जमानत की मंजूरी सह-अभियुक्त के आत्मसमर्पण करने पर निर्भर नहीं रखी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने जमानत याचिका की अनुमति देते हुए कहा कि सह-अभियुक्त व्यक्ति को जमानत देना किसी अन्य आरोपी के आत्मसमर्पण पर निर्भर नहीं हो सकता, जो इस मामले में मुख्य आरोपी भी है।
कोर्ट ने कहा,
"हमारी राय में सह-अभियुक्त व्यक्ति को जमानत देने का सवाल किसी अन्य आरोपी के आत्मसमर्पण पर निर्भर नहीं किया जा सकता, जिसे इस मामले में मुख्य आरोपी व्यक्ति के रूप में वर्णित किया गया है।"
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की खंडपीठ ने दहेज हत्या के एक मामले में एक आरोपी की जमानत याचिका पर फैसला करते हुए ये टिप्पणियां कीं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अपीलकर्ता पति का भाई है और एक आरोपी भी है। यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि पति फरार है और उसकी गिरफ्तारी के बिना ही मुकदमा शुरू हो गया था।
सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से पहले अपीलकर्ता ने जमानत देने की मांग करते हुए पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने अपने आक्षेपित फैसले में याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया, हालांकि, यह मृतक के पति द्वारा विद्वान ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण की शर्त से जुड़ा था।
आदेश में कहा गया,
“… मैं याचिकाकर्ता को जमानत पर मृतक पीड़ित महिला के पति द्वारा विद्वान ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करने पर ऐसी शर्तों के अधीन रिहा करने का निर्देश देना उचित समझता हूं, जिन्हें कुरान सराय पी.सी. केस संख्या 18/2021 के संबंध में न्यायिक मजिस्ट्रेट-प्रथम श्रेणी, बक्सर की अदालत द्वारा उचित समझा जाए।"
शीर्ष अदालत ने जमानत याचिका की अनुमति देते हुए कहा कि अपीलकर्ता को जमानत देने के लिए मृत/सह-अभियुक्त के पति के आत्मसमर्पण की शर्त लगाना और उसके बाद उसका पालन करना आवश्यक नहीं होगा।
उसी के मद्देनजर अदालत ने जमानत आदेश को संशोधित करते हुए अपीलकर्ता की रिहाई का निर्देश दिया और यह स्पष्ट कर दिया कि पति द्वारा पूर्व आत्मसमर्पण की शर्त पर जोर नहीं दिया जाएगा।
केस टाइटल : मुंशी साह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, आपराधिक अपील नंबर 3198-3199/2023
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