प दिखाने की आवश्यकता है, क्योंकि आम आदमी उससे कहीं अधिक का हकदार है जितना कि उसके पास वर्तमान में है।

सत्ता के पृथक्करण के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि हमें सामूहिक जिम्मेदारी का मार्ग प्रशस्त करना है, एक रोडमैप बनाना है, लक्ष्य निर्धारित करना है और सत्ता के पृथक्करण की मजबूत नींव पर देश को उसके गंतव्य तक ले जाना है।

प्रधानमंत्री ने जोर दिया,

"हम सभी की अलग-अलग भूमिकाएं, अलग-अलग जिम्मेदारियां, काम करने के अलग-अलग तरीके हो सकते हैं, लेकिन हमारी आस्था, प्रेरणा और ऊर्जा का स्रोत एक ही है - हमारा संविधान।"

उन्होंने यह भी कहा कि अन्य देशों की तुलना में भारत के समान समय के आसपास स्वतंत्र हुए राष्ट्र आज हमसे बहुत आगे हैं और इसका मतलब है कि अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है और हमें साथ में लक्ष्य तक पहुंचना है।

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