जब मरीज को सर्जरी के लिए ले जाया गया और उस समय ऑपरेशन थियेटर उपलब्ध नहीं था तो यह अस्पताल की ओर से चिकित्सा लापरवाही नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में माना कि जब अन्य रोगियों की सर्जरी की जा रही हो, उस समय इमर्जेंसी ऑपरेशन थियेटर की अनुपलब्धता अस्पताल की लापरवाही का वैध आधार नहीं हो सकती।
जस्टिस हेमंत टी गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि गंभीर स्थिति में भर्ती कोई मरीज अगर सर्जरी के बाद भी जिंदा नहीं रह पाता तो दोष अस्पताल या डॉक्टर को नहीं दिया जा सकता है, जिसने अपने साधनों के अनुसार हर संभव उपचार दिया।
"अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों से समय-समय पर परामर्श किया गया है और उसी के मुताबिक उपचार में संशोधन किया गया। उपचार के बावजूद, यदि रोगी जीवित नहीं रहता है तो डॉक्टरों को दोष नहीं दिया जा सकता है क्योंकि अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता के बावजूद डॉक्टर होनी को नहीं टाल सकते।"
मौजूदा मामला बॉम्बे हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च सेंटर और उसके एक डॉक्टर के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) में की गई शिकायत से जुड़ा था। आयोग ने 2010 एक आदेश में चिकित्सा लापरवाही और सेवाओं में कमी के कारण मृतक को ब्याज सहित 14,18,491 रुपये भुगतान करने का निर्देश दिया था।
शिकायत में आरोप लगाया गया था कि डॉक्टर ने सर्वेक्षण के बाद मरीज की जांच नहीं की। उसके डीएसए टेस्ट और एंजियोग्राफी में विलंब किया गया। बाद में ऑपरेशन थियेटर की अनुपलब्धता के कारण इलाज में देरी हुई। दलील यह भी दी गई कि तर्क दिया कि रोगी को अनुभवहीन डॉक्टरों के भरोसे छोड़ दिया गया था, जिन्होंने गैंग्रीन का ठीक से इलाज नहीं किया।
अस्पताल ने दो कारकों का उल्लेख किया, जिनके कारण एनसीडीआरसी ने डॉक्टर के खिलाफ फैसला सुनाया-
-उन्होंने ब्लड फ्लो की पुष्टि के लिए सर्जरी के तुरंत बाद रोगी से मुलाकात की;
-जब वे मुंबई में थे (29.04.1988 - 9.5.1988) तो वे रोगी से मिलने नहीं गए और वे चिकित्सा सम्मेलन में भाग लेने के लिए विदेश चले गए (9.5.1988 - 7.6.1998)
अदालत ने पाया कि मशीन के काम न करने के कारण डीएसए परीक्षण में हुए विलंब के लिए डॉक्टर और अस्पताल पर लापरवाही को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, यह मानवीय नियंत्रण से परे था। अदालत ने कहा कि डॉक्टर भरसक प्रयास किए, यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि उन्होंने एंजियोग्राफी के जरिए ब्लड फ्लो को निर्धारित करने के लिए जल्द ही वैकल्पिक प्रक्रिया को अपनाया।
कोर्ट ने कहा,
"जब रोगी को सर्जरी के लिए ले जाया गया और उस समय ऑपरेशन थिएटर खाली नहीं था तो इसके लिए अस्पताल को कोई दोष नहीं दिया जा सकता है। ऑपरेशन थिएटर को हर समय उपलब्ध नहीं माना जा सकता है। इसलिए, एक इमर्जेंसी ऑपरेशन थियेटर की अनुपलब्धता, जबकि अन्य रोगियों की सर्जरी की जा रही है, किसी भी प्रकार से अस्पताल की लापरवाही का वैध आधार नहीं है।"
कोर्ट ने कहा कि सर्जरी में लापरवाही हुई है, यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है। केवल यह तथ्य कि डॉक्टर विदेश चला गया, यह लापरवाही साबित नहीं करता है। कोर्ट ने कहा कि आज की विशेषज्ञता की दुनिया में यह तर्क कि सर्जरी करने वाला डॉक्टर को उपचार के अन्य पहलुओं के लिए जिम्मेदार होना चाहिए, न्यायालय को प्रभावित नहीं करता था।
कोर्ट ने माना,
"अस्पताल में डॉक्टर रोगी के बिस्तर के किनारे खड़ा रहे, यह अपेक्षा करना बहुत अधिक है....। एक डॉक्टर उचित देखभाल की अपेक्षा की जाती है, जो कि मौजूदा मामले में साबित नहीं होती है।"
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के कारण पहले ही दी जा चुकी पांच लाख रुपये की राशि को शिकायतकर्ता को एक अनुग्रह भुगतान के रूप में माना और कहा कि अस्पताल या डॉक्टर इसे वसूल नहीं सकते हैं।
केस शीर्षक: बॉम्बे हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च सेंटर बनाम आशा जायसवाल और अन्य
सिटेशन: एलएल 2021 एससी 694