Isha Foundation v Nakkheeran Publications: सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों से हाईकोर्ट में समाधान निकालने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (21 जुलाई) को सद्गुरु के ईशा फाउंडेशन से कहा कि वह तमिल मीडिया आउटलेट नक्खीरन पब्लिकेशन्स को फाउंडेशन के खिलाफ अपमानजनक सामग्री प्रकाशित करने से रोकने की अपनी याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखें।
अदालत ने नक्खीरन को ईशा फाउंडेशन द्वारा दायर वाद खारिज करने के लिए सीपीसी के आदेश VII नियम 7 के तहत आवेदन दायर करने की भी अनुमति दी। हाईकोर्ट से अनुरोध किया गया कि वह पक्षकारों द्वारा दायर आवेदनों पर जल्द से जल्द विचार करे।
इन टिप्पणियों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने नक्खीरन द्वारा दायर स्थानांतरण याचिका और फाउंडेशन द्वारा स्थानांतरण याचिका में दायर अंतरिम आवेदन का निपटारा किया।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ईशा फाउंडेशन की उस याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें नक्खीरन पब्लिकेशन्स को उसके खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक सामग्री प्रकाशित करने से "जारी रखने" से रोकने की मांग की गई थी।
ईशा फाउंडेशन की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि मानहानि का मुकदमा लंबित होने के बावजूद, नक्खीरन पब्लिकेशन्स ईशा फाउंडेशन के खिलाफ मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित कर रहा है, जिसमें अंग व्यापार के आरोप भी शामिल हैं। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जिन आधारों पर स्थानांतरण की मांग की गई, वे स्वीकार्य नहीं हैं।
दूसरी ओर, नक्खीरन की ओर से सीनियर एडवोकेट आर. बालासुब्रमण्यम ने आरोप लगाया कि फाउंडेशन ने प्रतिवादी(ओं) को सूचित किए बिना ही अपना आवेदन सूचीबद्ध करवा लिया। उन्होंने आगे दलील दी कि फाउंडेशन भी वही राहत मांग रहा है, जिसे दिल्ली हाईकोर्ट ने अस्वीकार कर दिया।
जस्टिस कांत ने कहा कि नक्खीरन द्वारा उठाए गए आधार, जैसे कि अधिकार क्षेत्र का अभाव, स्थानांतरण के लिए उपयुक्त आधार नहीं हो सकते हैं।
जस्टिस कांत ने सुझाव दिया कि वे आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत वाद खारिज करने की मांग कर सकते हैं।
डॉ. बाला ने कहा,
"अधिकार क्षेत्र के प्रश्न को पहले मुद्दे के रूप में तय किया जाना चाहिए। अगर यह नहीं होता तो पूरी बात ही खत्म हो जाती है। दुर्भाग्य से उन्होंने मुकदमा दायर किया और अस्थायी निषेधाज्ञा भी मांगी... पिछले 8 महीनों से, वे खुश हैं क्योंकि उन्हें कोई निषेधाज्ञा नहीं मिली... लेकिन मेरी याचिका में वे वही राहत मांग रहे हैं, जो हाईकोर्ट ने अस्वीकार कर दी थी... अगली तारीख अगस्त में है।"
वकीलों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस कांत ने डॉ. बाला से कहा कि नक्खीरन प्रकाशन द्वारा स्थानांतरण की मांग के लिए उठाए गए आधार, आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत वाद को खारिज करने के लिए आवेदन के लिए उपयुक्त आधार होंगे।
खंडपीठ का सुझाव स्वीकार करते हुए बालासुब्रमण्यम स्थानांतरण याचिका वापस लेने पर सहमत हो गए। चूंकि स्थानांतरण याचिका वापस ले ली गई थी, इसलिए फाउंडेशन का आवेदन भी अंततः निपटा दिया गया।
संक्षेप में मामला
पिछले साल ईशा फाउंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में नक्खीरन प्रकाशन के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था, जिसमें दावा किया गया कि इसकी कुछ सामग्री ने फाउंडेशन की प्रतिष्ठा को धूमिल किया। मुकदमे में 3 करोड़ रुपये के हर्जाने की मांग की गई।
इसके बाद नक्खीरन पब्लिकेशन्स ने मानहानि के मुकदमे को दिल्ली से चेन्नई स्थानांतरित करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरण याचिका दायर की। इसके बाद ईशा फाउंडेशन ने नक्खीरन की स्थानांतरण याचिका में आवेदन दायर कर उसके द्वारा किसी भी मानहानिकारक सामग्री के प्रकाशन पर रोक लगाने की मांग की।
16 जुलाई को सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने जस्टिस कांत की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष ईशा फाउंडेशन की ओर से इस आवेदन का उल्लेख किया। उन्होंने तर्क दिया कि नक्खीरन पब्लिकेशन्स ईशा फाउंडेशन के खिलाफ अपना "निंदा अभियान" जारी रखे हुए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरण याचिका दायर करते हुए कहा कि मानहानि का मुकदमा चेन्नई में चलाया जाना चाहिए।
रोहतगी ने आगे बताया कि एक चैंबर जज ने पब्लिकेशन्स की स्थानांतरण याचिका पर नोटिस जारी किया था और तर्क दिया था कि उपरोक्त तथ्य स्थानांतरण का आधार नहीं हो सकते।
आवेदन में मांगी गई राहत के बारे में पूछे जाने पर सीनियर वकील ने कहा,
"वह स्थानांतरण करवाकर यह काम जारी नहीं रख सकते...आईए का उद्देश्य उन्हें यह मानहानिपूर्ण अभियान चलाने से रोकना है, फिर स्थानांतरण को यहां क्यों लाया जा रहा है। इसे बदनाम क्यों किया जा रहा है...अगर वह चाहते हैं कि इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का उपयोग किया जाए तो उन्हें ऐसा करना ही होगा...हम एक धर्मार्थ संगठन हैं, जिसके अनुयायी दुनिया भर में हैं...आज, सोशल मीडिया पर वह लगातार बोल रहे हैं..."
तदनुसार, मामला सोमवार यानी आज के लिए सूचीबद्ध किया गया था।
Case Title: NAKKHEERAN PUBLICATIONS v. GOOGLE LLC, T.P.(C) No. 1403/2025