क्रिमिनल अपील पर निर्णय करते वक्त हाईकोर्ट को मामले की सम्पूर्णता पर विचार करना होगा : सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि गुण - दोषों (मेरिट) के आधार पर क्रिमिनल अपील का निर्धारण करते हुए हाईकोर्ट द्वारा कोई भी फैसला सुनाने से पहले रिकॉर्ड में मौजूद साक्ष्यों सहित मामले की सम्पूर्णता पर विचार किया जाना जरूरी है।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड् और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील मंजूर करते हुए की, जिसमें हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियुक्त की दोषसिद्धि के निर्णय को पलट दिया था। इस मामले में अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 364ए के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी थी। अभियुक्त पर पांच हजार रुपये का जुर्माना भी किया गया था, जिसे जमा न कराने की स्थिति में एक साल अतिरिक्त जेल की सजा काटने का निर्णय सुनाया गया था। हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को दरकिनार कर दिया था। राज्य सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
निर्णय पर गम्भीरता से विचार करते हुए बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट ने साक्ष्यों का या उन दलीलों का स्वतंत्र मूल्यांकन नहीं किया है, जिसे उसने खुद रिकॉर्ड किया था।
कोर्ट ने 'गुजरात सरकार बनाम भालचंद्र लक्ष्मीशंकर दवे [ एलएल 2021 एससी 58 ]' मामले में दिये गये हालिया फैसले में की गयी निम्नलिखित टिप्पणियों का हवाला दिया।
"जहां तक दोषसिद्धि के आदेश के खिलाफ अपील का संबंध है, तो ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है तथा अपीलीय कोर्ट के पास साक्ष्य के मूल्यांकन करने की व्यापक शक्तियां हैं तथा प्रथम अपीलीय अदालत होने के कारण हाईकोर्ट को रिकॉर्ड पर लाये गये सम्पूर्ण साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन करना है।"
बेंच ने अपील मंजूर करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले और आदेश के समर्थन में कोई तर्क नहीं दिया है, ऐसी स्थिति में हमारा मत है कि अपील को मंजूर करना तथा नये सिरे से फैसले के लिए मामले को हाईकोर्ट के पास फिर से भेजा जाना ही उचित होगा।
केस : उत्तर प्रदेश सरकार बनाम अम्बरीश [ क्रिमिनल अपील 446 / 2021 ]
कोरम : न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह
साइटेशन : एलएल 2021 एससी 238
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