COVID- 19: निजी प्रयोगशालाओं में टेस्ट के 4500 रुपये पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इतनी कीमत लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती

Update: 2020-04-08 07:26 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि COVID -19 के टेस्ट के लिए निजी प्रयोगशालाओं को इतनी ऊंची कीमत वसूलने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने केंद्र सरकार को कहा है कि वो कोई ऐसा तंत्र विकसित करे जिसके तहत निजी प्रयोगशाला के टेस्ट राशि को सरकार वापस कर सके। पीठ ने साफ किया कि वो इस संबंध में आदेश पारित करेगी।

वहीं केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वो इस मामले में निर्देश लेंगे। उन्होंने कहा कि 118 प्रयोगशालाओं में रोजाना 15 हजार टेस्ट हो रहे थे। इन 47 निजी प्रयोगशालाओं को जोड़ा गया। पता नहीं कितनी और चाहिए होंगी। पता नहीं है कि लॉकडाउन कब तक चलेगा।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था जिसमें नागरिकों के सरकारी और निजी सभी प्रयोगशालाओं में COVID- 19 टेस्ट की नि: शुल्क सुविधा प्रदान करने के लिए भारत सरकार को दिशा-निर्देश मांगे गए हैं।

जस्टिस नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को ईमेल आदि के माध्यम से याचिका की प्रति सॉलिसिटर जनरल को देने के निर्देश दिए थे।

यह याचिका वकील शशांक देव सुधी ने शीर्ष अदालत के समक्ष दायर की है।

याचिकाकर्ता ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा जारी किए गए 17 मार्च की एडवाइजरी को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के लिए मनमानी और असंवैधानिक उल्लंघन के रूप में घोषित करने की मांग की है जिसमें COVID-19 के असाधारण स्वास्थ्य संकट में  परीक्षण सुविधाओं की पहुंच में भेदभाव किया गया।

याचिका में सभी उत्तरदाताओं जिसमें भारत संघ , ICMR और अन्य शामिल हैं, को निर्देश देने की मांग की गई है कि वो जल्द से जल्द कोरोना के परीक्षण सुविधाओं को तेज करे।

याचिका में आगे कहा गया है कि  COVID-19  से संबंधित सभी परीक्षण NABL मान्यता प्राप्त  प्रयोगशालाओं के तहत हा  आयोजित किए जाने चाहिए, क्योंकि गैर-मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएं वैश्विक मानकों के अनुरूप नहीं है।

याचिका में आगे कहा गया है कि उत्तरदाताओं को अपने डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ सहित सभी निजी अस्पतालों के डॉक्टरों को समायोजित करने के लिए कहा जाए ताकि वे प्रभावी रूप से महामारी के खिलाफ लड़ाई में शामिल हो सकें।

शशांक देव सुधी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है,

"हमारे देश की सरकार पूरी तरह से दुविधा में है और 4500 / - रुपये की दर से निजी अस्पताल / प्रयोगशालाओं में COVID -19 के परीक्षण की सुविधा के संबंध में मनमाने ढंग से कैपिंग का एक तर्कहीन निर्णय लेने के लिए मजबूर है। प्रतिवादी का यह निर्णय अत्यंत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।"

याचिका में कहा गया है कि यह महामारी खतरनाक विपत्ति के साथ देश के नागरिक के जीवन को असाधारण रूप से खतरे में डाल रही है और इसने लोगों के स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को उजागर कर दिया है।

देश की सरकार पूरी तरह से दुविधा में फंस गई है और मनमाने ढंग से इस तरह का  एक तर्कहीन निर्णय लेने के लिए मजबूर है और निजी अस्पताल / प्रयोगशालाओं में COVID-19 के परीक्षण की सुविधा का सम्मान किया जा रहा है, याचिका में कहा गया है।

याचिका में ये भी कहा गया है कि प्रतिवादी द्वारा लिया गया निर्णय अत्यंत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसमें ऐसी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए पूरे देश को बंद कर दिया गया है और सरकारी अस्पताल क्षमता से अधिक भरे हुए हैं।

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