सुनिश्चित करें कि जमानत आवेदन यथाशीघ्र सूचीबद्ध हों; व्यक्तिगत स्वतंत्रता दांव पर: सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट से कहा
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (11 दिसंबर) को सभी हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत/नियमित जमानत आवेदनों पर विचार में देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने पाया कि सुप्रीम कोर्ट की बार-बार न्यायिक घोषणाओं के बावजूद, अग्रिम जमानत आवेदनों को सूचीबद्ध करने और निपटाने में दक्षता की कमी तत्काल राहत पाने की उम्मीद कर रहे आवेदकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाती है।
आदेश पारित करते हुए बेंच ने विभिन्न अदालतों में बार-बार होने वाली देरी को देखते हुए रजिस्ट्री को आदेश की कॉपी रजिस्ट्रार जनरल और सभी हाईकोर्ट के सभी संबंधितों को भेजने का निर्देश दिया, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि जल्दी से जल्दी जमानत और अग्रिम जमानत आवेदनों की लिस्टिंग की जाए।
यह देखा गया,
"इस न्यायालय ने माना और दोहराया कि अग्रिम जमानत आवेदनों/जमानत आवेदनों पर निर्णय स्वतंत्रता से संबंधित हैं। इसलिए इन्हें शीघ्रता से लिया और निपटाया जाना चाहिए... वस्तुतः, इस न्यायालय ने जमानत स्वीकार करने की प्रथा की निंदा की आवेदन और उसके बाद उस पर निर्णय को अनावश्यक रूप से टालना... विभिन्न अदालतों में उक्त स्थिति की पुनरावृत्ति को देखते हुए रजिस्ट्री इस आदेश की कॉपी सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भेजी जाए, जिससे जल्द से जल्द जमानत आवेदनों/अग्रिम जमानत आवेदनों की सूची सुनिश्चित की जा सके।''
खंडपीठ के समक्ष मामला भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420, 467, 468, 409, 471 और 34 के तहत अपराध के लिए आरोपी याचिकाकर्ता की अग्रिम जमानत याचिका के संबंध में 6 दिसंबर को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ द्वारा पारित एक अंतरिम आदेश से संबंधित था।
उक्त आदेश के अनुसार, मामले को विचार के लिए लिया गया और केस डायरी भी मांगी गई। हालांकि अगली सुनवाई के लिए किसी विशिष्ट तारीख का उल्लेख करने के बजाय आदेश में लिखा गया, "इस मामले को उसके कालानुक्रमिक क्रम में सूचीबद्ध करें।"
इस दृष्टिकोण की निंदा करते हुए बेंच ने कहा,
“ऐसी परिस्थितियों में मामले को आगे के विचार के लिए अदालत के समक्ष कब रखा जाएगा, यह अनुमान के अलावा और कुछ नहीं है। हमें यह मानने में कोई झिझक नहीं है कि इस तरह का आदेश अग्रिम जमानत/नियमित जमानत से संबंधित मामले में निश्चितता के बिना वह भी मामले को स्वीकार करने के बाद निश्चित रूप से आवेदन पर विचार करने में देरी करेगा और ऐसी स्थिति किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए हानिकारक होगी। यह चिंता की बात है कि बार-बार आदेश के बावजूद भी वही स्थिति बनी हुई है।”
न्यायालय ने याचिकाकर्ता को आपराधिक एसएलपी में अंतरिम सुरक्षा प्रदान की और हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश से लंबित आवेदन का शीघ्र निपटान यानी "अधिमानतः इस आदेश की प्राप्ति / प्रस्तुति से चार सप्ताह की अवधि के भीतर" अनुरोध किया।
सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा (याचिकाकर्ताओं की ओर से उपस्थित) को विस्तार से सुनने के बाद न्यायालय ने यह स्पष्ट करते हुए मामले का निपटारा कर दिया,
"हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि अंतरिम सुरक्षा का अनुदान जमानत आवेदन पर विचार को प्रभावित नहीं करेगा। याचिकाकर्ता और इस पर उसके गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाएगा।”
इससे पहले फरवरी 2022 में चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत मामलों में अनिश्चितकालीन स्थगन के मुद्दे पर इसी तरह की टिप्पणियां कीं।
हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण अस्वीकार करते हुए पीठ ने अपने आदेश में कहा,
“कोई विशिष्ट तारीख नहीं देना विशेष रूप से अग्रिम जमानत से संबंधित मामले में ऐसी प्रक्रिया नहीं है, जिसे उचित ठहराया जा सके। हमारा मानना है कि अग्रिम जमानत से संबंधित मामले में इस प्रकार का अनिश्चितकालीन स्थगन वह भी इसे स्वीकार करने के बाद किसी व्यक्ति के मूल्यवान अधिकार के लिए हानिकारक है।
केस टाइटल: कवीश गुप्ता बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एसएलपी (सीआरएल) नंबर 16025/2023 एसएलपी (सीआरएल) नंबर 16047/2023 के साथ।
आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें