हाईकोर्ट के पास विशेष तरीके से जांच करने का निर्देश देने की शक्ति नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के पास भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 या दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत भी किसी विशेष तरीके से जांच करने का निर्देश देने की शक्ति नहीं है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा जारी निर्देश के खिलाफ अपील पर विचार करते हुए यह बात कही।
कथित रूप से सार्वजनिक धन के गबन में शामिल अभियुक्त द्वारा दायर जमानत अर्जी का निस्तारण करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि 'जो भी आगे की जांच की जानी है, उसे 31 अक्टूबर, 2022 तक पूरा किया जाना चाहिए, जिसकी समाप्ति के बाद याचिकाकर्ता को स्वतः निम्नलिखित नियमों और शर्तों पर रिहा किया जाए।
खंडपीठ ने कहा,
"जमानत दी जानी है या नहीं, यह पूरी तरह से हाईकोर्ट के विवेक के अधीन है। हालांकि, जांच एजेंसी को विशेष तारीख तक जांच पूरी करने का निर्देश देना और उस तारीख के बाद अपीलकर्ता की स्वत: रिहाई का निर्देश देना, हमारे विचार में इस सवाल को तय करना हाईकोर्ट का काम नहीं है कि क्या इससे पहले आवेदक गुण-दोष के आधार पर जमानत देने का हकदार है या नहीं।"
इस प्रकार, पीठ ने इन निर्देशों को रद्द कर दिया और कहा कि अभियुक्त हाईकोर्ट के समक्ष जमानत के लिए आवेदन दायर करने का हकदार होगा।
केस विवरण- स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल बनाम संदीप बिस्वास | लाइवलॉ (SC) 1024/2022 | एसएलपी (सीआरएल) 10029/2022 | 9 दिसंबर, 2022 | जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ।
हेडनोट्स
भारत का संविधान, 1950; अनुच्छेद 226 - दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 482 के तहत हाईकोर्ट के पास अनुच्छेद 226 या सीआरपीसी की धारा 482 के तहत भी यह शक्ति नहीं है कि वह जांच को विशेष तरीके से संचालित करने का निर्देश दे।