सुप्रीम कोर्ट ने मुहम्मद ग़ौस-तानसेन मकबरे परिसर में उर्स और नमाज़ की अनुमति के लिए केंद्र और ASI से जवाब मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ विशेष अवकाश याचिका (SLP) में नोटिस जारी किया है, जिसमें ग्वालियर स्थित हज़रत शेख़ मुहम्मद ग़ौस के मकबरे के पास धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों जैसे उर्स और नमाज़ करने की अनुमति को अस्वीकार किया गया था। इस दरगाह में मुगल सम्राट अकबर के नौ रत्नों में से एक, महान संगीतकार तानसेन का मकबरा भी मौजूद है।
जस्टिस बीवी नागरथना और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने SLP के साथ-साथ अंतरिम याचिका पर भी नोटिस जारी किया।
हज़रत मुहम्मद ग़ौस का मकबरा केंद्रीय संरक्षण में है और इसे 1962 में Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958 के तहत राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया था। परिसर में तानसेन और मुहम्मद ग़ौस के मकबरे बनाए गए हैं।
SLP के अनुसार, याचिकाकर्ता दरगाह हज़रत शेख़ मुहम्मद ग़ौस के सज्ज़ादा नशीं और मुहम्मद ग़ौस के कानूनी वारिस हैं। उनका दावा है कि पिछले 400 वर्षों से यहां विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहे हैं। लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा दरगाह को संरक्षित स्मारक घोषित करने के बाद उर्स और नमाज़ पर रोक लगा दी गई।
याचिकाकर्ता ने मार्च 2024 में ASI से अनुमति मांगी थी, लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया गया। इसके पीछे कारण था कि 1958 के एक्ट और 1959 के नियमों के तहत ऐसी अनुमति नहीं दी जा सकती और ऐसा करने पर दो साल की जेल और ₹1 लाख जुर्माने का प्रावधान है।
इसके खिलाफ याचिकाकर्ता हाईकोर्ट गया, जहां केंद्र और राज्य सरकार ने उनके अनुरोध का विरोध किया। उनका कहना था कि याचिकाकर्ता “साफ़ हाथों” से कोर्ट में नहीं आया, क्योंकि उसने और उसके वारिसों ने मकबरे की संपत्ति के कई दावे किए, जिन्हें लगातार खारिज किया गया। इसके अलावा, याचिकाकर्ता पर आरोप था कि उसने अवैध कार्य किए, जैसे कि बिजली की वायरिंग, लाइट्स, टेंट/स्ट्रक्चर, भट्टियां और दीवारों में कीलें ठोकना। उन्होंने परिसर में कचरा फैलाया और आगंतुकों को परेशान किया।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह स्मारक पूजा स्थल या दरगाह नहीं आता और इसे संरक्षित रखना आवश्यक है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा:
“मुहम्मद ग़ौस का मकबरा (जिसमें तानसेन का मकबरा भी शामिल है) 23-01-1962 की गज़ट अधिसूचना के तहत राष्ट्रीय महत्व का प्राचीन स्मारक घोषित किया गया और तब से इसे केंद्रीय सरकार/ASI द्वारा संरक्षित किया जा रहा है। यदि याचिकाकर्ता को उर्स और नमाज़ करने की अनुमति दी जाती है, तो जैसा कि केंद्र सरकार/उत्तरदाताओं ने कहा, संरचना को नुकसान होगा—टेंट लगाए जाएंगे, कीलें ठोकें जाएंगे, लाइट्स लगाई जाएंगी, जिससे क्षति, प्रदूषण और अपवित्रता होगी।
स्मारक को राष्ट्रीय महत्व का पुरातात्विक स्मारक घोषित किया गया है। इसलिए इसे संरक्षित रखा जाना चाहिए और याचिकाकर्ता द्वारा बताए गए उपयोग के लिए अनुमति नहीं दी जा सकती। यह स्मारक पूजा स्थल या दरगाह नहीं है और केवल स्मारक के रूप में संरक्षित किया जाएगा।”