मौखिक आदेश से कैसे जमानत आवेदनों का निपटारा किया जा सकता है? अग्रिम जमानत याचिका का निपटारा एक ही दिन नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बुधवार को कहा है कि, "अग्रिम जमानत याचिका का निस्तारण उसी दिन नहीं किया जा सकता है! अदालतों को चार सप्ताह के बाद या जब भी अदालत के पास समय हो, उन्हें पोस्ट करने का आदेश पारित करना होता है। और उन्हें किसी भी अंतरिम राहत के लिए कारण देना होगा!"
उन्होंने ने कहा, "मैंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में काम किया है और हर दिन 500 जमानत आवेदन सूचीबद्ध हैं! कल्पना कीजिए, क्या आप मौखिक निर्देशों से 500 आवेदनों का निपटारा कर सकते हैं? गुजरात भी एक भारी आबादी वाला राज्य है। अगर जमानत आवेदनों का निपटारा किया जाता है तो मौखिक निर्देशों से होगा तो आपराधिक न्याय का क्या होगा? इससे व्यवस्था का गंभीर दुरुपयोग होगा! पूरे देश में, लोग कहेंगे कि एक मौखिक निर्देश पारित किया गया है!",
जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ एक साझेदारी फर्म के भागीदारों के बीच विवाद के बाद दर्ज हुई एफआईआर के संबंध में गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर एक एसएलपी पर सुनवाई कर रही थी, जहां आरोप है कि कुछ भागीदारों ने अनुचित लाभ उठाया और कुछ राशि की हेराफेरी की और साथ ही दस्तावेजों के फर्जीवाड़े में संलिप्त रहा।
पिछले साल दिसंबर में, यह दर्ज करते हुए कि पार्टियों के वरिष्ठ अधिवक्ता निपटान की संभावना तलाशने के लिए समय मांगते हैं, उच्च न्यायालय द्वारा एक मौखिक निर्देश दिया गया था कि आवेदक को उसके समक्ष गिरफ्तार न किया जाए। इसके बाद 9 मार्च को उच्च न्यायालय ने दर्ज किया कि आवेदक के वकील ने प्रस्तुत किया है कि 23 दिसंबर, 2020 के आदेश द्वारा, आवेदक को गिरफ्तार नहीं करने के लिए मौखिक निर्देश दिया गया था, और प्रतिवादी-शिकायतकर्ता के वरिष्ठ अधिवक्ता ने इस पर विवाद नहीं किया है।
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया, "निश्चित रूप से उपरोक्त आदेश लागू था। पक्ष विवाद को निपटाने की कोशिश कर रहे थे और आवेदक को 8 मार्च, 2021 को गिरफ्तार किया गया था। यदि आवेदक को एफआईआर नंबर (...) के संदर्भ में गिरफ्तार किया जाता है तो उसे तत्काल रिहा कर दिया जाए।"
फिर 15 मार्च को उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि 9 मार्च, 2021 के आदेश के क्रम में 23 मार्च, 2021 तक आवेदक के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जाये। अन्त में उच्च न्यायालय ने 31 मार्च को उक्त अंतरिम आदेश पारित करते हुए दर्ज किया कि दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं द्वारा प्रस्तुत किया गया था कि 23 दिसंबर, 2020 से मौखिक अंतरिम संरक्षण प्रदान किया गया था।
हाईकोर्ट ने कहा, "इस मोड़ पर जब दोनों पक्षों के बीच कार्यवाही स्पष्ट रूप से लंबित है और उन दोनों ने आपराधिक तंत्र को सक्रिय कर दिया है, दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाने के लिए जांच आगे बढ़ने की आवश्यकता है, हालांकि, वर्तमान आवेदक को तब तक गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि सुनवाई की अगली तारीख तय नहीं हो जाती है।"
इस पृष्ठभूमि में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "उच्च न्यायालय ने कहा मौखिक रूप से कहा 'उसे गिरफ्तार मत करो'। इसके बारे में हमारी आपत्ति है। तब उच्च न्यायालय ने कहा 'उसे रिहा करो', जो मौखिक निर्देश के कारण था और उच्च न्यायालय अदालत की महिमा की रक्षा करना चाहता था ... ठीक है, ठीक है। लेकिन फिर भी उच्च न्यायालय जांच में हस्तक्षेप करने और गिरफ्तारी न करने का कोई कारण आदेश में नहीं देता है!"
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि "हमारे देश में वाणिज्यिक नैतिकता का कोई मूल्य नहीं है। क्योंकि वाणिज्यिक मामलों में कानून का कोई शासन नहीं है, हम इस स्थान पर दुनिया में सीढ़ी के नीचे हैं।"
उन्होंने कहा, "कानून का कोई डर नहीं है! पार्टियां समय खरीदती हैं! वे गिरफ्तारी न हो, इसके लिए अंतरिम राहत मांगती हैं! और जिसे 5 करोड़ लेना है, उसे छोड़ दिया जाता है!"
जस्टिस शाह ने जोड़ा, "इसके अलावा, यह धारा 467, 468 और 471 (आईपीसी का) मामला है! इसमें आजीवन कारावास हो सकता हैं और नॉन-कंपाउंडेबल हैं! यदि जालसाजी की जानी है, तो उच्च न्यायालय किसी भी समझौते पर ध्यान नहीं दे सकता है!"
केस टाइटिल: सलीम भाई हामिद भाई मेमन बनाम नितेशकुमार मगनभाई पटेल और अन्य।