उचित अवसर दिए बिना न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दोहराया कि न्यायिक अधिकारी द्वारा किसी भी मामले में जिस तरह से विवेक का प्रयोग किया गया है, उसके संबंध में प्रतिकूल टिप्पणी करने वाले आदेश संबंधित व्यक्ति को अवसर दिए बिना नहीं दिए जाने चाहिए, जिसका करियर और सम्मान प्रभावित होगा।
जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ कर्नाटक हाईकोर्ट के फरवरी, 2022 के फैसले के खिलाफ अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश, मैसूरु की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता-न्यायाधीश के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी की गई, जबकि दहेज प्रताड़ना के मामले में आरोपी की जमानत रद्द करने के संबंध में आपराधिक याचिका का निस्तारण किया गया था।
हाईकोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ने "न्यायिक विचार प्रक्रिया की दृष्टि खो दी" और "न्यायिक विवेक का प्रयोग करने में विफल रहा"। यहां तक कि रजिस्ट्री को अपीलकर्ता-न्यायिक अधिकारी को प्रशिक्षण के लिए न्यायिक अकादमी में तैनात करने के लिए चीफ जस्टिस से आदेश प्राप्त करने का भी निर्देश दिया।
खंडपीठ का विचार था कि इस तरह का अवलोकन और निर्देश उचित नहीं है।
खंडपीठ ने टिप्पणी की,
"यह अदालत बार-बार संकेत देती रही है कि इस तरह के आदेश संबंधित व्यक्ति को अवसर दिए बिना नहीं दिए जाने चाहिए, जिनके करियर और सम्मान पर असर पड़ेगा।"
इस प्रकार खंडपीठ ने अपीलकर्ता को न्यायिक अकादमी में तैनात करने के निर्देश को रद्द कर दिया और हाईकोर्ट के आदेश में निहित अपीलकर्ता के खिलाफ टिप्पणियों को भी समाप्त कर दिया।
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