ज्ञानवापी मस्जिद नहीं; संपत्ति निरंतर देवता की रही; पूजा स्थल अधिनियम लागू नहीं होता: सुप्रीम कोर्ट में हिंदू वादी का जवाब
ज्ञानवापी मामले में सुप्रीम कोर्ट में मस्जिद कमेटी की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका के विरोध में जवाब दायर किया गया है। उक्त जवाब वाराणसी सिविल कोर्ट के समक्ष मौजूद ज्ञानवापी मामले के एक हिंदू वादी ने दायर किया है। उल्लेखनीय है कि मस्जिद कमेटी ने ज्ञानवापी मस्जिद की संपत्ति के सर्वेक्षण और सीलिंग के लिए सिविल कोर्ट द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर की है। (अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद प्रबंधन समिति, वाराणसी और अन्य बनाम राखी सिंह)
एडवोकेट विष्णु शंकर जैन के माध्यम से दायर जवाब में वादी ने दावा किया कि संपत्ति भगवान आदि विश्वेश्वर में निहित है। उन्होंने दलील दी है कि ज्ञानवापी एक मस्जिद नहीं है क्योंकि औरंगजेब ने संपत्ति को समर्पित करके वक्फ नहीं बनाया था। ऐसा कहा जाता है कि यह संपत्ति हजारों साल पहले से आदि विश्वेश्वर के पास है और औरंगजेब ने उसे जबरन छीना है।
जवाब में कहा गया है,
" विचाराधीन संपत्ति किसी वक्फ की नहीं है। संपत्ति ब्रिटिश कैलेंडर वर्ष की शुरुआत से लाखों साल पहले से ही भगवान आदि विश्वेश्वर में निहित है और उन्हीं की संपत्ति बनी हुई है। इस पर कोई वक्फ नहीं बनाया जा सकता है, भूमि पहले से ही एक देवता में निहित है। मुगल शासन के दरमियान लिखी ऐतिहासिक किताबों में और उसके बाद भी मुस्लिम इतिहासकारों ने यह दावा नहीं किया है कि औरंगजेब ने आदि विशेश्वर के मंदिर के ढांचे को ध्वस्त करने के बाद कोई वक्फ बनाया था या उसके बाद मुस्लिम समुदाय के किसी सदस्य या शासक ने वक्फ को ऐसी संपत्ति समर्पित की थी।"
ज्ञानवापी का ढांचा एक मस्जिद है, इस पर सवाल उठाते हुए, यह कहा गया है-
"कथित ज्ञानवापी मस्जिद केवल एक संरचना है और इसे मस्जिद के रूप में नहीं माना जा सकता है। एक अन्य पहलू यह है कि विवादित निर्माण किसी भी वक्फ संपत्ति पर नहीं किया गया है। उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ सिद्धांत लागू नहीं हो सकता क्योंकि कथित ज्ञानवापी मस्जिद 1669 में उसी स्थान पर एक हिंदू मंदिर को ध्वस्त करने के बाद निर्मित की गई है और कथित मस्जिद के निर्माण की तारीख सर्वविदित है"।
वादी का कहना है कि इस तथ्य को स्थापित करने वाले ऐतिहासिक रिकॉर्ड हैं कि औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त करके ढांचे का निर्माण किया था। यह दलील दी गई कि किसी भी मुस्लिम शासक या किसी मुस्लिम द्वारा किसी मंदिर की भूमि पर किए गए निर्माण को मस्जिद नहीं माना जा सकता है।
"वाकिफ, जो कि जमीन का मालिक है, उसकी ओर से वक्फ को समर्पित जमीन पर ही वक्फ बनाया जा सकता है। इस मामले में यह स्पष्ट है कि अनंत काल से ही भूमि और संपत्ति देवता की है, इसलिए वहां कोई मस्जिद नहीं हो सकती है।"
यह दलील देते हुए कि संपत्ति का धार्मिक चरित्र हमेशा एक हिंदू मंदिर का रहा है और इसे कभी भी मस्जिद नहीं माना जा सकता है, वादी कहते हैं कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के तहत रोक लागू नहीं होती है क्योंकि वहां मुकदमे के माध्यम से ढांचे के धार्मिक चरित्र को बदलने का कोई सवाल ही नहीं है।
वादी का तर्क है कि विचाराधीन संपत्ति एक हिंदू पूजा स्थल बनी हुई है।
"... यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि विचाराधीन ने संपत्ति हिंदू पूजा स्थल के चरित्र को निरंतर कायम रखा है। इसलिए, पूजा स्थल अधिनियम की धारा 4 को मंदिर और भक्तों के पक्ष में लागू किया जा सकता है।"
"पीडब्ल्यू एक्ट की धारा 4 में संसद ने जानबूझकर "धार्मिक चरित्र" शब्द का इस्तेमाल किया है, जिसका अर्थ है कि मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा आदि का निर्माण, किसी अन्य धर्म की भूमि पर अतिक्रमण किए बिना, धर्म के सिद्धांतों के अनुसार किया जाना चाहिए।"
उन्होंने तर्क दिया है कि मस्जिद कमेटी की ओर से आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत याचिका की अस्वीकृति के लिए दायर आवेदन पर निर्णय लेने से पहले संपत्ति के धार्मिक चरित्र का निर्धारण किया जाना चाहिए।
दलील दी गई है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने कई मंदिरों को नष्ट करने के आदेश जारी किए थे। उन आदेशों का पालन करते हुए वाराणसी में आदि विश्वेश्वर मंदिर के एक हिस्से को ध्वस्त कर दिया था और बाद में 'कथित ज्ञानवापी मस्जिद' का निर्माण किया था।
"हिंदू मंदिर के अवशेष कथित ज्ञान वापी मस्जिद की दीवारों पर देखे जा सकते हैं, जो नष्ट हुए मूल काशी विश्वनाथ मंदिर पर खड़ी है।
यह प्रस्तुत किया गया है कि भगवान शिव के पुजारी और सामान्य हिंदू लगातार संपत्ति के भीतर मौजूद देवताओं की पूजा करते रहे हैं।
"मुसलमानों को कभी भी संपत्ति पर मालिकाना अधिकार नहीं मिला। किसी भी मुसलमान ने अब तक भगवान को जमीन समर्पित नहीं की है, क्योंकि संपत्ति देवता की है। देवता केवल इस कारण से अपने अधिकारों को नहीं खोएगा कि इस दौरान विदेशी शासन से मंदिर को काफी नुकसान हुआ क्योंकि संपत्ति पर देवता का अधिकार कभी नहीं खोता है। पूजा करने वालों का देवता और स्थान की पूजा का अधिकार हिंदू कानून के तहत संरक्षित है।"
यह भी दलील दी गई है कि 30 दिसंबर 1810 को तत्कालीन जिलाधिकारी श्री वाटसन ने अध्यक्ष परिषद को एक पत्र भेजकर ज्ञानवापी क्षेत्र को हमेशा के लिए हिंदुओं को सौंपने का सुझाव दिया था।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पीएस नरसिंह की 3 जजों की बेंच आज दोपहर 3 बजे इस मामले पर विचार करेगी। 17 मई को, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि जिस स्थान पर शिवलिंग पाए जाने की बात कही गई है, उसकी सुरक्षा के लिए सिविल कोर्ट का आदेश मुसलमानों के नमाज और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए मस्जिद तक पहुंचने के अधिकार को बाधित नहीं करेगा।