अनुच्छेद 226 और 227 के तहत हाईकोर्ट मध्यस्थता अधिनियम के तहत पारित आदेशों पर हस्तक्षेप करने में बेहद चौकस रहे : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-04-09 07:34 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि अनुच्छेद 226 और 227 के तहत अधिकार क्षेत्र का उपयोग करते हुए उच्च न्यायालय को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम के तहत पारित आदेशों के साथ हस्तक्षेप करने में बेहद चौकस होना चाहिए।

जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा,

इस तरह का हस्तक्षेप केवल असाधारण दुर्लभ मामलों में किया जा सकता है या उन मामलों में जिनमें वर्तमान में निहित अधिकार क्षेत्र में कमी कमी हो।

अदालत ने कहा कि दीप इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम ओएनजीसी व अन्य (2020) 15 SCC 706 में निर्णय के माध्यम से यह स्पष्ट करने के बावजूद उच्च न्यायालय अभी भी इस तरह के हस्तक्षेप कर रहे हैं।

इस मामले में, अपीलकर्ता के पक्ष में 122.76 करोड़ रुपये की राशि का एक मध्यस्थता अवार्ड किया गया था जिसमें 56.23 करोड़ रुपये मूलधन और विभिन्न हिस्से के लिए 66.53 करोड़ का भुगतान करने का आदेश दिया गया था। प्रतिवादी द्वारा दायर धारा 34 याचिका में, 122.76 करोड़ रुपये के आंकड़े के 60% जमा पर उक्त अवार्ड का निष्पादन रोक दिया गया था और शेष के लिए सुरक्षा दी गई । दोनों पक्षों ने पूर्वोक्त आदेश के खिलाफ याचिका दायर की। अपीलार्थी द्वारा दायर रिट याचिका खारिज कर दी गई। प्रतिवादी द्वारा दायर रिट याचिका की अनुमति दी गई थी जिसमें 56.23 करोड़ रुपये की मूल राशि का 50% जमा कराने का आदेश दिया गया था।

अपील में, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस प्रकार कहा :

इसके बावजूद न्यायालय ने विशेष रूप से मध्यस्थता अधिनियम की धारा 5 और सामान्य रूप से मध्यस्थता अधिनियम की धारा 2 का उल्लेख किया है और इसके अलावा दीप इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम ओएनजीसी व अन्य (2020) 15 SCC 706 में तय किया है कि अनुच्छेद 226 और 227 के तहत उच्च न्यायालय को मध्यस्थता अधिनियम के तहत पारित आदेशों में हस्तक्षेप करने में अत्यंत चौकस होना चाहिए, इस तरह के हस्तक्षेप केवल असाधारण दुर्लभता या उन मामलों के मामलों में होंगे जिन्हें वर्तमान में निहित अधिकार क्षेत्र में कमी हो , हम पाते हैं कि उच्च न्यायालय पूरी तरह आदेशों के साथ हस्तक्षेप कर रहे हैं, जो असाधारण दुर्लभता या अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र की किसी भी कमी का मामला नहीं है।

उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए, पीठ ने निर्देश दिया कि 60% की जमा राशि और शेष के लिए सुरक्षा चार सप्ताह के भीतर जमा की जानी चाहिए।

मामला: नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी बनाम बैंगलोर मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड [ सीए 1098-1099/ 2021]

पीठ: जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई

उद्धरण: LL 2021 SC 203

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