हल्द्वानी बेदखली| सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्वास समाधान पर काम करने के लिए रेलवे को 8 सप्ताह का समय दिया

Update: 2023-02-07 10:04 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हल्द्वानी में रेलवे द्वारा दावा की गई भूमि से कब्जेदारों को हटाने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर राज्य और रेलवे अधिकारियों को अन्य बातों के साथ-साथ, कब्जाधारियों के पुनर्वास के लिए समाधान निकालने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले अवसर पर हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि पुनर्वास के पहलू को देखने के साथ-साथ रेलवे को भूमि कैसे उपलब्ध कराई जा सकती है, इस पर विचार करें।

अदालत ने आदेश में दर्ज किया,

“हमने एएसजी से कहा है कि ऐसी कोई कार्यप्रणाली हो सकती है जिससे रेलवे को उपलब्ध कराई जा रही भूमि के उद्देश्य को प्राप्त करने की साथ-साथ क्षेत्र में रह रहे व्यक्तियों के पुनर्वास को भी देखा जा सके।"

कोर्ट ने आगे राज्य और रेलवे को व्यावहारिक समाधान खोजने के लिए कहा।

जस्टिस ओक ने जोर देकर कहा,

''कोई हल निकालो। यह मानवीय मसला है।''

जस्टिस कौल ने राज्य से कहा,

"उत्तराखंड राज्य को व्यावहारिक समाधान खोजना होगा"।

जस्टिस एस.के. कौल और जस्टिस मनोज मिश्रा ने भाटी के अनुरोध पर सोमवार को निम्नलिखित आदेश पारित किया,

"एएसजी ने निवेदन किया कि अंतिम तिथि के अनुसार समाधान निकालने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया जाए। अनुरोध स्वीकार किया जाता है।”

सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंसाल्वेस ने संकेत दिया कि हल्द्वानी में समस्या कृत्रिम रूप से बनाई गई है और यदि पक्षों के वकील एक साथ बैठकर विचार-मंथन करते हैं तो इसे तुरंत हल किया जा सकता है।

जस्टिस कौल ने दृष्टिकोण को प्रोत्साहित किया और बार के सीनियर सदस्य के रूप में प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहा।

पृष्ठभूमि

हाईकोर्ट के आदेश के आधार पर संबंधित अधिकारियों ने 4000 से अधिक परिवारों को बेदखली नोटिस जारी किया, जो दावा करते हैं कि वे सरकारी अधिकारियों द्वारा मान्यता प्राप्त वैध दस्तावेजों के आधार पर वर्षों से क्षेत्र में रह रहे हैं। जब मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया तो उसने उत्तराखंड राज्य और रेलवे को नोटिस जारी किया और हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। कहा कि "...7 दिनों में 50,000 लोगों को नहीं हटाया जा सकता है।"

सुनवाई की पिछली तारीख पर सुप्रीम कोर्ट इस बात से विशेष रूप से चिंतित है कि कई कब्जाधारी दशकों से पट्टे और नीलामी खरीद के आधार पर अधिकारों का दावा करते हुए वहां रह रहे हैं।

याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता गरीब लोग हैं, जो 70 से अधिक वर्षों से हल्द्वानी जिले के मोहल्ला नई बस्ती के वैध निवासी हैं। याचिकाकर्ता के अनुसार, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 4000 से अधिक घरों में रहने वाले 20,000 से अधिक लोगों को इस तथ्य के बावजूद बेदखल करने का आदेश दिया कि निवासियों के शीर्षक के संबंध में कार्यवाही जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित है। बताया जाता है कि स्थानीय निवासियों के नाम नगर निगम के हाउस टैक्स रजिस्टर के रिकॉर्ड में दर्ज हैं और वे वर्षों से नियमित रूप से हाउस टैक्स का भुगतान करते आ रहे हैं।

इसके अलावा, क्षेत्र में 5 सरकारी स्कूल, एक अस्पताल और दो ओवरहेड पानी के टैंक हैं। यह आगे कहा गया कि याचिकाकर्ताओं और उनके पूर्वजों के लंबे समय से भौतिक कब्जे, कुछ भारतीय स्वतंत्रता की तारीख से भी पहले, उसको राज्य और इसकी एजेंसियों द्वारा मान्यता दी गई है। उन्हें गैस और पानी के कनेक्शन और यहां तक कि आधार कार्ड नंबर भी दिए गए हैं।

[केस टाइटल: अब्दुल मतीन सिद्दीकी बनाम भारत संघ और अन्य। डायरी नंबर 289/2023]

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