नया अधिनियम निरस्त कानून के तहत अर्जित अधिकारों को तब तक नहीं छीनेगा, जब तक कि नए क़ानून में ऐसा इरादा व्यक्त न किया गया हो: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुराने अधिनियम के तहत अर्जित अधिकार नए अधिनियम के लागू होने के साथ समाप्त नहीं हो सकते जब तक कि नए अधिनियम को पूर्वव्यापी प्रभाव न दिया जाए।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने किरायेदारी विवाद पर फैसला करते हुए यह बात कही, जिसमें मुख्य किरायेदार की मृत्यु के बाद पुराने किरायेदारी अधिनियम के तहत अपीलकर्ताओं/किरायेदारों को विरासत में मिले अधिकार नए किरायेदारी अधिनियम के माध्यम से समाप्त कर दिए गए, यानी नए किरायेदारी अधिनियम के प्रावधान को पूर्वव्यापी प्रभाव दिया गया, जबकि नए किरायेदारी अधिनियम में इसके पूर्वव्यापी आवेदन के बारे में कोई प्रावधान नहीं किया गया।
स्पष्ट करने के लिए पुराने किरायेदारी अधिनियम यानी पश्चिम बंगाल परिसर किरायेदारी अधिनियम, 1956 में कहा गया कि किरायेदार की मृत्यु की स्थिति में किरायेदारी उस किरायेदार के कानूनी उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित हो जाती है, जो आमतौर पर उसके साथ रहते थे। जबकि नए किरायेदारी अधिनियम यानी पश्चिम बंगाल किरायेदारी परिसर अधिनियम, 1997 के तहत किरायेदारी किरायेदार के कानूनी उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित होगी, लेकिन पांच साल की सीमित अवधि के लिए।
पूरा मुद्दा 1997 के अधिनियम की धारा 2(जी) में प्रयुक्त वाक्यांश "ऐसे किरायेदार की मृत्यु की तिथि से या इस अधिनियम के लागू होने की तिथि से, जो भी बाद में हो, पांच वर्ष से अधिक की अवधि के लिए" की व्याख्या करने के इर्द-गिर्द घूमता है।
नए किरायेदारी अधिनियम ने मुख्य किरायेदार की मृत्यु पर बाद के किरायेदार द्वारा विरासत में प्राप्त किरायेदारी अधिकारों के आनंद को नए किरायेदारी अधिनियम के लागू होने की तिथि यानी 2001 से 2006 तक की अवधि तक ही सीमित कर दिया। नए किरायेदारी अधिनियम ने अधिनियम की धारा 2(जी) को पूर्वव्यापी रूप से लागू किया, ताकि किरायेदार द्वारा अपने पूर्ववर्तियों से विरासत में प्राप्त किरायेदारी अधिकारों के आनंद को पांच साल तक सीमित किया जा सके, जिनकी मृत्यु पुराने किरायेदारी अधिनियम के संचालन के दौरान हुई थी।
इस प्रकार, अपीलकर्ताओं/किराएदार ने तर्क दिया कि चूंकि उनके पिता की मृत्यु 1970 में पुराने किरायेदारी अधिनियम के संचालन के दौरान हुई। इसलिए किरायेदारी अधिकार पुराने किरायेदारी अधिनियम द्वारा शासित होंगे, न कि बाद के कानून यानी नए किरायेदारी अधिनियम द्वारा।
हालांकि, प्रतिवादी/मकान मालिक ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता नए किरायेदारी अधिनियम के लागू होने की तिथि से पांच साल तक यानी 2001 से 2006 तक ही किरायेदारी अधिकारों का दावा कर सकते हैं क्योंकि यह पूर्वव्यापी रूप से लागू है। इसलिए मकान मालिक ने दलील दी कि चूंकि किरायेदारी अधिकार 2006 में समाप्त हो गए, इसलिए किरायेदार को मुकदमे के परिसर पर कब्जा रखने का कोई अधिकार नहीं है और किरायेदार को बेदखल करने की प्रार्थना की।
अपीलकर्ता की दलीलों को स्वीकार करते हुए जस्टिस सुधांशु धूलिया द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया,
"नए क़ानून के लागू होने से पहले से ही निरस्त क़ानून के तहत प्राप्त अधिकार समाप्त नहीं होंगे, जब तक कि यह इरादा नए क़ानून में परिलक्षित न हो।"
अदालत ने 1997 के अधिनियम की धारा 2(जी) में प्रयुक्त वाक्यांश "ऐसे किरायेदार की मृत्यु की तारीख से या इस अधिनियम के लागू होने की तारीख से, जो भी बाद में हो, पांच वर्ष से अधिक की अवधि के लिए" की शाब्दिक व्याख्या पर आपत्ति जताई। अदालत के अनुसार, क़ानून की शाब्दिक व्याख्या से बचना चाहिए, अगर इससे कोई बेतुका नतीजा निकलता है।
मामले के तथ्यों पर अदालत ने पाया कि पुराने किरायेदारी अधिनियम के तहत विरासत में मिले किरायेदारी अधिकार निरर्थक हो जाएंगे, अगर नए किरायेदारी अधिनियम को पूर्वव्यापी प्रभाव दिया गया।
गौतम डे बनाम ज्योत्सना चटर्जी (2012) में एकल न्यायाधीश ने कहा कि 'या इस अधिनियम के लागू होने की तिथि से, जो भी बाद में हो' का शाब्दिक अर्थ लगाने से बेतुके परिणाम सामने आएंगे, क्योंकि 1956 के अधिनियम के तहत हस्तांतरित सभी किरायेदारी एक ही दिन (9 जुलाई, 2006) को समाप्त हो जाएंगी, यानी 1997 के अधिनियम के लागू होने के पांच साल बाद! इस प्रकार, एकल न्यायाधीश ने उपरोक्त वाक्यांश को निरर्थक और राज्य विधानमंडल द्वारा ढीले मसौदे का एक टुकड़ा माना।
नए किरायेदारी अधिनियम को पूर्वव्यापी आवेदन देने का हाईकोर्ट का फैसले अस्वीकार करते हुए अदालत ने निम्नलिखित टिप्पणी की:
कलकत्ता हाईकोर्ट की खंडपीठ के अनुसार 1997 का अधिनियम "वंशानुगत अधिकारों" को पूर्वव्यापी रूप से बदलता है। यद्यपि, बेदखली की वास्तविक तिथि नये अधिनियम के बाद की है, लेकिन इसका पूर्वव्यापी प्रभाव भी है, क्योंकि यह पहले की तिथि (वर्तमान मामले में 1970) पर पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू है। इसने अपीलकर्ताओं से उनका वह अधिकार छीन लिया है, जो उन्हें पुराने कानून के तहत दिया गया।
न्यायालय ने कहा,
“वैधानिक कानून उनके लागू होने की तिथि से ही लागू होते हैं, अर्थात भावी रूप से। यदि विधानमंडल किसी कानून को पूर्वव्यापी बनाने का इरादा रखता है तो विधानमंडल के इस इरादे को कानून में ही स्पष्ट रूप से और स्पष्ट रूप से दर्शाया जाना चाहिए। खंडपीठ द्वारा किसी वैधानिक प्रावधान की मात्र व्याख्या कानून को पूर्वव्यापी नहीं बनाएगी। किरायेदार के वंशानुगत अधिकारों को छीन नहीं लेगी।”
मामले का निष्कर्ष
न्यायालय ने कहा,
“उपर्युक्त के मद्देनजर, हम मानते हैं कि उषा मित्रा और अपीलकर्ताओं ने संयुक्त रूप से एस.के. मित्रा से वर्ष 1970 में किरायेदारी विरासत में प्राप्त की थी। इस प्रकार, विवादित निर्णय रद्द किया जाना चाहिए, क्योंकि अपीलकर्ताओं की किरायेदारी वर्ष 2006 में समाप्त नहीं हुई थी, 1997 के अधिनियम में पूर्वव्यापी संचालन के स्पष्ट और स्पष्ट इरादे के अभाव में।”
तदनुसार, अपील को अनुमति दी गई।
केस टाइटल: राजेश मित्रा @ राजेश कुमार मित्रा एवं अन्य बनाम करनानी प्रॉपर्टीज लिमिटेड, सिविल अपील संख्या 3593-3594 वर्ष 2024