इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबे समय से लंबित आपराधिक अपील: सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को कार्यवाही की समय सीमा पर एक 'जिम्मेदार अधिकारी' के माध्यम से हलफनामा दाखिल करने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यूपी राज्य को अपने गृह विभाग से एक "जिम्मेदार अधिकारी" के माध्यम से दो दिनों के भीतर एक हलफनामा दायर करने के लिए कहा।
इस हलफनामे में यह बताने के लिए कहा गया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष 2016 की आपराधिक अपील को कितनी बार सूचीबद्ध किया गया, कितनी बार स्थगन अपीलकर्ता द्वारा मांग की गई, कि मामला सुनवाई के लिए पहुंचा या नहीं और पेपर-बुक तैयार की गई या नहीं।
मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमाना ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि शुक्रवार तक हलफनामा दाखिल नहीं किया जाता है, तो अदालत को राज्य के गृह सचिव को व्यक्तिगत रूप से पेश होने की आवश्यकता होगी।
जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस हिमा कोहली के शामिल थीं, पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फरवरी 2018 के आदेश के खिलाफ एक एसएलपी पर सुनवाई कर रहे थी। इसमें 2016 में दायर एक अपील में एसएलपी याचिकाकर्ता को जमानत देने से इनकार कर दिया गया था। इसमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत उसकी सजा के खिलाफ, जहां मौत का कारण था। इस घटना में याचिकाकर्ता की पत्नी झुलस गई थी।
बुधवार को पीठ ने प्रतिवादी-राज्य के वकील से 2016 से लंबित अपील और जेल में बंद याचिकाकर्ता के बारे में पूछा था।
जब राज्य के वकील ने जवाब दिया कि यह याचिकाकर्ता के कहने पर ही हाईकोर्ट के समक्ष बार-बार स्थगन की मांग की गई है, तो पीठ ने उसे मामले के रिकॉर्ड से इसे इंगित करने के लिए कहा।
सीजेआई रमाना ने सख्ती से कहा,
"राज्य के बयानों में कुछ विश्वसनीयता होनी चाहिए! गैर-जिम्मेदार बयान नहीं दिए जा सकते! अन्यथा कल के बाद हम आपके बयानों पर विश्वास नहीं करेंगे!"
अपने आदेश को तय करते हुए पीठ ने दर्ज किया कि यह प्रतिवादी-राज्य की दलील है कि याचिकाकर्ता बार-बार स्थगन ले रहा है, याचिकाकर्ता ने इससे इनकार किया है।
मामले को शुक्रवार को सूचीबद्ध करते हुए पीठ ने आदेश दिया कि तब तक यूपी राज्य द्वारा अपने गृह विभाग में एक जिम्मेदार अधिकारी के माध्यम से एक हलफनामा दायर किया जाएगा, जिसमें यह संकेत दिया जाएगा कि मामला कितनी बार हाईकोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध किया गया, चाहे वह सुनवाई के लिए पहुंचा या नहीं। इसके साथ ही कितनी बार याचिकाकर्ता (हाईकोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता) द्वारा स्थगन की मांग की गई और क्या मामले में पेपर-बुक तैयार की गई है या नहीं।
सीजेआई ने कहा,
"यदि आप परसों तक फाइल नहीं करते हैं, तो गृह सचिव व्यक्तिगत रूप से पेश होंगे।"
केस शीर्षक: पिंटू सैनी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य