मैं सक्रिय राजनीति में शामिल होने का इच्छुक था, लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था: सीजेआई रमाना
चीफ जस्टिस एनवी रमाना ने शनिवार को खुलासा किया कि वह सक्रिय राजनीति में शामिल होने के इच्छुक थे, लेकिन नियति में उनके लिए कुछ और था।
उन्होंने कहा, "मैं सक्रिय राजनीति में शामिल होने का इच्छुक था, लेकिन नियति ने कुछ और ही चाहा। जिस चीज के लिए मैंने इतनी मेहनत की थी, उसे छोड़ने का फैसला बिल्कुल भी आसान नहीं था।"
सीजेआई ने यह भी कहा कि उन्हें जज होने का कभी पछतावा नहीं हुआ।
उन्होंने कहा,
"मैं व्यक्तिगत स्तर पर कहूंगा, हां, एक जज के रूप में सेवा करने का अवसर जबरदस्त चुनौतियों के साथ आया था, लेकिन मुझे एक भी दिन कभी खेद नहीं हुआ। यह निश्चित रूप से एक सेवा नहीं बल्कि एक बुलाहट है।"
वे नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची द्वारा आयोजित 'जस्टिस एस बी सिन्हा मेमोरियल लेक्चर', जिसका विषया था- "जज का जीवन", उस पर उद्घाटन भाषण दे रहे थे।
उन्होंने अपने भाषण में बताया,
"मैं एक गांव में किसान परिवार में पैदा हुआ था। अंग्रेजी पढ़ना तब शुरु की, जब मैं 7 वीं या 8 वीं कक्षा में था। 10 वीं कक्षा पास करना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी। बीएससी की डिग्री प्राप्त करने के बाद, मेरे पिता ने मुझे प्रोत्साहित किया, मैंने कानून की डिग्री के साथ अध्ययन समाप्त किया।
मैंने कुछ महीनों के लिए विजयवाड़ा की एक मजिस्ट्रेट अदालत में अपना अभ्यास शुरू किया। एक बार फिर, मेरे पिता ने मुझे प्रोत्साहित किया, मैं आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में अपना अभ्यास शुरू करने के लिए हैदराबाद चला गया। यह निश्चित रूप से मेरे लिए भरोसे की छलांग थी।
जब तक मुझे जज बनने का प्रस्ताव मिला, तब तक मैंने एक अच्छी प्रैक्टिस स्थापित कर ली थी। मैं तालुक स्तर की अदालतों से हाई प्रोफाइल मामलों में सुप्रीम कोर्ट में पेश हुआ था। मुझे अपने राज्य का अतिरिक्त महाधिवक्ता भी नियुक्त किया गया था। मैं सक्रिय राजनीति में शामिल होने का इच्छुक था, लेकिन नियति कुछ और ही चाहती थी। जिस चीज के लिए मैंने इतनी मेहनत की थी, उसे छोड़ने का फैसला बिल्कुल भी आसान नहीं था।"
CJI ने कहा कि इन वर्षों में, उन्होंने अपना करियर और जीवन लोगों के इर्द-गिर्द बनाया। लेकिन बेंच में शामिल होने के बाद अपने सामाजिक संबंधों को छोड़ना पड़ता है।
"वर्षों में, मैंने अपना करियर और जीवन लोगों के इर्द-गिर्द बनाया था। लेकिन, मुझे पता था, अगर कोई बार के दूसरी तरफ जाने और बेंच में शामिल होने का विकल्प चुनता है, तो उसे अपने सभी सामाजिक संबंधों को छोड़ना होगा।"
आसान नहीं है जज की जिंदगी
सीजेआई ने यह भी कहा कि एक जज का जीवन आसान नहीं होता है, जैसा कि अक्सर माना जाता है। सीजेआई ने कहा कि जज सप्ताहांत और छुट्टियों पर भी काम करते हैं और जीवन की कई खुशियों को गवां देते हैं, जिसमें महत्वपूर्ण पारिवारिक कार्यक्रम भी शामिल हैं।
सीजेआई ने कहा, "कभी-कभी, मुझे आश्चर्य होता है कि क्या मेरे पोते मुझे कई दिनों तक न देख पाने के बाद भी मुझे पहचान पाएंगे।"
सीजेआई ने कहा,
"हर हफ्ते 100 से अधिक मामलों की तैयारी करना, नए तर्कों को सुनना, स्वतंत्र शोध करना, और निर्णय लिखना आसान नहीं है, जबकि एक जज, विशेष रूप से एक सीनियर जज के विभिन्न प्रशासनिक कर्तव्यों को भी पूरा करना आसान नहीं है। एक व्यक्ति जिसका पेशे से कोई वास्ता नहीं है, वह तैयारी में लगने वाले घंटों की कल्पना भी नहीं कर सकता।
हम कई घंटे किताबें पढ़ने और अगले दिन सूचीबद्ध मामलों के लिए नोट्स बनाने में बिताते हैं। अगले दिन की तैयारी अदालत के उठने के तुरंत बाद शुरू होती है, और अधिकांश दिनों में आधी रात के बाद भी चलती है। हम सप्ताहांत और अदालत की छुट्टियों के दौरान भी शोध और लंबित निर्णयों को लिखने का काम करना जारी रखते हैं। इस प्रक्रिया में, हम अपने जीवन की कई खुशियों को मिस कर देते हैं। कभी-कभी, हम परिवार के जरूरी मौकों को भी मिसी कर देते हैं कभी-कभी, मुझे आश्चर्य होता है कि क्या मेरे पोते-पोतियां मुझे कई दिनों बाद देखकर पहचान भी पाएंगे।"
अपने भाषण में, सीजेआई ने महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे कि उचित न्यायिक बुनियादी ढांचे को सुनिश्चित करने की आवश्यकता, न्यायिक प्रशासन में मीडिया ट्रायल द्वारा खड़ी की गई समस्याओं, संरक्षण संविधान में न्यायिक पुनर्विचार के महत्व, न्यायपालिका की भविष्य की चुनौतियों आदि की चर्चा की।
मीडिया कंगारू अदालतें चला रहा है
सीजेआई रमाना ने अपने भाषण में मीडिया के कामकाज पर भी चर्चा की।
उन्होंने कहा, हम देखते हैं कि मीडिया कंगारू अदालतें चला रहा है, कभी-कभी अनुभवी जजों को भी मुद्दों पर फैसला करना मुश्किल हो जाता है। न्याय प्रदान करने से जुड़े मुद्दों पर गलत-सूचित और एजेंडा संचालित बहस लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रही है। मीडिया द्वारा प्रचारित किए जा रहे पक्षपातपूर्ण विचार लोगों को प्रभावित कर रहे हैं, लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं और व्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस प्रक्रिया में न्याय वितरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अपनी जिम्मेदारी से से पीछे हटकर आप हमारे लोकतंत्र को दो कदम पीछे ले जा रहे हैं।
उन्होंने कहा, प्रिंट मीडिया की अभी भी कुछ हद तक जवाबदेही है। जबकि, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कोई जवाबदेही नहीं है। सोशल मीडिया अभी भी बदतर है।
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