जजों को जेंडर संवेदनशीलता का प्रशिक्षण दिया जाए; एलएलबी और एआईबीई पाठ्यक्रम में ऐसे विषयों को शामिल करेंः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया है कि जजों और पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को जेंडर संवेदनशीलता का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने यह भी कहा कि प्रत्येक हाईकोर्ट को न्यायिक सेवा परीक्षा में टेस्ट करने के लिए यौन अपराधों पर न्यायिक संवेदनशीलता के लिए एक मॉड्यूल तैयार करना चाहिए। पीठ ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया को भी निर्देश दिया है कि वह एलएलबी और एआईबीई पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में ऐसे कोर्स को शामिल करने के लिए कदम उठाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश उस फैसले में दिए हैं,जिसके तहत मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले को रद्द कर दिया गया था। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आरोपी व्यक्ति (अपनी पड़ोसी की शालीनता को अपमानित करने का आरोपी) पर जमानत की शर्त लगाते हुए कहा था कि वह पीड़िता से अनुरोध करे कि वह उसकी कलाई पर राखी बांध दे।
नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमी से यह अनुरोध किया जा रहा है कि वह शीघ्रता से, उस आवश्यक इनपुट्स को तैयार करें, जिसे युवा न्यायाधीशों के प्रशिक्षण का हिस्सा बनाया जाना है, साथ ही जेंडर संवेदनशीलता के संबंध में जजों को बार-बार दी जाने वाली शिक्षा में शामिल किया जाना है। वहीं न्यायिक तर्क मेें शामिल होने वाली स्टीरियोटाइपिंग व अचेतन पक्षपात के लिए पर्याप्त जागरूकता कार्यक्रम बनाए जाएं। मनोविज्ञान, जेंडर अध्ययन या अन्य प्रासंगिक क्षेत्रों में समाजशास्त्रियों और शिक्षकों के साथ आवश्यक परामर्श के बाद अधिमानतः तीन महीने के भीतर पाठ्यक्रम और उसकी सामग्री को तैयार किया जाए।
पाठ्यक्रम में विचार किए जाने वाले प्रासंगिक कारकों पर जोर दिया जाना चाहिए, और महत्वपूर्ण रूप से, अदालत की सुनवाई के दौरान क्या नहीं किया जाना चाहिए और किसे न्यायिक तर्क में कभी शामिल नहीं करना चाहिए। सरकारी वकील और स्थायी वकील को भी इस संबंध में अनिवार्य प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। प्रशिक्षण कार्यक्रम, इसकी सामग्री व इसकी अवधि को राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी द्वारा, राज्य अकादमियों के परामर्श के बाद तैयार किया जाए। इस पाठ्यक्रम में उचित कोर्ट परीक्षण,आचरण और किससे बचा जाना चाहिए आदि टाॅपिक शामिल किए जाने चाहिए।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को भी विषय विशेषज्ञों से परामर्श करना चाहिए और एलएल.बी कार्यक्रम में स्नातक स्तर पर पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रमों के संबंध में कानून संकायों और कॉलेजों/विश्वविद्यालयों के साथ चर्चा के लिए एक पेपर प्रसारित करना चाहिए। बीसीआई को भी अखिल भारतीय बार परीक्षा के पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से यौन अपराधों और जेंडर संवेदनशीलता से संबंधित विषयों को शामिल करने की आवश्यकता है।
प्रत्येक हाईकोर्ट को संबंधित विशेषज्ञों की सहायता से, यौन अपराधों पर न्यायिक संवेदनशीलता के लिए एक मॉड्यूल तैयार करना चाहिए और उसे न्यायिक सेवा परीक्षा में टेस्ट किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति रवींद्र भट, जिन्होंने निर्णय तैयार किया है,उन्होंने फैसला हेनरिक इबसन (नॉर्वेजियन नाटककार) के निम्नलिखित उद्धरण के साथ शुरू कियाः ''वर्तमान समय के समाज में एक महिला खुद नहीं हो सकती है, जो विशेष रूप से एक मर्दाना समाज है, जिसमें पुरुषों ने कानून तैयार किए हैं और एक ऐसी न्यायिक प्रणाली जो एक मर्दाना दृष्टिकोण से स्त्री आचरण का न्याय करती है।''
कोर्ट ने कहा कि,''इबसन, जो उन्नीसवीं सदी के लेखक थे, ने एक शक्तिशाली बयान दिया (इस फैसले की शुरुआत में एपिग्राम के रूप में उद्धृत), दुख की बात है, आज भी, इक्कीसवीं सदी में, सभी के लिए समानता के लक्ष्य के साथ एक गणतंत्र के रूप में 70 साल बाद भी, कई अदालतें समस्या से बेखबर लगती हैं।"
अदालत ने कहा कि रूढ़िवादिता किसी न्यायाधीश के फैसले की निष्पक्षता से समझौता कर सकती है और गवाह की विश्वसनीयता या आरोपी व्यक्ति के दोष के बारे में उसके विचारों को प्रभावित कर सकती है। "न्यायाधीश हानिकारक रूढ़ियों की न्याय प्रणाली से छुटकारा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन पर कानून और तथ्यों के सबूतों के आधार पर अपने फैसले देने की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, न कि जेंडर स्टीरियोटाइपिंग में लिप्त होने की। इसके लिए जजों द्वारा जेंडर स्टीरियोटाइपिंग की पहचान करना आवश्यक है और यह जानना भी कि कैसे इन रूढ़ियों के अनुप्रयोग व इनको जारी रखना महिलाओं के प्रति भेदभाव करता है या उन्हें न्याय की एक समान पहुंच से वंचित करता है।''
न्यायालय ने यौन अपराधों से निपटने के दौरान अदालतों द्वारा पालन किए जाने वाले दिशानिर्देशों का एक सेट भी जारी किया है।
शीर्षकः अपर्णा भट बनाम मध्य प्रदेश राज्य, सीआरए 329/2021
कोरमः जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस एस रवींद्र भट
उद्धरणः एलएल 2021 एससी 168
निर्णय पढ़ने/ डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें