लोगों से जुड़े रहने के लिए वादियों की नब्ज़ पहचानना ज़रूरी: जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से विदाई ली
जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने झारखंड हाईकोर्ट में ट्रांसफर होने के बाद हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट को विदाई दी।
अपने विदाई भाषण में उन्होंने कहा कि वे बुद्धिमान व्यक्ति नहीं बल्कि मेहनती व्यक्ति थे और उनका मानना था कि आप जितनी कड़ी मेहनत करेंगे उतना ही भाग्यशाली बनेंगे।
उन्होंने लोगों की वास्तविकताओं से जुड़े रहने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और कहा,
"अगर आप लोगों या वादियों की नब्ज़ नहीं पहचानते तो यह संभव नहीं होता।"
उन्होंने याद किया कि कैसे खबरें आईं कि महामारी के दौरान कुछ मुंशी और वकील अपना पेशा छोड़कर अपने गृहनगर लौट गए, जो उन कठिनाइयों की याद दिलाता है, जिनका सामना करना पड़ा था। उन्होंने कहा कि तभी पीठ ने सामूहिक रूप से कार्रवाई करने का फैसला किया ताकि न्यायपालिका में लोगों का विश्वास बना रहे।
बार के युवा सदस्यों की ओर मुड़ते हुए उन्होंने कहा,
"आपकी सशक्त वकालत और व्यावहारिक तर्कों और साथ ही न्याय की जोशीली पैरवी ने इस यात्रा को चुनौतीपूर्ण और रोचक बना दिया है। यकीन मानिए, आपके तर्कों ने मेरी परीक्षा ली मुझे चुनौती दी और अक्सर मुझे प्रेरित किया।"
दृढ़ता में अपने विश्वास को दोहराते हुए उन्होंने युवा वकीलों को याद दिलाया कि कानूनी पेशे में अपनी पहचान बनाना कभी आसान नहीं होता,
"गर्भावस्था का समय बहुत लंबा होता है लेकिन आपको उस पर डटे रहना होता है।”
अंत में जस्टिस चौहान ने कहा कि उनकी विदाई के दौरान उमड़ी भावनाओं ने उन्हें विनम्र बनाया और उन्हें एक बेहतर इंसान बनाया।
उन्होंने कहा,
"एक वकील और एक जज के रूप में मैंने जो कुछ भी किया, वह मैंने अपनी शपथ के कारण किया कि मैं हमेशा बिना किसी भय या पक्षपात के कानून की गरिमा को बनाए रखूंगा।”
उन्होंने बार के जूनियर सदस्यों को उन्हीं ऊँची उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए प्रोत्साहित करते हुए समापन किया।
उन्होंने कहा,
"हमेशा अपने सक्षम कंधों पर टिकी हुई भारी जिम्मेदारी के प्रति सचेत रहें ताकि आप अपने ग्राहकों में विश्वास पैदा करने वाले तरीके से आचरण कर सकें।"