आज हँसने के अधिकार पर भी खतरा मंडरा रहा है: पूर्व चीफ जस्टिस एस मुरलीधर ने 'बुल्डोजर जस्टिस' पर भी दी चेतावनी

Update: 2025-04-13 03:30 GMT
आज हँसने के अधिकार पर भी खतरा मंडरा रहा है: पूर्व चीफ जस्टिस एस मुरलीधर ने बुल्डोजर जस्टिस पर भी दी चेतावनी

सीनियर एडवोकेट और उड़ीसा हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस डॉ. एस. मुरलीधर ने शुक्रवार को राज्य द्वारा हँसने के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों पर खतरे की चिंता जताई और दंडात्मक कार्रवाई के रूप में लोगों के घरों को ध्वस्त करने की राज्य की प्रथा की आलोचना की और इसे "नकारात्मक परिवर्तन" बताया।

उन्होंने कहा,

"लोकतंत्र का पालन लोगों को करना चाहिए। यदि आप अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं करते हैं तो आप भूल जाएंगे कि आपके पास अधिकार है। उदाहरण के लिए हँसने का अधिकार। आज जिस चीज पर गंभीर रूप से खतरा मंडरा रहा है, वह है हँसने का अधिकार। एकमात्र जीवित प्राणी जो व्यंग्य, बुद्धि और हास्य के माध्यम से खुशी और आनंद का अनुभव कर सकता है, वह है मनुष्य। हंसना आपके लिए इतना स्वाभाविक है, हँसने के अधिकार को मत छीनिए। हमारे पास कम से कम हँसने की क्षमता तो होनी ही चाहिए, यह न्यूनतम है जिसकी हमें गारंटी दी जानी चाहिए।"

मुरलीधर की टिप्पणी ऐसे समय में आई, जब कई बार कॉमेडियन को आपत्तिजनक या राजनीतिक माने जाने वाले बयानों के लिए कानूनी कार्रवाई और आलोचना का सामना करना पड़ा है। हाल ही में कुणाल कामरा ने कथित तौर पर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को अपने नाटक में "गद्दार" कहा था, जिसको लेकर उन पर भारतीय दंड संहिता (BNS) की धारा 353 (1) (बी), 353 (2) (सार्वजनिक शरारत) और 356 (2) (मानहानि) के तहत मामला दर्ज किया गया।

इसके अलावा, लेक्चर के प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान, मुरलीधर ने कथित अपराधों या विरोधों के लिए राज्य की प्रतिक्रिया के रूप में बुलडोजर से घरों को ध्वस्त करने की प्रथा की भी आलोचना की।

उन्होंने कहा,

"यह न्याय नहीं है, ये (शब्द बुलडोजर और न्याय) विपरीतार्थक हैं। यह एक नकारात्मक परिवर्तन है। यह सत्ता हथियाना है और कहना है 'जिसके हाथ में लाठी उसकी बेल - मेरे पास शक्ति है, तुम कौन होते हो मुझे बताने वाले? तुम कोई अदालत हो, मैं तुमसे निपट लूंगा। मुझे संविधान मत पढ़ो, मुझे क़ानून मत पढ़ो। मेरे पास शक्ति है।'"

6 जनवरी, 2021 को यू.एस. कैपिटल पर हुए हमले के साथ तुलना करते हुए उन्होंने कहा,

"कोई व्यक्ति कैपिटल पर कब्ज़ा कर लेता है और चुनाव परिणामों को नकारना चाहता है। उस व्यक्ति को दोबारा निर्वाचित नहीं होना चाहिए था, जिसने संविधान की अवहेलना की है। लेकिन वह फिर से निर्वाचित हो जाता है।"

राज्य द्वारा दंडात्मक कार्रवाई के रूप में अपराध के आरोपी व्यक्तियों के घरों को ध्वस्त करने के पैटर्न का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अखिल भारतीय दिशा-निर्देश निर्धारित किए और कहा कि कार्यपालिका केवल इस आधार पर व्यक्तियों के घरों/संपत्तियों को ध्वस्त नहीं कर सकती कि वे किसी अपराध में आरोपी या दोषी हैं।

उन्होंने "बुलडोजर न्याय" के खिलाफ लोगों की चुप्पी पर सवाल उठाया।

उन्होंने कहा,

"हम इसका कितना विरोध करते हैं? किसी के घर पर बुलडोजर चलाया गया। हममें से कितने लोग जो उस समुदाय से नहीं हैं, उन्होंने विरोध किया? किसी ने नहीं। हमने बस दूसरी तरफ देखा - यह किसी और के साथ हो रहा है।"

मुरलीधर ने कहा कि खतरा उन लोगों की उदासीनता में है, जिनसे बेहतर जानकारी की उम्मीद की जाती है।

इस संबंध में उन्होंने कहा,

"हमें इससे कोई समस्या नहीं है। यहीं समस्या है। सत्ता वाला कोई व्यक्ति ऐसा करेगा। यदि आप, जिन्हें बेहतर जानकारी रखने वाले व्यक्ति माना जाता है, इसके बारे में कुछ नहीं करते हैं तो कल जब वह व्यक्ति चुनाव के लिए खड़ा होगा तो आप उसे वापस वोट देंगे, आपके पास दोष देने के लिए कोई और नहीं होगा।"

जस्टिस मुरलीधर ने कानूनी इतिहास में बदलाव के बिंदुओं की ओर इशारा करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि न्यायालय कभी रूढ़िवादी थे और भूमि सुधार कानूनों को रद्द कर देते थे। उन्होंने कहा कि 1973 के केशवानंद भारती मामले में जोर दिया गया था कि संसद की शक्ति संविधान के मूल ढांचे के अधीन है।

उन्होंने कहा कि केशवानंद भारती का फैसला परिवर्तनकारी था, क्योंकि इसमें कहा गया कि मौलिक अधिकार, जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं, उन्हें संविधान को फिर से लिखने की चाह रखने वाले क्रूर बहुमत द्वारा भी नहीं छीना जा सकता। हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लोगों को लोकतंत्र में भाग लेना चाहिए ताकि यह काम कर सके।

उन्होंने कहा कि क्रूर बहुमत वाले लोकलुभावन नेता अक्सर संविधान को फिर से लिखने और परंपरा पर वापस जाने की कोशिश करते हैं। "आपके पास हमेशा कोई न कोई संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति होगा जो कहेगा 'नहीं, कोई बुनियादी ढांचा नहीं है'।" उन्होंने कहा कि यह प्रलोभन केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मौजूद है।

मुरलीधर ने विभिन्न सामाजिक सूचकांकों में भारत के खराब प्रदर्शन पर प्रकाश डाला, उन्होंने बताया कि भारत के शीर्ष 1 प्रतिशत लोगों के पास 2023 में 40.1 प्रतिशत संपत्ति होगी। उन्होंने वैश्विक भूख सूचकांक का हवाला दिया, जहां भारत 127 देशों में 105वें स्थान पर है।

उन्होंने कहा,

"यह बहुत परेशान करने वाला है कि भारत में 2.9 प्रतिशत बच्चे पांच साल की उम्र से पहले ही मर जाते हैं।"

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि अदालतों ने परिवर्तन का समर्थन किया और उसे रोका भी है। उन्होंने 1991 में उदारीकरण की ओर इशारा किया, जिसमें अदालतें आर्थिक नीतियों के प्रति सम्मानजनक थीं। हालांकि, न्यायालय ने केशवानंद भारती निर्णय और एसआर बोम्मई निर्णय का हवाला देते हुए विधायी और कार्यकारी शक्तियों पर भी अंकुश लगाया।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि परिवर्तन नकारात्मक भी हो सकता है और चेतावनी दी कि प्रौद्योगिकी और एआई द्वारा लाए गए सभी परिवर्तन सकारात्मक नहीं होते हैं।

लेक्चर यहां देखा जा सकता है।

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