'मंत्री द्वारा मंदिर का स्वामित्व कैसे बदला जा सकता है?' : सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर की भूमि का सेल डीड रद्द करने का प्रस्ताव रखा

Update: 2024-12-20 03:21 GMT

सितंबर 2014 में महाराष्ट्र के एक मंत्री द्वारा मंदिर की संपत्ति के स्वामित्व में परिवर्तन किए जाने से आश्चर्यचकित होकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कलेक्टर को निर्देश दिया कि वह संबंधित भूमि पर कब्जा कर ले और मंदिर तथा ग्राम समुदाय के लाभ के लिए इसके अस्थायी उपयोग की योजना प्रस्तुत करे।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने यह आदेश पारित करते हुए कहा कि मंदिर के प्रबंधन और/या प्रभावित व्यक्तियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना मंदिर का स्वामित्व बदल दिया गया।

आदेश में कहा गया:

"मंदिर का स्वामित्व मंत्री द्वारा कैसे बदला जा सकता है, वह भी मंदिर प्रबंधन या अन्य प्रभावित व्यक्तियों की सुनवाई के बिना यह समझ से परे है। हम अहमदनगर के कलेक्टर को तत्काल भूमि का भौतिक कब्ज़ा लेने और इस न्यायालय को अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देते हैं। कलेक्टर को विवाद के समाधान तक मंदिर और ग्राम समुदाय के लाभ के लिए वार्षिक पट्टे के आधार पर भूमि की नीलामी सहित भूमि के अस्थायी उपयोग के लिए एक योजना भी प्रस्तुत करनी होगी।"

संक्षेप में कहें तो विषय भूमि देवस्थान यानी गांव के मंदिर के स्वामित्व में थी। हालांकि, 2014 के आदेश द्वारा तत्कालीन राज्य मंत्री (राजस्व, पुनर्वास और सहायता कार्य) ने गोरख पार्वती फाल्के के पक्ष में इसकी बिक्री की सुविधा प्रदान की। फाल्के ने आगे भूमि को बापू रघुनाथ कापसे को बेच दिया, जिन्होंने बदले में इसे (वर्तमान मामले के लंबित रहने के दौरान) विजय देवराम गायके को बेच दिया। चूंकि गायके पक्षकार बनने के लिए आगे नहीं आए, इसलिए न्यायालय ने कहा कि मंदिर की संपत्ति को हड़पने के लिए यह एक सोची-समझी चाल थी।

इसलिए न्यायालय ने गायके को कारण बताओ नोटिस जारी किया कि जब तक पक्षों के अधिकार निर्धारित नहीं हो जाते, तब तक उनके पक्ष में बिक्री विलेख को रद्द क्यों न कर दिया जाए।

केस टाइटल: अरुण बाबूराव फाल्के एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 7278/2020

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